हम, तुम और यह तन्हाई
हम, तुम और यह तन्हाई
एकांतवास और दिनचर्या के वे चौदह दिन,
यूँ ही कट गये अलग, अकेले, कैसे तेरे बिन?
तेरे क़दमों की आहट और सुबह मेरा जग जाना,
नींबू -पानी और गरम चाय का तेरा नज़राना,
बहुत याद आयेगी,बहुत बहुत याद आयेगी ।
प्रभु की दैनिक पूजा और उसी बीच मेरा नास्ता,
गरम पराँठे,पूरी भाजी और कभी नूडल्स पास्ता,
बहुत याद आयेगी,बहुत बहुत याद आयेगी ।
बीच बीच में तेरा मेरे कमरे में चुपके से आना,
दरवाज़े से झाँकना और मुस्कुरा हौसला बढ़ाना,
बहुत याद आयेगी,बहुत-बहुत याद आयेगी।
मीठे विभिन्न फलों के साथ सूखे मेवे और बादाम,
दोपहर के भोजन में बिरयानी पुलाव फिर आराम,
बहुत याद आयेगी, बहुत बहुत याद आयेगी ।
संध्या वंदना के बाद गरम सूप के साथ नमकीन,
खा तो लेता हूँ पर पेट हो जाता है थोड़ा गमगीन,
बहुत याद आयेगी, बहुत बहुत याद आयेगी ।
रात्रि खाने में तेरे हाथों के वो मुलायम फुलके,
दाल तड़का,सब्ज़ी और आँवले के मीठे मुरब्बे,
ये मीठी यादें मेरे जीवन को हरदम गुदगुदाएँगी,
बहुत याद आयेगी, बहुत बहुत याद आयेगी ।
(कोरोना से ठीक हुये एक पति का अपनी पत्नी को साभर समर्पित)
कवि प्रभात कुमार गुप्ता