जिंदगी तेरे रंग हज़ार

जिंदगी तेरे रंग हज़ार
कभी आपने रुक कर जिंदगी को कभी अच्छे से देखा है? कभी ध्यान दिया कि वो कैसी दिखती? खूबसूरत है या कुरूप? कभी उसके आँखों में आँखें डाल उसकी गहराई नापने की कोशिश की? कभी उसे महसूस करने की कोशिश की?
नहीं न… तो फिर आपने जिंदगी में किया क्या? साथ तो सब कभी न कभी छोड़ देते, पर ये जिंदगी ही हैं, जो अंतिम सांस तक आपके संग रहती। आपके दुख में कोई साथी हो या न हो, पर ये जिंदगी हर विकट स्थिति में आपके साथ हमेशा रहती। लेकिन अफ़सोस! हमने कभी इस जिंदगी को जानने की कोशिश न की।
कभी ये नहीं देखा कि आखिर वो क्या चाहती थी हमसे। उसकी क्या उम्मीदें थी हमसे?
आपने बस दूसरों की बातें सुनी। दूसरों को खुश करने के चक्कर में खुद की जिंदगी का गला घोंट दिया। दुनिया वाले क्या सोचेंगे, दुनिया वाले क्या कहेंगे, बस ये सोच कर आपने वो सब किया, जिसकी उम्मीद दुनिया वाले करते थे आपसे। आपने कभी अपनी जिंदगी की बात सुनी? शायद कभी उसकी गूँज आपके कानों तक जरूर गई होगी, लेकिन आपने उसे सुन कर अनसुना कर दिया होगा।
आपकी जिंदगी कुछ अलग आपको बनाना चाहती थी, क्योंकि उसने आपको इतने करीब से जाना था, जितना कोई नहीं जान सकता। वो चाहती थी कि आपके मन में जो है, वही आप करे। अगर आपको कुछ सृजनात्मक चीज़ करने की इच्छा होती, तो जिंदगी चाहती थी कि आप वही करे। लेकिन आपने चंद रुपये एकत्रित करने के चक्कर में उन सारी चीज़ों से मुंह मोड़ लिया, जिसके लिए आप वास्तव में बने थे।
आपने भी वही किया, जो करोड़ों लोग करते रहे है। एक पेंटर जो शायद अगला ‘एम. एफ. हुसैन’ बन सकता था, वो अंततः एक इंजीनियर बन गया। एक कहानीकार जो शायद ‘इंटरनेशनल बेस्ट सेलर’ बन सकता था, वो एक कंपनी का बस मैनेजर बन कर रह गया।
यकीनन पैसे तो उसने बहुत कमाये, अपने फ़ैमिली को भी अच्छी जिंदगी दी लेकिन वो अंदर ही अंदर रोता रहा। शायद उन अश्रुओं को किसी ने देखा न होगा, क्योंकि वो तो कब के सुख चुके थे, समाज के मुताबिक चलते-चलते। पैसे तो बहुत कमाए हमने, बाहरी आडंबर भी बहुत पाल लिए, लेकिन कभी खुद में उतर कर हमने देखा कि क्या हम वास्तव में खुश है? या बस ताउम्र जिंदगीभर खुश रहने का नाटक करते रहे।
समाज के मुताबिक चलते-चलते हमने उन खुशियों का बलिदान कर दिया, जिसके लिए हम वास्तव में बने थे। हाँ, शायद पैसे कम कमाते हम, लेकिन अपने अंतिम क्षणों में ये एहसास तो न होता कि काश! हमने अपनी सुनी होती। काश! हम वो करते, जो हम चाहते थे। काश! हमने पैसे कमाने के साथ-साथ अपने परिवार के साथ भी अच्छा समय व्यतीत किया होता।
काश! हमने ऐसा किया होता। काश, हमने वैसा किया होता।
पर जब तक हम ये महसूस करते, तब तक हमारी जिंदगी हमारा दामन छोड़ देती और वो उसी श्रोत में विलीन हो जाती, जहाँ से हमारा उद्भव हुआ था।
उसी कशिश को पूरा करने के लिए हम पुनः जन्म लेते और ये चक्र चलता रहता।
किसी ने क्या खूब कहा है-
शायद यही जिंदगी का इम्तिहान होता है,
हर एक शख्स किसी का गुलाम होता है,
कोई ढूँढता है जिंदगी भर मंजिलों को,
कोई पाकर मंजिलों को भी बेमुकाम होता है…
सागर गुप्ता