खामोश अल्फाज़
खामोश अल्फाज़
न जाने कितनी आन्धियां
कितनी चिन्गारियां
दफन हैं
जब तक तू खामोश है
सदियों से
और सदियाँ लगेंगी
दरजा का चरचा होगा केवल
सुर्खियों के लिए
अपने अपने मतलब के लिए
सहानुभूति भी मिलेगी
और सराही भी जायेगी
वो भी मतलब के लिए
और जिस दिन
सब सहने की बजाय
कहना सीखेगी तू
और स्वीकारी जायेगी
वो ही तेरा पल कहलायेगा
कुछ कहना न होगा तुझे
तू खुद में सिमट आयेगी
बेमतलब ही हर शै मे
तू ही तू छा जायेगी।।
रचयिता रेणु पांडे
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