तलाश – अपने अस्तित्व की
तलाश
तलाशता है एक पुरुष
स्त्री में एक मां,
एक बेटी,
एक प्रेयसी
एक संगिनी
वो जो सुन सके ,
जो लुटा सके
जो डपट सके
बांध सके जो उसे अपने में।
वो तलाशता है अपनी परछाई
अपना यकीन,
हर रिश्ते की धुरी में
उसे अपना ही वजूद
बस नजर आता है,
वो अधिपत्य पाता है।।
तलाशती है एक स्त्री,
वो कांधा,वो सुकून
वो सहारा और आसरा
वो नसीहतों में तलाशती है
मर्जियां अपनी,
वो चाहतों में
खो देती है ख्वाहिशें।
राखी के धागों में,
बाबा के सपनो में,
अम्मा की रुकावटों में
वो खुद को रखती है ताक पे
सबकुछ वार कर
सबको पूरा करती है,
खुद को हार कर।
बिछड़ जाती है खुद से
वो जीती है उन रिश्तों में
खुद को भूल जाती है।
सुकून पाती है सबकी आंखों में
और बारिशों में रो लेती है,
अश्कों को छिपा अपने,
दामन वो भिगो लेती है।।
रचयिता रेणु पांडे