नैन मटक्का
नैन मटक्का
मैं अपने भाई के स्टोर में उसकी मदद के लिए कभी-कभी स्टोर में बैठा करता था।
Store में बैठने का मेरा अपना ही मतलब था। बहुत सारी बालाएं भी सामान खरीदने भाई के दुकान आया करती थी।
एक दिन मैं अपने स्टोर में बैठकर फेसबुक में लड़कियों के नाम खोज-खोज कर उन्हें randomly फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज रहा था। भाई किसी काम से दुकान में नहीं था। इसलिए दुकान का जिम्मा उसने मुझे दे दिया था।
“भैया, एक Dove साबुन देना।” किसी की मीठी आवाज मेरी कानों में सुनाई दी।
मैंने अपनी नजरें मोबाईल की स्क्रीन से उठा कर उस ओर कर ली, जहाँ से ये आवाज़ आई थी।
एक सुंदर-सी लड़की जिसने लाल रंग की सलवार कमीज़ पहनी हुई थी, वो अपने से 4-5 साल कम उम्र के लड़के के साथ आई हुई थी। दोनों का चेहरा इतना मिल रहा था कि मुझे ये समझ आ गया था कि दोनों भाई-बहन ही हैं।
यद्यपि उस लड़की ने मुँह में दुप्पट्टा बाँधा हुआ था, पर उसकी आँखें देख मैं ये समझ गया था कि उसका चेहरा किसी हीरोइन से कम न था।
उसकी आवाज़ इतनी मीठी थी कि मैं उसे दुबारा सुनना चाहता था।
“हाँ जी! क्या चाहिए आपको?”
“भैया, Dove साबुन चाहिए एक।” उसने दुबारा अपने सुनहरे अंदाज में कहा।
“भैया” ये सुन मुझे बहुत गुस्सा आया। फिर मैंने अपने मन को बहलाया कि ‘भैया’ तो बस एक नाम-सा हो गया हैं। सब्जी वाला हो या टेम्पू वाला या फिर दुकान वाला, सबको भैया ही कहा जाता ,चाहे उनकी उम्र उनके बाप या दादा की उम्र के बराबर ही क्यों न हो।
मैं अपने मन को समझा ही रहा था कि अचानक मेरी नज़र, उसकी नज़र से जा टकराई। वो मुझे ही देख रही थी। मैंने सर झुका लिया और बायीं ओर के तख्ते से साबुन निकाल कर उसके सामने रख दिया।
उसने फिर अपने छोटे भाई से कहा, “छोटू, बिस्कुट भी खत्म हो गया हैं न?”
छोटू कुछ कह पाता, उसके पहले ही उसने अपनी बात को खुद संपुष्ट करते हुए कहा,” हाँ, बिस्कुट खत्म हो गया हैं। सुनिए, मुझे 2 पैकेट पार्ले-जी भी दे दीजिए।”
इस बार उसने ‘भैया’ कहकर नहीं पुकारा । बल्कि ‘सुनिए’ कहकर संबोधित किया। मुझे एक दम ‘पति’ वाली feeling आई , जैसे वो कह रही हो,’सुनिए! ए.. जी.. बिस्कुट ले आईये। मुन्ना रो रहा हैं।’
मैंने इस बार हिम्मत करके उसकी आँखों से अपनी आँखें मिलायी। उसकी आँखें मुझे ही देख रही थी और मेरे द्वारा उसको एकटक देखने से वो थोड़ी सी झेप गई और नजरें नीची कर ली।
“और कुछ चाहिये आपको?” मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें उतारते हुए कहा।
“छोटू, घर में सरसों तेल भी नहीं हैं न। सरसों तेल भी दे दीजिए।” उसने फिर छोटू का जवाब मिले दुबारा कहा।
अब तक छोटू भी बात समझ चुका था।
“दीदी, घर पर तो बहुत से सामान नहीं हैं। लेना हैं तो ले लो। पर …मुझे चॉकलेट भी खरीद कर देना होगा तुमको और वो भी Dairy Milk Silk।” छोटू ने परोक्ष रूप में घर तक बात न पहुँचने की रिश्वत मांग ली थी।
Dairy Milk Silk का नाम सुन कर मैं भी भौचक्का रह गया था। इतना बड़ा रिश्वत कौन माँगता हैं भला? Dairy Milk Silk का नाम तो गाँव में बहुतों ने सुना भी न होगा। इसकी डिमांड तो किसी के माशूका की जिद्द पर उसका प्रेमी दिल पर पत्थर रख कर करता था। पर इतनी बड़ी बात इतने छोटे से ‘भटिंडे’ ने करके मुझे भी अवाक कर दिया था।
“‘DIARY MIL SIL’ उसने भी चौकते हुए कहा। उसके मुँह से अंग्रेजी के इस शब्द का उच्चारण अजीब-सा था, पर उस उच्चारण में अलग ही खुबसूरती थी।
‘इतनी चौंक काहे रही हो दीदी? बात भी तो बड़ी हैं।’ छोटू ने धूर्त भरी नजरों से बात साफ कर दी थी।
‘अच्छा ठीक हैं छोटू। खरीद दे रही हूँ DIARY MIL SIL।’ उसने अनमने ठंग से कहा।
फिर थोड़ी देर तक न मैंने कुछ कहा और न उसने। बस हम एक-दूसरे को देखे जा रहे थे। मन ही मन हमदोनों ने बहुत सी बातें कर ली थी। छोटू को रिश्वत मिल चुकी थी। इसलिए वो दुकान की दूसरी ओर देख कर अपनी चॉकलेट स्वाद ले लेकर खा रहा था।
काफी देर हम एक-दूसरे को देखते रहे।
‘दीदी, अब चलो भी घर। अम्मा गुस्सा करेगी।’ छोटू ने अपनी चॉकलेट खत्म करते हुए कहा।
बिछड़न की बात सुनकर मेरे और उसके ऊपर निराशा के बादल मंडराने लगे थे। इतने थोड़े समय के लिए हम मिले थे और फिर तुरंत जुदाई।
मैंने उसकी नजरों को देखा । उसकी नजरें डबडबा गई थी।
‘कोरोना काल चल रहा हैं। मेरा व्हाट्सएप्प नंबर ले लीजिए। जो भी सामान लेना हो तो मुझे व्हाट्सएप्प कर दीजिएगा। मैं होम डिलीवरी कर दूंगा।’ मैंने काफी सोचने के बाद ये हल निकाला ताकि हमदोनों के बीच का Love Connection बना रहे।
उसकी आँखें ये सुनकर चमक-सी गई और उसके चेहरे की हँसी लौट आई।
‘जी, ये बढ़िया रहेगा। आप अपना नंबर दे दीजिए।’ उसने एक सांस में कह दिया।
‘लिखिए। 821019..’ मैंने इतना कहा ही था कि मेरे बड़े भैया ने मेरी बात को बीच में ही काट दिया।
‘माफ कीजियेगा। हम होम डिलीवरी नहीं करते।’ भाई ने मेरी बात को पूरी तरह से पलट दिया था।
मैंने अपने भाई को गुस्से से देखा। वो मेरा ‘लव कनेक्शन’ समझ चुका था। इसलिए उसने मेरे प्यार भरे लम्हें में जहर घोलने का प्रयास किया। शायद वो उस दिन का बदला ले रहा था ,जब मैंने ‘उसकी वाली’ को अपनी मीठी चिकनी-चुपड़ी बातों से बहला-फुसला लिया था। पर वो तो 4 साल पहले की बात थी। मैंने मन ही मन अपने भाई को खूब खड़ी-खोटी सुनाई।
मैंने फिर उसकीओर देखा। उसकी आँखे अब भी मुझसे बिछड़ने को राजी नहीं थी।
‘दीदी, चलो भी अब। नहीं तो अम्मा को बोल दूंगा।’ मेरे साले साहब ने भी अब मुझे उससे अलग करने का पूरा प्लान बना लिया था।
‘चलती हूँ छोटू।’ उसने रुवासी आवाज में कहा।
उसकी आँखें नम थी।
‘लीजिए भैया। पैसा काट लीजिए।’ उसने मुझे बिना देखे मेरे भाई की ओर 2000 का नोट बढ़ाते हुए कहा।
शायद वो मुझसे नज़र मिलाना नहीं चाह रही थी। शायद उसका मुझसे नजरें मिलाकर बिछड़ना मुशिकल हो जाता |
मेरे भाई ने मुझे देखा। मैं ज़मीन में अपने पैर की ओर एकटक देख रहा था।
‘सुनिए, आपका नाम क्या हुआ?’ मेरे भाई ने उसकी ओर देखते हुए पूछा।
मैं भी उसकी बात सुन चौंका। मुझे तो अब तक उसका नाम तक नहीं पता था और न ही उसने अपना चेहरा दिखाया था।
‘मेरा नाम स्नेहा हैं।’ उसने भी अचरज में कहा।
‘स्नेहा जी, मेरे पास 2000 के छुट्टे तो नहीं हैं। आप ऐसा कीजिये कि परसों आकर या तो पैसे ले लीजिएगा या फिर उस पैसे से कुछ सामान।’ मेरे भाई ने मेरी और मुस्कुराते हुए कहा।
‘पर कल क्यों नहीं भैया?’ स्नेहा ने शंका के साथ कहा।
‘कल इसलिए नहीं क्योंकि कल मेरा भाई दुकान में रहेगा नहीं। उसकी परीक्षा चल रही। मुझे परसों बाहर जाना हैं तो मेरा भाई ही परसों दुकान संभालेगा। ‘ मेरे भाई ने प्यार से कहा।
मेरी और स्नेहा दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा और हमदोनों एक साथ चहक उठे, ‘जी भैया।’
‘दीदी, परसों भी मेरे लिए कैडबरी सिल्क ले आना क्योंकि परसों मेरे पेट में दर्द होने वाला हैं तो तुम्हें अकेले ही सामान लेने आना होगा।’ छोटू ने अपनी मंशा को सबके सामने रख दिया था।
उपसंहार
प्यार कितना सुंदर एहसास हैं न? प्यार कब , किससे हो जाए, कहना मुश्किल हैं। प्यार करने के लिए हम जात-पात, धर्म, विरादरी नहीं देखते। प्यार तो दो दिलों के बीच का संबंध हैं।
प्यार करने के लिए एक-दूसरे को जानना या देखना तक जरूरी नहीं होता। अगर प्यार एक-दूसरे को देख कर ही किया जा सकता तो ये जो ‘सॉरी, गलती से wrong नंबर लग गया। वैसे आप कहाँ से हो?’ वाला जो डायलॉग से बात शुरू होती और फिर वो प्यार और शादी तक खत्म होती, वो वाला scene, कभी किसी के life में होता ही नहीं। वो तो नजरों के मिलने से भी तद क्षण हो सकता। पहले तो प्यार होता फिर एक-दूसरे को जानना बाद में आता। वो पल कितने विशेष होते हैं न, जब अपने प्रेमी की एक झलक दिख जाती। उसके साथ बिताए 10 मिनट भी हमें पूरे दिन खुशनुमा रखते और वो ’10 मिनट’ में गुजरे एक-एक पल को हम दुबारा ‘rewind” करके जिया करते।
किसी ने क्या खूब कहा हैं~
गुफ्तगू उनसे होती,
यह किश्मत कहाँ..
ये भी उनका कर्म हैं,
कि वो नज़र तो आएं…
लेखक – सागर गुप्ता
Very nice , innocent love story sagar !
Thank u Di 🙂