मजबूरी
मजबूरी
तुम्हारे हाथ में सरकार है, हम इसलिए चुप हैं ।
हमारे सामने घर बार है, हम इसलिए चुप हैं ।
जिसे भी चाहते हो तुम, चढ़ाते हो सलीबों पर ।
तुम्हारा ये ही कारोबार है, हम इसलिए चुप हैं ।
सियासत फिर सियासत है, किसी को कुछ नहीं देती ।
तुम्हारे पक्ष में दरबार है, हम इसलिए चुप हैं ।
हजारों बंदिशों को भी तोड़कर हम निकल आए ।
हमारी जीत फिर भी हार है, हम इसलिए चुप हैं ।
जिसे चाहे बना दोगे, जिसे चाहे मिटा दोगे ।
सियासत का खुला बाजार है, हम इसलिए चुप हैं ।
सजा किस-किस को दोगे तुम सभी डूबे गुनाहों में ।
कि सारा देश ही बीमार है, हम इसलिए चुप हैं ।
कवि अशोक कुमार गुप्ता द्वारा रचित