जिंदगी

जिंदगी
जहर पीता है कोई और कोई शराब पीता है,
जैसे भी हो सके यहाँ, हर कोई जीता है |
सैकड़ों दर्द छिपे हैं, हर एक के सीने में,
मगर कहे किससे, हर कोई तो आंसू पीता है |
कोई महलों में, कोई फुटपाथ पर लेटा है,
नसीब है अपना, कोई रो के, कोई हँस के जीता है |
कहीं शराब बहाई जाती है, कोई दवा को तरसे है,
किसी के हाथ में जाम, किसी का हाथ रीता है |
रोता है हर पल कोई, कोई कहकहे लगाता है,
कोई मखमल से लिपटा है, कोई गिरेबां को सीता है |
कवि – अशोक कुमार गुप्ता