सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ (Part 5)
सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ
कुछ कहानियों में अनेकों कहानियां छिपी होती। शायद मेरी कहानी भी इन्हीं में से एक है।
click here to read all episodes https://www.storyberrys.com/category/series/safar/
अब तक आपने पढ़ा कि कैसे रुमाल वाली घटना ने अंशुमन और वंशिका के बीच उत्पन्न हुए मनमुटाव को तदक्षण मिटा दिया। रिश्ते भी ऐसे ही होने चाहिए, जहाँ रूठना-मनाना चलता रहे। लेकिन हमेशा के लिए रूठ कर अलग हो जाना सही बात नहीं है। अब पढ़ते है आगे…
अध्याय 5- हमारी अधूरी कहानी
‘तुम न अजीब हो!’ थोड़ी देर बाद अंशुमन ने उस चाय वाली घटना को याद करते हुए वंशिका को कहा।
‘शायद हूँ या शायद परिस्थितियों की मारी।’ वंशिका ने अपने पैर की उँगलियों को देखते हुए कहा।
‘परिस्थितियों को बदला जा सकता है वंशिका।’
‘शायद सारी परिस्थितियों को नहीं। जो चीज़ बीत गई, उसे बदला जा सकता है क्या भला? हम न तो भूतकाल को बदल सकते हैं और न भविष्य को।’ वंशिका अब भी अपने उँगलियों को ही देखे जा रही थी।
‘बात तो तुम्हारी सही है। पर ये भी तो हो सकता है कि हम अपने वर्तमान को बदल कर अपने भविष्य को बदल दे।’ अंशुमन ने हल्की-सी मुस्कान के साथ कहा।
वंशिका ने इस बात पर कोई जवाब नहीं दिया।
अंशुमन समझ नहीं पा रहा था या फिर शायद समझने की कोशिश नहीं करना चाहता था कि ऐसी क्या बात थी, जो वंशिका को अंदर ही अंदर खाई जा रही थी।
अंशुमन ने फिर थोड़ा-सा रुक कर कहा, ‘हाँ, अगर कोई अपने वर्तमान को बदलना ही न चाहे तो भविष्य को बदलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन-सा है।’
अंशुमन ऐसा इसलिए कह रहा था कि जो कशमकश वंशिका के मन में चल रहा था, जिसे उसने अब तक अंशुमन के सामने बयां नहीं किया था, उससे वंशिका बाहर निकल आए क्योंकि अंशुमन जानता था कि बुरी यादें दीमक की तरह होती, जो आपको अंदर ही अंदर खोखला कर देती है।
अंशुमन को थोड़ा संशय होने लगा कि कहीं वंशिका को किसी से प्यार तो नहीं और इसलिए वो अजीब व्यवहार कर रही। यह सोच उसके जेहन में आने से ही वो तड़प उठा। उसके अंदर की बेचैनी बहुत बढ़ गई क्योंकि अंशुमन को वंशिका से प्यार हो चुका था, जिसका अंदाजा उसे भी नहीं था।
इसके बावजूद भी उसने हिम्मत जुटाई, “वंशिका, तुम्हे कहीं किसी से प्यार तो नहीं है?”
“प्यार करने का मौका दिया कहाँ किसी ने।” वंशिका के आवाज़ में एक अजीब-सा ठहराव था।
“वंशिका, तुम इतना घुमा-फिरा कर बात नहीं किया करो। साफ-साफ बोला करो। मुझे तुम्हारी बात समझ ही नहीं आती।” अंशुमन थोड़े गुस्से में था।
इस बात पर वंशिका थोड़ा हँस दी।
“ठीक है मालिक। तुम बताओ तुम्हें कभी किसी से प्यार हुआ है अंशुमन?”
“पता नहीं।” अंशुमन ने कहा।
“देखो, अभी थोड़े देर पहले मुझे दोष दे रहे थे कि मैं बात घुमाती-फिराती, मानो बात कोई लड़का हो, जिसे घुमाया-फिराया जा सकता। अब देखो, तुम पहेलियों में बातें कर रहे हो।” वंशिका ने अपने दाएं हाथ को अपने कमर में रख कर आँखों की कठपुतली को थोड़ा छोटा करते हुए नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।
“नहीं बाबा। पहेली नहीं बुझा रहा। मुझे पता ही नहीं है कि जो भी था वो, वो प्यार था या फिर कुछ और।” अंशुमन ने गम्भीरता के साथ कहा, मानो उसके साथ बीती वो पुरानी बातें उसके आँखों के सामने किसी फिल्म के रील की तरह निकल गयी हो।
“पूरी बात बताओगे अंशुमन।”
“ठीक है बाबा तो सुनो।”
“ये बात बीतें लगभग 5 साल हो गए है। उससे पहली मुलाकात इंटर-कॉलेज फेस्ट में हुई थी। वो प्रेसीडेंसी कॉलेज को रिप्रेजेंट कर रही थी और मैं अपने कॉलेज संत ज़ेवियर कॉलेज को। वाद-विवाद प्रतियोगिता (Debate Competition) में उसके तर्क सब को चुप कर दे रहे थे। मैं तो उसके बोलने के तरीके से इतना प्रभावित था कि जब हमारा कॉलेज वाद-विवाद प्रतियोगिता में उसके कॉलेज से हार गया तो मैं उसके पास खुद जाकर उसे बधाईयां दिया। वो बहुत सारी लड़कियों से घिरी हुई थी, जब मैं उस भीड़ को चीरते हुए उसे बधाई देने को पहुंचा। अचानक से किसी अनजान लड़के से बधाई पाकर वो मेरे शर्ट में लगे I-card को पढ़ने लगी। एक बार वो मुझे देखती और फिर मेरी i-card को। उसको दुविधा में देख मुझे अपना इंट्रो खुद देना पड़ा कि मैं वहीं बंदा हूँ, जो वाद-विवाद प्रतियोगिता में उससे हारा था।” अंशुमन के आँखों में उन बीती बातों को याद करते हुए एक अलग-सी चमक और उत्साह साफ-साफ नजर आ रहा था।
जब वंशिका ने देखा कि अंशुमन उन लम्हों को याद करते हुए उन्हीं लम्हों में कहीं खो गया है, तब उसने कहा, “आगे बताओ। मैं सुन रही हूँ।”
“हाँ…सॉरी..उस दिन तो उसे मेरा व्यवहार अजीब लगा। अजीब क्यों न लगे, जब कोई अजनबी आपको अचानक से व्यक्तिगत रूप में बधाई दे और वो भी तब, जब वो आपसे ही हारा हो। कॉलेज फेस्ट सात दिनों का था। कॉलेज फेस्ट के अंतिम दिन रात को एक पार्टी रखी गई थी, जिसमें सबको कोई न कोई #retro_look में आना था। मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मेरे दोस्तों ने मुझे सुपरमैन के costume में क्राइम मास्टर गोगो बना दिया।”
“हा हा। क्राइम मास्टर गोगो। तो तुमने किसी की आँखें निकाल कर गोटियां खेली या नहीं?” वंशिका ये बोलकर हँसने लगी।
“चुप करो। उस समय मैं बहुत शरीफ था। मुझे ये सब समझ नहीं आता था। आगे सुनना है, या फिर मैं बात यहीं खत्म करूँ।”
“अच्छा। सॉरी बाबा। आगे बताओ। मुझे तुम्हारी प्यार-भरी कहानी सुन बहुत मजा आ रहा है। मैं जानना चाहती हूँ कि आगे हुआ क्या?” वंशिका ने अपने दोनों हाथों को एक-दूसरे के बाहुपाश में जकड़ते हुए उत्साह के साथ कहा।
“पहली बात वो प्यार नहीं था। समझी वंशिका।”
“प्यार नहीं था तो क्या था? तुम्हें कोई लड़की की बातें पसंद आती। तुम उसके सामने बेवकूफों जैसी बातें करते तो इसे प्यार नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे अंशुमन?”
“दोस्ती कहेंगे। आपको किसी की व्यक्तित्व, उसके बात करने का तरीका अच्छा लगे तो इसका मतलब ये नहीं हुआ कि उससे आपको प्यार है। अब आगे सुनोगी भी?”
“हाँ.. सॉरी.. सॉरी.. यूं कंटिन्यू“
तो सुनो। उस पार्टी में वो भी आई थी। माधुरी दीक्षित का वो गाना है न… 1,2,3….4,5..6,7…12…13..
उस वाले रंग-बिरंगे कपड़ों में। वैसे तो वो चसमिस थी, तो उसने अपने कपड़े तो माधुरी जी की तरह हू-ब-हू पहन लिए थे, बस अपना मोटा चश्मा नहीं उतारा था। पर वो उसमें भी बहुत अच्छी लग रही थी। वो अपनी सारी दोस्तों से घिरी हुई थी। घिरी तो होगी ही न, लगभग सारे अवार्ड उसके कॉलेज ने उसके बलबूते ही जीते थे।
पार्टी में मेरी नज़र, उसकी नज़र से मिली और मैंने उसे देख मुस्कुरा दिया। उसने भी एक बड़ी-सी स्माइल दी।
मैं ख़ुश था कि उसने मुझे पहचाना तो। थोड़े देर बाद वो अकेली थी। मुझे भी अकेला पाकर वो मेरी ओर बढ़ने लगी। उस समय मैं कैसा महसूस कर रहा था, बताना मुश्किल है। ए.सी. चलने के बावजूद मेरे सर में पसीने की बूंद जाने किधर से आ गयी थी। उसने अपना हाथ बढ़ाया और अपना इंट्रो दिया कि वो सौम्या है। उसके हाथ को छूने से ही मतलब मेरे रीढ़ की हड्डी में एक अजीब-सी बिजली मानो कौंध पड़ी थी।
“अंशुमन, अब इसे प्यार नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे?” वंशिका ने दुबारा से अंशुमन को बीच में रोकते हुए कहा।
“नहीं। प्यार नहीं था वो। किसी भी लड़की से पहली बार मिलने पर वैसा ही लगता है। उसे प्यार नहीं, infatuation कह सकते।”
“क्या हर लड़की को देखने पर वैसा ही महसूस होता? आर यूं श्योर?” वंशिका रुकने को राजी न थी।
“हाँ। प्यार नहीं था वो। बस एक नई दोस्ती की शुरुआत थी।” अंशुमन बात को समझने को राजी न था।
“ठीक है। आगे बताओ। पर प्लीज.. थोड़ा शार्ट में।” अंशुमन द्वारा उस रिश्ते को प्यार न मानने से अनजाने में ही वंशिका झल्ला चुकी थी।
ठीक है। सुनो फिर एकदम शॉर्ट में। उसने अपने बारे में बताया कि वो पंजाब से थी और प्रेसीडेंसी कॉलेज के हॉस्टल में रहती थी। मैंने उससे विदा होते समय उससे उसका नंबर डरते-डरते मांग लिया था और उसने अपना नंबर मुझे दे भी डाला। पता नहीं मेरे जैसे चम्पू को उसने नम्बर दिया भी तो कैसे?
फिर हमारी बातें धीरे- धीरे गुड मोर्निंग से स्टार्ट हुई। उस समय तो मेरे पास एंड्रॉयड फ़ोन था नहीं तो मैसेज पैक भरवा कर मैं उससे बस मैसेज में बातें करता था। हर सुबह सात बजे उठ कर मैं उसे गुड मॉर्निंग याद करके विस करता था और बदले में वो भी गुड मॉर्निंग एक बड़ी स्माइली के साथ भेजा करती।
रात को भी वैसे ही मैं उसे गुड नाईट मैसेज करता था। मेरी ज़्यादा हिम्मत नहीं हुई उससे कुछ और बात करने की। कभी-कभी जब उसके गुड नाईट का जवाब नहीं आता था तो मैं व्याकुल हो उठता था और बार-बार मिनटों में रात भर मोबाइल देखा करता था कि उसका रिप्लाई आ जाएं। फिर अहले सुबह उसे दुबारा मैसेज करता था कि वो ठीक है न। रात को जवाब नहीं आया। बदले में वो जवाब देती कि हां, वो ठीक है। रात को जल्दी सो गई थी। बहुत दिनों तक यूँ ही गुड मॉर्निंग और गुड नाईट का दौर चलता रहा। रात को एक दिन लगभग 10 बजे उसका अचानक से कॉल आ गया। वो दिन मुझे आज भी याद है। मैं अचानक से उसका नाम पढ़ कर तुरंत बेड से उठ कर खड़ा हो गया, मानो किसी को आर्मी ट्रेनिंग के लिए आर्मी ऑफिसर द्वारा अचानक से उठा दिया गया हो।
उसकी पहली आवाज़ फ़ोन में सुन कर मेरे दिल को जो शुकुन मिला, वो मैं बता नहीं सकता। उससे यूँ ही इधर-उधर की बातें करते-करते कब सुबह हो गयी, पता भी न चला।
उस दिन मैं रात भर नहीं सोने के बाद भी इतना तरोताजा महसूस कर रहा था कि मैं बयाँ नहीं कर सकता।
धीरे-धीरे रात को उससे बात करना मेरी आदतों में सुमार हो चुका था। उसने पहले ही हिदायत दे दी थी कि वो कॉल कभी न करे। जब वो फ्री रहेगी तो अब वो अपने दोस्त के नम्बर से कॉल करेगी क्योंकि अगर उसके परिवार वालों को पता चल गया कि वो किसी से रात को फ़ोन पर बात करती है तो बहुत समस्या हो जाएगी।
उससे बात करते-करते लगभग 3-4 महीने बीत गए थे। लेकिन कॉलेज फेस्ट के बाद उससे मुलाकात कभी नहीं हुई थी।
एक दिन मैंने उससे मिलने की इच्छा जताई। उसने साफ-साफ इंकार कर दिया।
मैंने उसे भरोसा दिलाया कि हम बस दोस्त है और दोस्ती के नाते तो मिला जा सकता है।
बहुत बार मनाने के बाद वो एक दिन मिलने को राजी हो गई। मुझे याद है उस नवंबर महीने की सुबह..मौसम में ठंड बढ़ने लगा था।
“अंशुमन, तुम कहानी बहुत जल्दी-जल्दी नहीं सुना रहे?” वंशिका ने बीच में टोकते हुए कहा।
“वंशिका, तुम न बहुत कंफ्यूज आत्मा हो। अपने कहा कि कहानी शोर्ट में सुनाने और अब कुछ और।“
“अच्छा..सॉरी..शोर्ट में ही सुनाओ।“ वंशिका हँसते हुए कही।
हम एक पार्क में मिले थे। यूँ तो मैं उसके साथ मूवी थिएटर में मिल कर मूवी देखना चाहता था। उसने हाँ भी कर दिया था। फिर पता नहीं, उसके दोस्तों ने उसे क्या पढ़ा-लिखा दिया कि वो किसी सार्वजनिक जगह में मिलने की जिद्द करने लगी और इस तरह हमने मिंटो पार्क में मिलने का प्लान बनाया।
मिंटो पार्क शहर के दिल में बसा एक बेहद खूबसूरत पार्क था, जहाँ बच्चे, बुड्ढे, दोस्त सभी अपना दिल बहलाने आया करते थे। अनेको प्रकार के फूलों और पेड़ों से पार्क भरा हुआ था। वैसे भी पेड़-पौधे थे, जो कि भारतीय महाद्वीप में कहीं नहीं उगते थे। पतझड़ मौसम के कारण पूरा पार्क पत्तों से ढका हुआ था।
उसने उस दिन पीली रंग की जड़ीदार कुर्ती और नीले रंग की जीन्स पहनी हुई थी। सर्द मौसम से उसका चेहरा थोड़ा-थोड़ा खिंचा-खींचा था और उसके मोटे चश्मे हर बार की तरह उसके आँखों की चमक थोड़ा और बढ़ा रहे थे। उसको शायद इस तरह मैंने पहली बार देखा था। मेरी आँखें उससे हटने का नाम नहीं ले रही थी और उसकी आँखें मुझसे नजरें मिलाने को तैयार नहीं थी।
उसके साथ पार्क में यूँ ही चक्कर लगाना, मेरे बेहतरीन पलों में से एक था। वैसे तो फ़ोन में हम ढेरों बातें किया करते थे, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से मिलने पर न वो कुछ कह रही थी और न मेरी हिम्मत हो रही थी कि उससे कुछ कहूँ। उससे बहुत सारी बातें शब्दों के मायाजाल से परे होकर अंदर ही अंदर हुई। जब हम चलते-चलते बिना कुछ कहे थक गए तो एक सीमेंट की सीट पर बैठ गए। वहाँ भी हमारी कुछ बात नहीं हो पा रही थी। हम बस दूर तक फैले हुए झील को एकटक देखे जा रहे थे।
मुझे लगा कि कुछ तो पहल मुझे खुद करनी पड़ेगी, नहीं तो ये लड़की जो वाद-विवाद प्रतियोगिता में सबका कान काट दे रही थी, वो यूँ ही कुछ न कहेगी।
वहाँ से केतली और बड़ा-सा कंटेनर लेकर जा रहे चाय वाले को रोक कर मैंने दो चाय बनवाई और उसकी और एक चाय बढ़ा दिया। उसने भी बिना कुछ कहे चाय ले लिया। सुर-सुर करके एक घूँट चाय अपने ओंठ से लगा लेने के बाद उसने चाय की कुल्हड़ सीट में रख दी। मैंने भी देखा-देखी अपनी चाय की कुल्हड़, उसके कुल्हड़ के बगल में रख कर उसकी चाय की कुल्हड़ को अपने ओंठ से लगा लिया।
“मैंने बोला था तुम्हें कि कहानी शार्ट में बताने। हर चीज़ बारीकी से बताने की जरूरत नहीं है।” वंशिका की बातों में एक प्रकार का जलन साफ-साफ नज़र आ रहा था।
“हा.. हा..क्लाइमेक्स यहीं पर है। इसलिए इतनी डिटेलिंग करनी पड़ रही। अब सुनो।
हम यूँ ही वहाँ बैठे रहे एकाध घंटे। समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोला जाए, क्या सुना जाए। हम बस एक-दूसरे के दिल की धड़कनें महसूस कर रहे थे कि अचानक बिन मौसम बरसात हो गई।
यूँ तो काले बादल आकाश में पहले से ही चहलकदमी कर रहे थे। पर अचानक से इतनी तेज बारिश शुरू हो जाएगी, इसका अंदाजा नहीं था। मैं और वो किसी घने पेड़ के नीचे शरण लेने के लिए एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए भागे। पर जहाँ हम बैठे हुए थे, उसके आसपास बोगनवेलिया और स्ट्रॉबेरी के छोटे-छोटे झाड़ी वाली सुंदर क्यारियां थी, पर वो हमें इस बारिश से बचाने में असमर्थ थी। वहीं दूर कुछ बलूत(oak) के पेड़ लाइन से एक-दूसरे से कुछ दूरी पर तटस्थ खड़े थे।
हमदोनों ने उनमें से ही एक बलूत के पेड़ के नीचे शरण ली। पर बारिश की तेज बौछार उस पेड़ के पत्तों को भेद कर हमें भीगो रही थी। उसने बारिश की बूंदों को हाथ में लेकर उनसे खेलना शुरू कर दिया। तभी बिजली की एक जोरदार कौंध ने उसे न चाहते हुए भी मेरे काफी करीब ले आया।
वो मेरे बाहुपाश से निकलने ही वाली थी कि बिजली की कौंध ने हमें एक-दूसरे से मिलाने की दुबारा भरपूर कोशिश की।
वो अब मेरे बाहुपाश में जकड़ गई थी। उसी दौरान अचानक से मेरे ओंठ ने उसके ओंठ को छू लिया। ऐसा करने में मेरी कोई मंशा नहीं थी। ये तो बिना मेरे चाह के खुद-ब-खुद हो गया था। उसने भी हठ नहीं किया और इसी तरह कुछ देर तक हमारे ओंठ एक-दूसरे को नम करते गए।
‘छि….शर्म नहीं आई तुम्हें और सुनो! मैंने तुम्हें अपनी कहानी सुनाने को कहा था, कोई फिल्मी वाक्या नहीं।’ वंशिका गुस्से में थी।
‘शर्म का पता नहीं। पर शायद उस क्षण मैं अपने नियंत्रण में नहीं था। ये कोई फिल्मी वाक्या नहीं, मेरी अपनी कहानी है। वैसे भी फ़िल्म के कुछ सीन सही किस्सों और कहानियों से प्रेरित रहते।’ अंशुमन ने मुस्कुराते हुए कहा।
‘सुनो अंशुमन! तुम अपनी कहानी का मुख्य भाग सुनाओं और इन पलों को फिल्मों में सेंसरशिप की तरह काटते हुए सुनाओ।’
‘देखो। ये क़िस्सा इसलिए सुनाना पड़ रहा क्योंकि यहीं से हमारे बीच की दूरियां बढ़ने लगी और कुछ ही महीनों में इन दूरियों को नापना आसान नहीं था।’ अंशुमन गम्भीर था।
“इतने करीब होने के बाद यूँ अचानक दूरियों का बढ़ना मुझे समझ नहीं आ रहा। अंशुमन तुम अपनी कहानी पूरी करो। इस बार तुम्हें नहीं टोकूँगी।’
‘ठीक है.. तो सुनो.. जैसे ही बारिश कम हुई, वो अचानक से मेरे बाहुपाश के जंजाल से निकल कर बिना कुछ कहे वहाँ से निकल गई। उसने अलविदा कहने की भी कोशिश नहीं की। मैं चाहते हुए भी उसे रोक न सका। मानो मेरे पैर वहीं जम गए हो। जब बारिश रुकी और मैं अपने कमरे में पहुंचा तो उसे फोन करने की कोशिश की। बहुत रिंग होने के बाद भी उसने फ़ोन नहीं उठाया। मैंने कई मैसेज भी किये, पर कोई जवाब नहीं आया। उसी दौरान मुझे नींद आ गई और मैं गहन निद्रा में सो चुका था। मेरी नींद रात के लगभग 9 बजे खुली। मैंने अपना फ़ोन उठाया तो देखा कि उसका एक मैसेज आया हुआ था कि घर पहुँचे?
मैंने तुरंत उसे जवाब भेजा, “हाँ। तुम ठीक हो?”
“हाँ, ठीक हूँ। आज जो हुआ, उसे भूल जाना। वो नहीं होना था।”
इस मैसेज से मैं उस पल के एहसास को दुबारा जीने लगा था, फिर भी मैंने उसे जवाब भेजा कि ऐसा हो जाता है। कोई बड़ी बात नहीं है।
“तुम्हारे लिए ये छोटी बात होगी अंशुमन। मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।” उसने मुझे मैसेज भेजा।
उसके बाद मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या जवाब लिखूँ। तभी उसका दूसरा मैसेज आया, “तुम्हें मुझसे प्यार तो नहीं हो गया है न अंशुमन?”
मुझे पता था वंशिका कि वो प्यार था ही नहीं। कभी-कभी दोस्ती में ये सब हो जाता। कौन-सी बड़ी बात है? इसलिए मैंने उसे जवाब दिया कि मुझे कोई प्यार-व्यार नहीं हुआ है। हम बस दोस्त है। इससे आगे कुछ नहीं।।
कुछ देर तक उसका कोई रिप्लाई नहीं आया। फिर मैसेज आया कि सही कहा अंशुमन। हम बस दोस्त है और कुछ नहीं। उसने ये भी मैसेज भेजा कि अभी इन लफड़ों में पड़ना ही नहीं चाहिए। पहले हमें अपने कैरियर पर ध्यान देना चाहिए। इसलिए उसने मुझे अपने कैरियर में आगे बढ़ने को कहा।
उसने इतना आसानी से ऐसा कह दिया कि मुझे भी लगा कि जो उस पल हमदोनों के बीच हुआ था, उसको वो भूल कर आगे बढ़ना चाहती है। मैं भी जिंदगी के मजे लेना चाहता था।
पर उस दिन के बाद से उसका रवैय्या थोड़ा अजीब-सा हो गया था। पहले की तरह उसने बात करना बंद कर दिया। बस हां, नहीं में उत्तर देती। कुछ पूछो तो बताती भी नहीं।
कुछ महीनों बाद किसी छोटी बात को लेकर हमारी बहुत बड़ी लड़ाई हो गई और मैंने उससे बात करना बंद कर दिया। जब गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ तो मैंने सोचा कि उससे बात करूँ। फिर लगा कि वो भी तो पहल कर सकती थी। मैं अपने जीवन में रमने लगा। इसी तरह कॉलेज ख़त्म हो गई और कॉलेज ख़त्म होने के साथ ही मुझे एक अच्छी MNC में बढ़िया पैकेज में जॉब मिल गई। एक दिन रास्ते में मुझे उसकी एक मित्र मिल गई। मैंने उससे उसका हाल-चाल पूछा तो पता चला कि उसने कॉलेज करने के बाद कंपनी जॉइन तो की , लेकिन माँ-बाप के दवाब में उसे जॉब छोड़ कर घर आ जाना पड़ा।
एक दिन उसका मैसेज आया कि अंशुमन मेरी सहेली ने मुझे बताया कि तुम्हारी जॉब अच्छे कंपनी में लग गई है और तुम अच्छे पैकेज में काम कर रहे हो। मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ। अपनी पुरानी दोस्त को पार्टी नहीं दोगे।
मैं कॉलेज के बचकाने हरकतों से बाहर आ चुका था, तो भी पुराने दोस्ती के नाते मैंने उससे फ़ोन में बात करना शुरू कर दिया। पर पहले और अब मैं बहुत अंतर था। अब मेरी बहुत सारी महिला मित्र थी, मेरे कंपनी में। उनके साथ ऑफिस के बाद पब जाना, पार्टी करना मेरे दिनचर्या में शामिल हो चुका था। इसलिए मैं उससे अब ज्यादा बात नहीं कर पाता था। पर उसका मैसेज और कॉल मुझे हमेशा आता था और मैं कई बार जवाब भी नहीं देता था।
एक दिन उसने मुझे कॉल किया और कुछ देर बाद कहने लगी कि अंशुमन, मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूँ। मुझे उस समय ये एहसास नहीं हुआ था। पर तुमसे बिछड़ने के बाद ये एहसास हुआ कि वो प्यार ही था। दोस्ती नहीं।
उसकी इस बात से मैं झल्ला उठा। मुझे लगा कि अब जब मेरी इतनी अच्छी नौकरी लग गई है तो उसे मुझसे प्यार हो गया है। मैंने उसे शख्ती के साथ कह दिया कि मुझे तुमसे कभी प्यार नहीं हुआ था। हम बस दोस्त थे और कुछ नहीं। उसने सॉरी कह कर फिर कोई रिप्लाई नहीं दिया।
पर उस दिन के बाद से वो औऱ अजीब-सी हो गई। मुझे पुरानी-पुरानी बातें याद करवाने लगी। मुझे एहसास दिलवाने लगी कि शायद मुझे भी उससे प्यार था और इसलिए पार्क में उस दिन वो सब हुआ था। पर मैं जानता था कि वो प्यार नहीं, बस आपसी सहमति से की गई थोड़ी मस्ती थी। इसलिए मैंने उसे उस दिन फ़ोन में खूब डाटा। उसने कुछ नहीं कहा और फ़ोन रख दिया ।।
कुछ एकाध हफ़्ते बाद उसका मैसेज आया कि अब मैं तुम्हें कॉल या मैसेज करके तंग नहीं करूंगी। उसने ये भी लिखा कि अंशुमन शायद तुम अपने जीवन में काफी आगे निकल गए हो, पर मैं तो वही रुकी हुई हूँ।
इसका मतलब तो मुझे अब तक समझ नहीं आया। पर हाँ.. वंशिका, उसके बाद उसका कोई फ़ोन या मैसेज नहीं आया। मैंने फोन लगाने कि कोशिश भी की। पर फ़ोन नहीं लगा।
उसकी एक बात इतने सालों बाद भी मुझे आज भी खटकती है कि अंशुमन, तुम तो अपने जिंदगी में आगे निकल गए, पर मैं तो अब भी वही रुकी हुई हूँ। मैं उससे मिल कर समझाना चाहता हूँ कि हम बस दोस्त है और कुछ नहीं। और उस दिन जो हुआ, बस वो हो गया। पर अब उससे कोई कांटेक्ट ही नहीं हो पा रहा ।
बताओ वंशिका, ऐसे भी प्यार होता है क्या?
“तो प्यार कैसे होता है अंशुमन? क्या फिल्मों की तरह आपके पीछे गिटार बजेगा, तब आपको लगेगा कि हाँ, मुझे प्यार हो गया।” वंशिका की आवाज में गंभीरता था।
“क्या वंशु, तुम भी। गिटार नहीं बजेगा, लेकिन केवल एक बार मिलने से प्यार थोड़े हो जाता और इतने सालों बाद उसको पता चला कि उसे मुझसे प्यार है।”
“लोगों को एक क्षण एक-दूसरे को देखने से प्यार हो जाता। Love at first sight सुने हो या नहीं? तुम लोग तो इतने दिनों से बातें कर रहे थे। इतने करीब थे एक-दूसरे के। तो प्यार क्यों नहीं हो सकता?” वंशिका ने कहा।
“वंशिका, बोलना तो नहीं चाहिए, पर तुम्हें ऐसा इसलिए लगता क्योंकि मैंने उसे पार्क में किश किया था। कौन-सी बड़ी बात हो गई? आजकल तो ये सब कॉमन है। आजकल लोग मिलते-जुलते है, एक-दूसरे के साथ बहुत सारा समय व्यतित करते है और कभी-कभी कुछ निजी संबंध भी उनमें हो जाता, फिर दोनों अपने रास्ते निकल जाते। किसी को कोई अफ़सोस नहीं होता।“
“अंशुमन, शायद तुम्हारे लिए छोटी बात होगी। पर उसके लिए वो बहुत बड़ी बात थी। मैं भी एक लड़की हूँ, समझ सकती हूँ कि उस पर क्या बिता होगा। और जो तुम ये आजकल के कॉमन हो चुके बात की बात कर रहे हो न, शायद इसे ‘कैजुअल हुकअप’ कहा जाता। जो फ़्लर्ट करने से शुरू होता और पता नहीं कहाँ जाकर रुकता। पर ये ‘कैजुअल हुकअप’ से बात शुरू जरूर होती, पर बहुत बार ये प्यार में बदल जाता। हाँ, ये हो सकता है कि उस ‘कैजुअल हुकअप’ में सम्मलित दोनों पार्टनर्स को इस बात का अंदाजा न हो, पर बहुत बार उनमें से एक के लिए उस कैजुअल पार्टनर से दूर जाना बहुत मुश्किल हो जाता क्योंकि वो समझ जाते कि वो प्यार था, जो उन्हें इतने करीब ले आया।
खैर! तुम्हारे केस में ‘कैजुअल हुकअप’ की बात तो नहीं, पर दोस्ती वाली बात है। पर तुम्हें पता है अंशुमन कि तुम उसके बात से कब चूक गए? कब नहीं पकड़ पाये कि वो प्यार में थी?
“मैं ही बता देती हूँ अंशुमन। उसे उस पार्क वाली घटना की रात को ही समझ आ चुका था कि वो तुमसे प्यार कर बैठी है।” वंशिका बोले जा रही थी।
“क्या बोल रही हो वंशिका? उसने तो उसी दिन, रात को कह दिया था कि हम बस दोस्त है और कुछ नहीं और उसने मुझे मेरे कैरियर में भी ध्यान देना को कहा। तो तुम कैसे कह सकती कि उसे मुझसे प्यार हो गया था।?” अंशुमन ने धरल्ले से कह डाला।
“अंशुमन, यहीं तो तुम चूक गए।
वो अपने फ़ीलिंग को तुम्हारे सामने परोक्ष रुप में रख दी थी, वो तुम्हारे मन में टटोल रही थी, उसके लिए तुम्हारा प्यार। ये कोई फ़िल्म की कहानी नहीं है, जहाँ एक प्रेमी, दूसरे प्रेमी के सामने अपने एक घुटने में झुककर रिंग सामने रख कर शादी के लिए प्रोपोज़ करता है। असली जिंदगी में शायद ऐसा हाई क्लास वाले लोगों में होता हो, पर मिडिल और लोअर क्लास वाले लोग आज भी प्यार का इज़हार या तो बहुत हिम्मत करके पत्र के माध्यम से करते है या कभी-कभी उनकी फीलिंग ही बता देती कि उन्हें एक-दूसरे से प्यार है और उसका इज़हार वो एक-दूसरे के बस हाथ पकड़ कर भी कर देते।”
“अंशुमन, जब उसने कहा न कि जो हुआ, वो होना नहीं चाहिए था। वैसे उसने इसलिए कहा क्योंकि उस मुलाकात और उस मामूली से किश ने उसे ये एहसास दिलवा दिया था कि उसके मन में तुम्हारे लिए बेइंतेहा प्यार है। इसलिए उसने तुमसे ये भी कहा कि तुम्हारे लिए वो छोटी बात होगी, लेकिन उसके लिए वो बहुत बड़ी बात है क्योंकि उस छुवन ने उसे तुम्हारे बहुत करीब ले आया था। उसे विश्वास हो गया था कि तुम्हें भी उससे प्यार हो गया था। इसलिए उसने प्रत्यक्ष रूप से न पूछ कर घुमाते हुए ये पूछा कि तुम्हें उससे प्यार तो नहीं हो गया। तुम कभी समझ नहीं पाओगे अंशुमन कि जब तुमने उसे ये कहा होगा कि ये सब दोस्ती में हो जाता, कौन-सी बड़ी बात है, इस बात ने उस वक्त उसे कितना तोड़ दिया होगा। तुमने उसके खुद के वजूद को ही मिटा डाला। पर पता है अंशुमन कि उसने तुम्हें उस समय क्यों नहीं दुबारा इंसिस्ट किया कि तुम भी उसके अंदर के एहसास को जानो। वो इसलिए क्योंकि वो चाहती थी कि तुम अपने कैरियर में आगे बढ़ो। वो चाहती थी कि तुम प्यार के झंझट में न पड़के तुम उन ऊंचाईयों को छुओं, जिसके लिए तुम बने हो और जब तुमने वो मक़ाम प्राप्त कर लिया, तब उसने तुमसे अपने प्यार का इजहार किया और बदले में तुमने क्या किया अंशुमन? तुमने उसका दुबारा दिल तोड़ दिया।
इसलिए उसने ये कहा कि तुम तो अंशुमन अपने जिंदगी में काफी आगे निकल आए, पर वो तो वहीं की वहीं ठहरी रह गई। उसने तुम्हारे लिए इतना इंतेज़ार किया और बदले में तुमने उसे क्या दिया? धोखा?” वंशिका की आवाज़ में एक अजीब-सा दर्द झलक रहा था, जिसने अंशुमन के होश उड़ा दिए थे।
वंशिका की बातें सुनकर अंशुमन उन घटनाओं के सिरे को एक-दूसरे से जोड़ पा रहा था। उसे अब समझ आ गया था कि कुछ सालों पहले जो हुआ, उनमें बहुत सारी बातें छिपी हुई थी, जिसे वो कभी देख नहीं सका।
फिर भी अंशुमन ने वंशिका से कहा,”वंशिका तुम्हारी बात मुझे समझ आ रही। मैं समझ रहा कि मेरी क्या गलतियां थी। पर वंशिका, मुझे उससे सच में प्यार नहीं था, शायद उससे मेरी दोस्ती एक दोस्त से ज़्यादा थी, पर एक प्रेमी-प्रेमिका वाला एहसास मुझे कभी नहीं हुआ। तो फिर मैं उसके प्रपोजल को कैसे मान सकता था? किसी रिश्ते में प्यार तो होना जरूरी है न।” अंशुमन ने कहा।
“अगर प्यार नहीं था तो उससे इतनी रात तक बात क्यों करते थे? किसी दिन उसका जवाब नहीं आता था तो व्याकुल क्यों उठ पड़ते थे? क्यों उसे मिलने के लिए बार-बार बोलते थे?”
“क्योंकि वो मेरी एक अच्छी दोस्त थी। उसके साथ समय बिताना मुझे अच्छा लगता था और उससे ज्यादा कुछ नहीं।” अंशुमन ने जवाब दिया।
“प्यार की तुम्हारे लिए क्या परिभाषा है अंशुमन?” वंशिका ने पूछा।
“प्यार की परिभाषा तो नहीं पता। शायद मुझे प्यार हुआ ही नहीं है।” अंशुमन ने कहा।
“ठीक है अंशुमन। मत मानो कि तुम्हें उस लड़की से प्यार था। शायद तुमने प्यार को जाना, पर समझ नहीं पाया। पर जिस दिन तुम्हें खुद लगेगा कि तुम्हें किसी से सच्चा प्यार हो गया है तब तुम्हें ये भी समझ आ जायेगा कि उससे भी तुम्हारा एक प्यार-भरा रिश्ता जुड़ गया था। जिसे उसने तो समझ लिया, पर शायद तुमने दोस्ती के पर्दे में उसे समझने की कोशिश ही न की या सच बोलूँ तो इस ‘कैजुअल रिलेशनशिप’ वाले जमाने में तुमने उस प्यार को भी उसी में परिभाषित कर दिया।”
वंशिका की बातों का अंशुमन के पास कोई जवाब नहीं था। उसे भी यह लगने लगा था कि शायद वो रिश्ता दोस्ती नहीं, दोस्ती से बढ़कर था। पर दूसरी तरफ उसके मन का एक भाग या मानने को राजी न था कि उसे उससे सच में प्यार था। मन दो भागों में विभक्त हो चुका था। दोनों अपने-अपने तर्कों से ये संपुष्ट करने में लग चुके थे कि वो सही है और दूसरा गलत। कभी अंशुमन को मन के एक भाग का तर्क सही लगता तो कभी दूसरे भाग के तर्क का।
पर तर्कों से क्या हो सकता? तर्कों से तो सच को झूठ और झूठ को सच साबित किया जा सकता है। वकील साहेब लोग भी तो कोर्ट में यही करते है। तर्कों को अधूरे साक्ष्यों से जोड़ कर सच को भी गलत साबित करने का गुण उनमें आ जाता और उन्हीं तर्कों और अधूरे साक्ष्यों से कोर्ट किसी को दोषी और किसी को निर्दोष साबित कर देती। कभी सोचा है आपने, कोई घटना घटे कई साल हो जाते है और फिर भी तर्कों का दौर निरंतर चलते रहता और कई सालों बाद उस घटना का निर्णय दिया जाता, जो कि क्षण भर में घटा हो, जिसे बहुत कम लोगों ने देखो हो, पर साक्ष्यों और तर्कों की पोथियां बढ़ती जाती और वो 4-5 मोटी पोथियों का रूप ले लेती और फिर उन्हीं बेजान पोथियों के आधार पर निर्णय ले लिया जाता।
वंशिका भी तो तर्कों के आधार पर ही ये कह रही थी कि अंशुमन को उस लड़की से प्यार हो गया था। ये भी तो हो सकता कि उसके तर्क में सच्चाई न हो क्योंकि तर्क तो बस तर्क होते है, सच्चाई से उसका लेनादेना हो, ये जरूरी तो नहीं है।
उसने तो बस अंशुमन से उसकी कहानी को सुना था। उसने भी तो कहानी को एक पक्ष से सुना और जाना था, कहानी के दूसरे पक्ष की कहानी तो सुनना अब भी बाकी था, जो शायद उसको कभी पता नहीं चल पाएगा क्योंकि वो लड़की तो कबका अंशुमन के जिंदगी से दूर चली गई थी।
तो फिर उन दोनों के बीच की सच्चाई क्या थी? शायद वो भी उनके रिश्ते के साथ कहीं दफन हो चुका था।
xxxxxx
सबके जिंदगी में कुछ अधूरी कहानियां होती है, जो शायद शुरू ही होती है, अधूरी रहने के लिए। शायद कुछ लोग उसे भूली-बिसरी यादों के गर्त में कहीं छुपा देते। पर कुछ लोगों के लिए वो अधूरी कहानियां हमेशा उनके साथ रहती। तो सवाल ये उठता है कि क्या उन अधूरी कहानियों को पूरा किया जा सकता है? शायद नहीं.. क्यूंकि कपड़ों के फट जाने के बाद उसे जितना भी सी लो, उस सीने का दाग तो उस कपड़े में रह ही जाता है। तो अब मिलते है अगले अध्याय में…..
सागर गुप्ता