पितृ-मुक्ति अनुष्ठान का महात्मय

भाद्रपद महीने की पूर्णिमा यानी कि आज 20 सितंबर 2021 से पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2021) शुरू हो रहे हैं. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष को बहुत अहम माना गया है. 15 दिनों के इस समय में लोग अपने पूर्वजों (Ancestors) को याद करक उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म करते हैं.
||श्री सद्गुरवे नमः||
पितृ-मुक्ति अनुष्ठान का महात्मय
प्रिय आत्मन्,
आज दिनांक 11.08.2015 को ‘पितृ मोक्ष साधना’ का अनुष्ठान प्रथम बार हमलोग कर रहे हैं| इसके लिए विशेष तैयारी की गयी |
पितृ मोक्ष साधना क्या है?
यहाँ पर पिण्ड हम लोग नहीं दे रहे हैं, यह बात समझो | सबसे पहले स्थान विशेष का सिलेक्शन होता है | आज चतुर्दशी के दिन काशी में ही यह क्यों करवाया? इस बार 136 वर्ष के बाद पिण्ड के समय में सोमवती अमावस्या है| ‘काशी’ शिव का क्षेत्र है| देखो, बद्रीनाथ- यानि विष्णु की नगरी से बदलकर हमने यह पर्व शिव की नगरी में कर दिया – इसमें भगवान् शंकर का हाथ रहा होगा| ज़रूर उन्होंने यह बदल दिया कि यह अमावस्या का दिन मेरा है| अब चूँकि सोमवती अमावस्या है, इसलिए पंचमुखी रुद्राक्ष मँगाया गया है| इसको खोजने में भी बहुत समय लगा है|
एक-एक सामान जुगाड़ने में बहुत समय और श्रम लगा है| परम्परावादी हो, इसलिए इतना ही जानते हो कि पण्डितजी आटा लायेंगे और ॐ पितृभ्यो नमः करके कुछ कर्मकाण्ड करा देंगे; फिर तुम भी मुक्त- वो भी मुक्त | अगर यही करना है, तो फिर हमारी ज़रूरत?
देखो यह पितरों के लिए यह विशेष अनुष्ठान है| कहीं किसी किताब में तुमको यह लिखा हुआ नहीं मिलेगा| हमारे आचार्यजी भी कहाँ-कहाँ से किताब खरीद कर लाये हैं| हमने कहा– रख दो इन्हें| यदि सब बात किताबों में छप जाती तो हमारी क्या ज़रूरत?
हमारे ऋषि लोग वैज्ञानिक थे| विज्ञान से उन्होंने यह अनुसंधान किया है कि जितना यह प्रत्यक्ष आपका जीवन है, इससे भी सैंकड़ों गुना परोक्ष आपके पितरों का जीवन है| आप किसी शक्ति से संचालित होते हो और वह शक्ति आपको हरदम जीवन भर संचालित करती है| माने आपके पास धन है, पुत्र है, पौत्र है, पद है प्रतिष्ठा है.. सब कुछ है, लेकिन आप अशांति के दौर से गुज़र रहे हो| मानसिक तनाव से गुज़र रहे हो, आत्महत्या के कगार तक पहुँच गये हो– आखिर क्यों? इसके पीछे आपके पितर हैं| भारतीय ऋषियों का अनुसन्धान है- वे शक्तिशाली हैं|
आप कार चलाते हो तो कार का स्टीयरिंग आपके हाथ में और पैर ब्रेक पर रहता है | तो क्या आपके जीवन का स्टीयरिंग आपके हाथ में है? नहीं है | इसका स्टीयरिंग आपके पीछे है- पितरों से सम्बंधित | हाँलाकि जिस पथ-संप्रदाय से हम जुड़े हुए हैं, जन्म से जहाँ सम्बन्ध मेरा है, वे इसको नकार देते हैं लोग|
‘जियते न मरे तो मरे का करि ?’ कबीर साहब ने कह दिया| किसके लिए कहे हैं? संन्यासियों के लिए| क्योंकि इनलोगों का पितर नहीं होता है| कबीर साहब कहते हैं कि तूने साधु का, संन्यासी का रूप तो पकड़ लिया और जिंदे-जी मुक्त नहीं हो पाया तो मरने पर मुक्त होगा? तुमको तब कौन पिण्ड देगा? संन्यासियों को कोई नहीं देता है| लेकिन सही बात कोई नहीं समझता है और हमारे कबीरपंथी इसी को कहने लगते हैं- चारों तरफ, छत्तीसगढ़ में भी| शिक्षक दस आदमी की क्लास लेता है न! अलग-अलग बात कहता है| डॉक्टर अलग-अलग दवा बताता है|
पितरों से हमारा अनन्य है सम्बन्ध
देखो, हमारा सम्पूर्ण जीवन जिस शक्ति से संचलित होता है, नियंत्रित होता है, उस शक्ति को हम यहाँ आमंत्रित करेंगे| तुमलोग इसका प्रत्यक्ष प्रमाण माँगोगे| ऐसे समझो| देखो कोई भी काम हम करते हैं- शुभ, तो उसमें बिजली का उपद्रव होता है| हर जगह हुआ है| कनेक्शन कट जाता है न! रुक्मिणी मंदिर में गए थे अलर्ट, लेकिन कटा| अभी नासिक कुम्भ में देखा होगा, इतनी व्यवस्था के बाद भी कट गया! और यहाँ आने के पहले कट गया|
हमने फोन किया, जनार्दन जी से पूछा कि भाई क्या बात है? कहा कि एक लाख ड्यू (बकाया) है, काट दिया गया| कोई लगने की उम्मीद नहीं है| हमने आते-आते कहा कि ठीक है, रुपया जमा करो| कहा – पैसा नहीं है | हमने कहा- किसी से ले लो, देंगे| इसके बाद भी यह हुआ कि नहीं हो रहा है कुछ| अब तुम यह जानो, इसके बाद तुम्हारे सब पितरों का हमने आवाहन किया| तीन बजे जब इन्होंने कहा कि कोई उम्मीद नहीं है लगने की, हमने कहा कि सब पितरों को मैं मुक्त कैसे करूँगा? लौट जाओ| अब मेरे यहाँ व्यवस्था नहीं है| या तो तुम व्यवस्था करो बिजली की| अब तो पैसा जमा करने पर भी नहीं होगा, चूँकि कल रविवार है|
और देखो ठीक साढ़े तीन बजे इनका फोन आया कि हाँ, हो गयी व्यवस्था| आ गयी बिजली|
तो तुमलोगों को हम यह बता रहे हैं कि देखो, पितरों का तुमसे कितना गहरा सम्बन्ध है! इस संसार में यदि कोई मदद कर सकता है तो सिर्फ दो ही मदद करते हैं| तुम देशभर पूजते चलो पत्थर-पाथर, कोई मदद नहीं करता है- तुम्हारे मन का संतोष है| एक जो प्रत्यक्ष है, तुम्हारा गुरु | और कोई यदि गुरुभक्त है अनन्य, तो उसको किसी कर्मकाण्ड की ज़रूरत नहीं है इस पृथ्वी पर| अब तुम कितने अनन्य हो- यह तुम जानते हो| गुरुभक्त को कोई कर्मकाण्ड की ज़रूरत नहीं है|
‘एक साधे सब सधे, सब साधे एक जाय |’
माने एक गुरु को साध लिया, फिर क्या करना है? और भगवान् शंकर जिसकी नगरी में यहाँ बैठे हो, वे भी पार्वती से कहते हैं- ‘मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरुकृपा |’ लेकिन मैं जानता हूँ कि यह ‘गुरुभक्ति’ बड़ी टफ (tough) है | इस दुनिया में, पृथ्वी पर सबसे ज्यादा टफ काम कोई है तो वह गुरुभक्ति है| देवी-देवता की भक्ति हो जाएगी, पेड़-पौधे की हो जाएगी, नदियों की भी हो जाएगी- गुरुजी की नहीं| क्योंकि वह सुबह से शाम तक तुमको डाँटता है| तुमसे कुछ लेता भी है| तो होगी भक्ति? तुम्हारे अहंकार की कहीं वह पुष्टि नहीं कर रहा है| और गुरु के बाद दूसरा कोई है तुमको मदद करनेवाला सृष्टि में, तो आज ठीक से सुन लो- वह आपका परिवार है| लेकिन हमलोग प्रत्यक्ष को त्याग कर अप्रत्यक्ष में दौड़ते फिरते हैं अंधों की तरह| यहाँ-वहाँ भागते हैं परोक्ष में- मूर्खों की तरह|
पितृ-पक्ष की वैज्ञानिकता- जेनेटिक थ्योरी है आधार
यह दुखद घटना है कि तुम अपने वर्तमान परिवार को ही परिवार समझ लेते हो| और जो आपके पीछे के परिवार के थे, चले गए; जिनका जीन (gene) आपमें आया है, इन्हेरिट कर रहे हो- उनको कभी याद ही नहीं करते हो! आज 136 देशों में जेनेटिक स्टडी करके विज्ञान ने साबित कर दिया कि आर्य भारत में कहीं से नहीं आये हैं, भारत से ही आर्य पूरे विश्व में फैले हुए हैं| चाहे वो ईसाई हों, मुसलमान हों- किसी पंथ-संप्रदाय के हों| जेनेटिक थ्योरी पर वह जीन आँका गया है| इसलिए मैं कहता हूँ कि राम का, कृष्ण का, बुद्ध का, महावीर का जीन (gene) – आप सबमें है| तो आप समझ लो कि हमलोग ‘गोत्र’ जो कहते हैं- अत्रि, याज्ञवल्क्य, गर्ग, गौतम- वह गोत्र वहाँ से लेकर के आजतक आपमें, आपके खानदान में चला आ रहा है| वही जीन आप इन्हेरिट कर रहे हैं न! क्या उनलोगों के प्रति कोई कर्तव्य, उत्तरदायित्व आपका नहीं है? शक्ति का सञ्चालन वहाँ से हो रहा है| हमारे ऋषि वैज्ञानिक थे, इसलिए विज्ञानपूर्ण धारणा से देख लिया कि शक्ति का सञ्चालन यहाँ से हो रहा है| आज हम उसी शक्ति की पूजा करने के लिए, आवाहन करने के लिए यहाँ एकत्रित हुए हैं|
यह शाश्वत सत्य है, सब एकमत से सहमत हैं कि तुम्हारी मदद करने वाला प्रत्यक्षतः एक गुरु है, उसके जो दूसरा है, वह है तुम्हारा परिवार और उस परिवार में तुम्हारे पितर| इसलिए इन्हें ‘पितरेश्वर’ कहा गया है| जिस परिवार में आपस में पति-पत्नी लड़ते रहते हैं, माँ-बेटा लड़ते रहते हैं– कोई न कोई दुःख का कारण बनता है| टेंशन पकड़ लेते हो| सारा रुपया-पैसा चला जाता है| चलते-चलते उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है| ख़राब आदत पड़ जाती है| जब ऐसा हो तो समझ जाओ कि वह पितृ दोष से ग्रसित है| सब शास्त्रों में लिखा है|
पितृ दोष क्या है?
आपकी तरह आपके पूर्वज कहीं भटक गए, प्रेत योनि में चले गए– मान लो कोई बीस बरस में मर गया और उसकी आयु अस्सी बरस है- साठ बरस बच गया, 60 साल पहले चला गया तो (60 x 10) यानि 600 बरस तक प्रेत योनि में वह भ्रमण करेगा न! और आपको मालूम भी नहीं है| अब सोचो, हर 20 से 25 वर्ष में आपकी जनरेशन बदल जाती है| कितनी लम्बी श्रँखला आपके लिए इंतजार कर रही है कि हमें मुक्त करो| लेकिन तुम तो कहोगे कि नहीं, हमारे साथ कोई दोष नहीं है| आधुनिक युग में लोग इतने फ़ास्ट हो गए हैं कि एक घंटे के लिए जायेंगे, कहेंगे कि पण्डितजी, धड़ाधड़ हमको तर्पण करा दीजिये और मैं चलूँ! पण्डितजी भी वैसा ही करते हैं, अब वो भी फ़ास्ट हो गए हैं |
हमारे शास्त्र का तो नियम यह है कि 365 दिन का एक साल होता है तो उसमें 15 दिन का समय पितरों के लिए निकालना होगा | शुद्ध नियम तो यह है कि अश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को ही यह जो हम अनुष्ठान करा रहे हैं- स्थापित कर दो अपने पितरों के लिए| जिन मन्त्रों का मैं जाप करूँगा- उन मन्त्रों का तुम जाप करो| प्रसाद पवाओ| गरीबों को, दीन-दुखियों को, साधुओं को, महात्माओं को उनके नाम पर खिलाओ| उनका हिस्सा दान करो| दान के लिए तो हमारे शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि अपनी आमदनी का 10% दान करो| कहीं जा रहे हो, दस रुपया किसी भिखमंगे को दे दिया तो उसी को तुम दान समझ लेते हो| वह भीख है, दान नहीं| लेकिन हम तो कहते हैं कि 10% नहीं, तो चलो 5% ही कर लो | 2.5% करो, 2% करो| नहीं कर रहे हो तुम|
ये पितृ इस सृष्टि में जहाँ कहीं भी हैं, वहीं से तुमको देख रहे हैं | कितनहुँ छिपकर तुम गलत काम कर रहे हो- दारु-शराब पी रहे हो, वेश्यागमन कर रहे हो…कोई भी गलत काम कर रहे हो- तुम्हारे पितर सब देख रहे हैं और उनके जो वहाँ मित्र हैं, उनपर थूकते हैं सब कि छि- छि.. यही तुम्हारा वंश है? जो दारू पी रहा है, वैश्यबाज़ी कर रहा है, गलत काम कर रहा है? गाय की हत्या कर रहा है?
जैसे यहाँ पर तुम कोई गलत काम करते हो तो आसपास के लोग थूकते हैं, ठीक वही स्थिति है बंधुओं, वे लोग वहाँ थूकते हैं| तब वह दुखी होती है आत्मा, और यहाँ पर तुम दुखी होने लगते हो| वह तुमको क्रुद्ध दृष्टि से देखता है कि क्या मैंने तुझे इसीलिए भेजा था? क्या यही मेरा उत्तराधिकारी है? अब तुम्हारा परिवार दुखी हो जाता है| फिर तुम दौड़ते हो ओझा के यहाँ| दौड़ते हो न! हमारे यहाँ भी आते हो कि कुछ झाड़ तो दीजिये, गुरुजी! कोई एक जंतर तो बनाकर दे दीजिये| गुरुजी जानते हैं कि रहस्य क्या है, लेकिन कुछ बोल नहीं पाते हैं| कहेंगे तो तुमलोग मारोगे| फिर पूछते हो- गुरुजी, हमारे दुःख का कारण?
राजा बलि का सर्वस्व दान और स्वर्ग से प्रह्लाद जी का प्राकट्य-
वो तुम्हारे पूर्वज तुम्हें देखकर दुखी हो रहे हैं| पूछोगे कैसे? शास्त्रों में यह स्पष्ट वर्णन आया है कि प्रह्लाद के पौत्र बलि हैं| वामनावतार में जब भगवान् नारायण गए हैं, उनके गुरु शुक्राचार्य ने मना किया है कि दान मत देना| तब बलि ने कहा कि नहीं, मैंने दान देने का संकल्प लिया है| नारायण ने तीन कदम भूमि माँग ली और गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी इन्होंने दान दे दिया| संकल्प करा दिया| और संकल्प करके जब दान कर दिया, नारायण ने एक कदम में पृथ्वी और एक कदम में आकाश को नापा, एक कदम बचा तो बलि एकदम लेट गए कि हमको नाप लीजिये| ज्यों ही भगवान् नारायण ने छाती पर पैर रखा, प्रहलादजी तत्क्षण उतर आये स्वर्ग से|
अब देखो प्रहलादजी कहाँ से देख रहे थे! वहाँ से तत्क्षण उतर आये और रोते हुए साष्टांग प्रणाम करके कहते हैं कि हे भगवान् नारायण! आज तुमने सर्वस्व मेरा ले लिया| प्रह्लाद का उत्तरदायित्व आज पूरा हो गया| मेरे पौत्र ने अपना सब कुछ दान देकर तुम्हें जीत लिया, नारायण! तुम हार गए|
और प्रह्लाद ने अपने पौत्र बलि को अंक से लगा लिया कि धन्य हो बेटा, तुम धन्य हो! तूने उचित जगह पर अपना सर्वस्व दान दे दिया- अपने को भी दान दे दिया| अब मैं स्वर्ग में पूजा जाऊँगा | अब देखो, प्रहलादजी यहाँ कह रहे हैं कि मैं स्वर्ग में पूजा जाऊँगा| वहाँ पर प्रह्लाद खुश हो जायेंगे तो क्या बलि खुश नहीं होगा? इसलिए बलि के न चाहते हुए भी नारायण ने बलि को पाताल का राज्य दिया और स्वयं नारायण को उनका दरबान बनना पड़ा| यह परंपरा रही है|
लंका में राम-रावण युद्ध में दशरथ, रघु का स्वर्ग से सहायतार्थ उतर आना व आशीर्वाद-
और जब भगवान् राम युद्ध में लड़ रहे हैं, विकट समस्या में पड़ जाते हैं तो उतर आते हैं दशरथ- मदद करके लिए| और भगवान् राम उनको इस पिण्ड के द्वारा मुक्त करते हैं कि पिताश्री! आप अभी स्वर्ग में हैं, अब मुक्त हो जायें|
‘रघुबन्सिंह महुँ जहँ कोउ होई | तेहिं समाज अस कहइ न कोई ||’
आपलोगों ने यह ज़रूर सुना होगा| और पिता दशरथ ही नहीं, राम को युद्ध में अत्यंत संगीन परिस्थिति में देखकर रघु भी उतर आये हैं| जिनके नाम पर रघुवंश चला है| अब बताओ तो, कितने रघुवंशी हैं! सब देख रहे हैं राम को|
इसलिए मैं कह रहा हूँ, इससे तुमलोग अब समझो कि कहाँ से तुम चले आ रहे हो| और जिस गोत्र से तुम हो- उसी गोत्र से आज संकल्प कराया जायेगा कि फलाना गोत्र से मैं हूँ|
और देखो तो, इस विषम परिस्थिति में कौन प्रकट हुआ?
एक गुरु विश्वमित्र हैं जो उनके सिर के ऊपर घूम रहे हैं, दूसरा राजा रघु प्रकट हो गए हैं- ‘रघुवंशी’ राम के लिए| कहा कि बेटा, अस्त्रों के बिना और आशीर्वाद के बिना जीता हुआ युद्ध भी हारा जाता है| मैं कभी गाय खिला रहा था, उस समय इस रावण ने आक्रमण किया था| तब मैंने इकत्तीस बाण से इस पर हमला किया था कि वे लंका जायेंगे तो बीस बाण से इसकी बीस भुजाएँ, दस से इसके दस सिर और एक बाण जो इसकी नाभि में अमृत है- वह पी जायेगा और यह मृत्यु को प्राप्त होगा| वे इक्कतीसों बाण लंका में आये, लेकिन इसके गुरु ने तत्काल मदद कर दी|
बेटा, गुरु जब मदद करता है, कोई उसका विरोध नहीं कर सकता है| नगर की सारी औरतें नग्न होकर लंका को घेर कर खड़ी हो गयीं| बेटा, मैं धर्मात्मा हूँ इसलिए मेरे बाण भी धर्मात्मा हैं| औरतों को देखकर तत्क्षण लौट आये| ‘औरत’ पर अटैक नहीं कर सकते हैं| वे बाण आज भी रावण के मुख्य-निवास में रखे हैं, उनको हनुमान को भेजकर मँगाओ बेटा! उन बाणों का खुला प्रयोग करो, जिससे ये मारा जायेगा और तू विजय को प्राप्त करेगा|
तो देखो, रघु से लेकर राम का जिनका हम वर्णन कर रहे हैं, कृष्ण का, अत्रि का, याज्ञवल्क्य का खून तुममें दौड़ रहा है| जिनका जीन तुममें है| चाहे तुम जिस जाति के हो, सबका गोत्र वही है| जाति से गोत्र में अन्तर नहीं पड़ता है| इससे आप अब समझ गए होगे कि आपका कितना लम्बा पिछला इतिहास है| लेकिन आप जीते हो, कहते हो कि नहीं, ‘परिवार’ मतलब- हम, हमारी पत्नी और हमारा बेटा| अपने को संकुचित कर लिया है| और जितना ही अपने को संकुचित किया है, उतने ही आप दुखी हो रहे हो | भारत के ऋषियों ने जो विधान दिया- 365 दिन में अब बताओ कि क्या 15 दिन कुछ है? यदि इसका 10% लोगे, तब भी 36 दिन होगा न! और 5% करोगे तो 15 दिन| माने उन लोगों ने 5% निकाला है कि कम से कम इतना तो हमारे ऊपर दे दो| हमारे खानदान में तुम हो, हमारा रक्त तुममें है, हमारा भाग हमको दो| लेकिन तुमलोगों ने वो भी खत्म कर दिया|
पूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया है पितृ-मुक्ति अनुष्ठान
तुमलोग नहीं जानते हो दिल्ली में, मैं चल रहा था तो 10-15 आदमी मेरे यहाँ आये- हमारे आचार्य लोगों के आदमी| जो अपना रुपया दे रहे थे कि गुरुजी यह रुपया ले लीजिये और हमारा वहाँ करा दीजियेगा| मैंने लौटा दिया कि संभव नहीं है| कौन करेगा तुम्हारा? यह कर्मकाण्ड पूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया है, सब पैसे से हमलोग करना चाहते हैं| टाइम नहीं निकालना चाहते हैं| तो होगा? फिर कहोगे कि नहीं, फलाना पण्डितजी ने हमको ठग लिया| अरे ठगा तो तुम खुद रहे हो! ठगने का उपक्रम कौन निकाल रहा है?
मैं खुद लौटाकर आ रहा हूँ- 15 आदमियों का| तुम्हारे पास समय नहीं है तो कोई बात नहीं, जाओ| अब बताओ तो, कौन ठग रहा है? अब जब साधु को, पण्डित को तुम देते जाओगे, तब वो तो लेते ही जायेगा न! उन पंद्रह आदमियों का जो हमने लौटाया, वह तो हमारा काम करता न! यहाँ भी जब मैं आ रहा था, आचार्यजी एक आदमी का पैसा हमको दे रहे थे| मैं बोला- अरे क्यों दे रहे हो? मैं क्या करूँगा? चूँकि देखो, यह प्रैक्टिकल बात है- तुम्हारे पितरों का तुम्हीं न आवाहन करोगे? तुम्हारे में ही न हैं- वो मैमोरी कार्ड में| इसलिए मैं तुमलोगों को यह बता रहा हूँ कि हम खुद ही ठगने चलते हैं और ठगा जाते हैं| पंजाब से भी कम से कम 8-10 आदमियों का फोन आया है कि गुरुजी, हमलोग बैंक में पैसा डाल दें, हो जायेगा? हमने कहा कि नहीं| डाल सकते हो, डालने के लिए स्वतन्त्र हो| लेकिन मैं करूँगा- वरूँगा नहीं|
दुःख लगेगा न तुमको? और यदि मैं कह देता कि ठीक है- ठीक है, डाल दो तो तुम भी खुश होते और मैं भी खुश होता| ‘आंधर गुरु बहिर चेला, माँगे गुड़ धरावे ढेला|’ हमारे साथ यही दिक्कत हो जाती है|
घर में मान- प्रतिष्ठा- संपत्ति- यह सब अज्ञात स्रोतों से कण्ट्रोल होता है| तुम्हारे हाथ में नहीं है| जहाँ जाते हो मान पाने के लिए, वहाँ मानहानि हो जाती है| इतना ही नहीं, घर में संतान की, गर्भ की- संतान की समस्या भी गर्भ से ही लो| गर्भ बार-बार गिर जाता है| गर्भ की बहुत शिकायत हमारे यहाँ आती हैं| संतान की उत्पत्ति, पढ़ाई-लिखाई, नौकरी-चाकरी, पद-पैसा-प्रतिष्ठा- सब पितर से कण्ट्रोल होता है| और तुम विभिन्न देवी-देवताओं के यहाँ दौड़ते हो- अपने घर को छोड़कर के| ‘घर का जोगी जोबड़ा, बाहर का जोगी सिद्ध? बाहर के लोगों को पूजते हो| फिर कहते हो कि दुःख…|
भगवान् कृष्ण भी अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन ! वर्तमान शरीर जो तुम देख रहे हो, यह नाश को प्राप्त हो जायेगा, लेकिन जीवन शाश्वत है| आत्मा शाश्वत है| वह वस्त्र जैसे बदला जाता है, बदलता है| पूरा गीता इसी पर टिका है कि आत्मा शाश्वत है| शाश्वत है जीवन| तुमलोग जान रहे हो कि हमारी पितरों से जान छूट गई| नहीं, शाश्वत है आत्मा| मृत्यु के बाद मृतात्माएं हमारे ही इर्द-गिर्द घूमती हैं| यह एक बात समझ लो कि मृत्यु के बाद तुम्हारे जितने पितर हैं तुम्हारे इर्द-गिर्द घूमते हैं, किसी लोक में कहीं और, अन्यत्र नहीं रहते हैं| सबसे नजदीक यदि हैं तो तुम्हारे पितर तुम्हारे नजदीक घूम रहे हैं और तुम्हारा उनपर ध्यान नहीं जाता है| तुम खा रहे हो, पी रहे हो.. सो रहे हो, चोरी कर रहे हो, बदमाशी कर रहे हो… पूजा कर रहे हो, पाठ कर रहे हो- सब तुमको देख रहे हैं बेचारे की तरह| अंत में जब तंग आ जाते हैं, तुममें कोई बदलाहट नहीं आती है तो लात मार देते हैं| धक्का मार देते हैं| फिर तुम गिर जाते हो, टूट जाते हो, रोगी हो जाते हो, हॉस्पिटल चले जाते हो| मैं यह बचपन से कहते आ रहा हूँ अपने लोगों से|
पितृदोष निवारण में दान का महत्व-
बचपन में जब मैं पाँच साल का था, मेरी माँ को कोई रोग हो गया| अभी तक मुझे याद है, मैं बोला कि माँ! दान नहीं न करती हो तुम, तो दवा खाओ| माँ तो बीमारी से मरी, लेकिन हमारे पिताजी ने यह सुन लिया| जितने दिन नौकरी करते रहे, अपनी आमदनी का 10% यहीं गुरुजी के यहाँ आकर देते रहे| उस ज़माने में फ़ॉरेस्ट ऑफिसर थे| हमारे चाचाजी ने आकर विरोध किया कि यह क्या करते हैं आप| गुरुजी को तो बहुत देने वाले हैं| अभी भी याद है मुझे- घर की यह बात| उन्होंने कहा कि इसपर यदि तू रोक लगाएगा तो मैं रिजाइन करके चला आऊँगा घर पर| खेती करूँगा|
हमारे पिताजी यद्यपि नौकरी में रहते थे, लेकिन उनके अधिकारियों को मैंने बहुत दीक्षा दी| जब मैं जाता था, खड़े रहते थे सब| यहाँ भी तुमलोगों ने देखा होगा| पिताजी कहते थे कि नहीं, इनकी बात को हम ब्रह्मवाक्य मान लिए कि दान दो, नहीं तो दवा लो| और शरीर छोड़ने तक उन्होंने दवा नहीं ली|
तो देखो कोई-कोई मान लेता है| तुमलोगों को लाख कहेंगे, नहीं मानोगे| कहोगे कि गुरुजी अपने लिए कर रहे हैं क्या? अब शुरू करोगे! यह प्रकृति का शाश्वत नियम है- कुछ लेते हो तो देना पड़ेगा | बिजली लेते हो! उसका कनेक्शन देखो कट गया- बिल नहीं जमा किया तो| सूद जोड़कर जमा करना पड़ा| तो सूर्य तप रहा है, चन्द्रमा शीतल कर रहा है- उसका दे रहे हो? भगवान् का टैक्स दे रहे हो ? नहीं दोगे| वसूल कर लिया जायेगा| इसलिए यह जानो कि तुम्हारे पितर का तुम पर सबसे बड़ा कण्ट्रोल है|
श्रद्धा का है खेल- सृष्टि के बदलते हैं नियम
शम्भुनाथ शर्मा जी को मैंने यहाँ इसलिए बुलाया कि देखो, चार-पाँच साल पहले ये जब आये थे तो घर पर इनके लड़के को दो लडकियाँ थीं, कोई लड़का नहीं| ये शंकरजी के भक्त हैं| हमसे बहुत कहते थे| हम बोले कि शंकरजी के भक्त हो तो जाओ, शंकर से माँग लो| उसमें मेरा लेन-देन क्या है? इनको दुःख भी लगता था| बताओ मेरा लेन-देन है कुछ? लेकिन ये छोड़-छाड़कर, आकर ज़रूर हमारी अनन्य भक्ति में जुटे| हमने सांत्वना दी| कहा कि लड़का-लड़की मानते हो? दो लड़कियाँ हैं न, खानदान चलेगा तुम्हारा| लेकिन शर्माजी पुराने ज़माने के हैं| कहा- नहीं, हम मानने वाले नहीं हैं| बिना पुत्र के खानदान नहीं चलेगा| हमने कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं| तुम सेवा करो| गुरुजी की सेवा यदि कर सकते हो- करो| वह सुनने वाला होगा तो सुन लेगा और नहीं सुनने वाला होगा तो मैं फोन नहीं करने जा रहा हूँ| इन्हीं की श्रद्धा एकतरफा काम करेगी|
तुमलोग देखते हो कि मैं जहाँ जाता हूँ- ये खाना बनाने पहुँच जाते हैं | सेवा करने पहुँच जाते हैं | और जाते हैं तो दस हज़ार- ग्यारह हज़ार या बीस हज़ार रुपया भी रखकर चले जाते हैं | नासिक कुम्भ में ये हमारी सेवा कर रहे थे, इनको फोन आया- दो-दो एकसाथ, जुड़वाँ नाती पैदा हुए हैं| कैसे हो गया? जबकि डॉक्टर कह चुका है कि बच्चा होने की उम्मीद नहीं है- there is no hope for children, क्योंकि ऑपरेशन हो चुका है | अब तुमलोग कहोगे कि हमने कुछ किया| गुरुजी के कपाल पर आकर मारोगे तो कुछ नहीं होगा| अरे तुम अपना काम तो करो|
क्या जी, बात ठीक है! अब देखो, फिर आकर सेवा में जुट गए हैं| लेकिन तुमलोग कहते हो कि ज़बरदस्ती गुरुजी करें| यह सब देखते हैं तुम्हारे पितर| वह परमात्मा सब देख रहा है और तुम्हारी श्रद्धा सृष्टि के नियम बदल देगी| जैसे भगवान् राम के, भगवान् कृष्ण के समय में उनके पितरों ने बदल दिया| वह तुम्हारी आस्था पर चलता है| उचित पूजा, ध्यान- भावना, आवाहन से पितरों का आवाहन करो| भावपूर्ण स्मरण करो|
यह बात समझ लेना कि यदि पितृ पक्ष आ गया और इस पितृ पक्ष में तुम अपने पितरों का पूर्ण भावना से आवाहन नहीं करते हो तो पितर निराश होकर लौट जाते हैं| फिर दुखी होते हैं| अब तुम बताओ, कितने दिन से अपने पितरों को निराश लौटा रहे हो? गुरुजी की तो बात मान नहीं रहे हो- उन्हें लौटाए जा रहे हो| इसका फलाफल कौन भोगेगा?
सबसे नजदीकी आदमी की तुम बिलकुल कीमत नहीं करते हो| इसलिए एक बात आज अपने मन में अभी लिख लो- अपने घर में जब कोई शुभ काम करो, किसी भी देवी- देवता का आवाहन करने के पहले अपने पितरों का स्मरण करो- भावपूर्ण कि हे मेरे पितर! हे मेरे पिता! पितामह! प्रपितामह! हे मेरे आदिगोत्र! आपको बार-बार मेरा प्रणाम है| मेरा प्रणाम स्वीकार करें| मुझ पर प्रसन्न हों| मैं यह फलाना काम करने जा रहा हूँ, आप आशीर्वाद दें|
कोई दिक्कत है? यह छोटी सी तकनीक में बता रहा हूँ| फिर देखना, इससे तुम्हारे जीवन में क्या परिवर्तन होता है! समाधि बहुत बड़ी बात नहीं है, एक छोटी सी तकनीक है जिससे व्यक्ति फट समाधि में चला जाता है| लेकिन उस तकनीक को बताया कब जायेगा? जब तुम उसके लायक हो जाते हो, तब न! इसलिए यह छोटी सी तकनीक तुमलोग याद रखो- अपने कोई भी शुभ काम में आमंत्रण दो और देखो, वह आमंत्रण स्वीकार करता है| वह कहता रहता है कि हमारा लड़का हमको बुला ही नहीं रहा है| और बुलाते किसको हो? आल-जाल को बुलाकर खूब खर्च करते हो- खूब खिलाते-पिलाते हो| इसके बाद जो भी भण्डारा कर रहे हो- भोज कर रहे हो, एक थाल में निकाल कर एक जगह पूजाघर में रखो| देखते होगे यहाँ भी हर भण्डारा में थाल में निकाला जाता है| मंदिर में रखा जाता है| स्वामीजी के मंदिर में रखा जाता है न! तुमलोग भी यह अपना लो कि घर में भी जहाँ पूजा का मंदिर बनाया होगा- कोई भी शुभ काम करो- एक थाल में सब प्रसाद सबसे पहले निकालकर वहाँ रख दो| पानी रख दो| तुलसी दल डाल दो और प्रार्थना प्रेम से करो- दस मिनट धूप-दीप जलाकर| उनको याद करके कहो कि हे मेरे पूर्वज! आप इसको ग्रहण करें| आपके बिना ग्रहण किये हम इसको पाने के अधिकारी नहीं हैं| यदि हो सके तो उस प्रसाद को अन्य प्रसाद में मिला दो और सबको पवाओ| तुम देखना, वह अक्षय पात्र हो जायेगा| प्रसाद घटेगा नहीं तुम्हारे यहाँ|
‘अक्षय पात्र’ का नाम सुना है? कृष्ण को वह प्रसाद पवा दिया गया– घटा? अक्षय हो गया| अक्षय कीर्ति, अक्षय यश और अक्षय धन-संपत्ति लाने में तुम्हारा पितर मदद करेगा, तुम्हारा गुरु मदद करेगा| उन्हें निराश मत करो| यजुर्वेद में लिखा है, पितरों का आवाहन करते समय उन्हें पूर्ण निमंत्रण से जीवन के सभी कार्यों में भागीदार बनाएं और यश, आयु, उन्नति को प्राप्त करें| यह क्यों लिखा हमारे ऋषियों ने? यजुर्वेद में उन्होंने यह स्पष्ट कहा कि पितरों का आवाहन करें और उनसे आप प्राप्त करें- अखण्ड यश, कीर्ति, आयु, धन और संपत्ति|
सूक्ष्म शरीर में पितरों की शक्ति है अनंत-
शक्ति क्या है? पितर तुम्हारे सूक्ष्म शरीर में रहते हैं| सूक्ष्म शरीर में जो रहता है, उसकी शक्ति अनंत हो जाती है| अभी तुमने पुकारा नहीं कि प्रकट हो गए! सुना होगा कि कहीं कोई आदमी गया, बहुत चक्कर में पड़ गया- मरने जा रहा है, कोई सहारा नहीं है तो अचानक कोई प्रकट हुआ और उसकी रक्षा हो गई| या तो गुरु की शक्ति तुम्हारी रक्षा कर देगी या तुम्हारा पितर प्रकट होकर तुम्हारी रक्षा कर देगा| लेकिन तुम उधर ध्यान नहीं दोगे, कहोगे- फलाना देवी-देवता, फलाना बाबा, फलाना-फलाना ने हमारी मदद कर दी|
कोई मदद नहीं करता है| किसी को क्या पड़ी है? इसीलिए हमारे यहाँ देवी-देवता को भी खानदान में कहा गया है| भगवान् शंकर को भी ‘पूर्वज’ कहते हैं| सारे देवी-देवताओं को हम अपना पूर्वज कहते हैं| अलग से उनका स्थान नहीं देते हैं, कहते हैं कि वो पूर्वज हैं हमारे| वो उत्तम होने के कारण हमें स्वास्थ्य, गर्भ, आर्थिक उन्नति प्रदान करते हैं और साथ ही तुम्हारे पितर ही उचित गुरु तक पहुँचाने में तुमको मदद भी करते हैं| और यदि पितर को नहीं मानते हो तो तुमको वो लेकर पहुँचा देता है- भटकुआ गुरु के यहाँ| जो अपने भी डूबता है और तुमको भी डुबा देता है| तुम भी नहीं मानोगे तो वह तुमको भी वहीं पहुँचा देगा| यह बात समझो|
पितरों के लिए सबसे शुद्ध समय ‘पितृ पक्ष’ माना गया है| चाहे हमारे पितृ किसी भी प्लेनेट में हों, किसी भी लोक में हों, लेकिन इस पक्ष में वे तुम्हारे इर्द-गिर्द आ जाते हैं| आतुर दृष्टि से देखते हैं कि ये मेरे लिए कुछ कर रहा है, मेरे नाम पर कुछ दान दे रहा है? फिर देखते हैं कि न, यह तो अपने खाने-पीने में लगा है| चिरकुटानन्द है! पंद्रह दिन तुम्हारे पीछे-पीछे घूमते हैं, तुम एक घंटा उनके लिए समय नहीं निकालते हो| वे धिक्कारते हुए लौट जाते हैं| और वहाँ पर भी उनको सुनना पड़ता है- तुम्हारे खानदान ने कुछ किया? गज़ब ! ऐसे लड़के तुम पैदा किये हो? फिर वो दुखी होते हैं|
ये पितर आतुर दृष्टि से अपनी संतान की तरफ देखते हैं चूँकि यदि ये कोई गलत काम कर दिये हैं, तो तुम्हारी तरफ ही न देखेंगे! यदि कोई बाप जेल चला जाता है तो जेल से मुक्त कराने के लिए कौन प्रयास करता है? उसका लड़का| उसी तरह से वे अपनी ज़िन्दगी में कुछ गलती कर देते हैं तो उनको मुक्त कराना तुम्हारा काम है| तुम्हारी जिम्मेवारी है| और तुम यदि नहीं करते हो, तो वे दुखी होंगे कि नहीं? तुम करो, वे पितर जो हैं पूर्ण श्रद्धा, पूर्ण समर्पण से प्राप्त करते हैं|
यदि तुम्हारे परिवार में कोई अकाल मृत्यु को प्राप्त है तो वह चतुर्दशी को ही मुक्त होगा- तिथि निर्धारित है| वह तुम्हारे इर्द-गिर्द आ गया होगा| इसलिए चतुर्दशी का चुनाव किया गया| जब हमारे पितर सुख-समृद्धि को प्राप्त हो जायेंगे, विभिन्न दुखों से, रोगों से मुक्त हो जायेंगे, तब उनकी अनुकम्पा हमपर स्वतः हो जाएगी | इसलिए उन्हीं की सुख-समृद्धि की कामना करो|
|| हरि ॐ ||
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‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
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