नवरात्र पर अन्तःशक्ति का जागरण
||श्री सद्गुरवे नमः||
नवरात्र पर अन्तःशक्ति का जागरण
नवरात्र के अवसर पर गुरुदेव द्वारा दिया गया प्रवचन , स्थान-सद्गुरु धाम आश्रम दिल्ली, तिथि 6-10-2002 प्रातः काल
प्रिय आत्मन्
नवरात्र केवल भारत का त्यौहार है। यह भारतीय मनीषियों एवं ऋषियों की खोज है। नवरात्र केवल भारत और भारतीयों द्वारा मनाया जाता है। नवरात्र का अर्थ है नौ रात अथवा नयापन। नौ दिन में जप-तप करके आप अपने आपको नया बना सकते हैं। जब आप ध्यान, साधना, जप व तप करते हैं तभी आप सच्चे अर्थों में नवरात्र की पूजा करते हैं। नवरात्र के नौ दिनों का किया हुआ तप वर्ष भर के तप के बराबर है। क्योंकि नवरात्र में एक दिन का किया हुआ तप 40 दिन के बराबर होता है 40 × 9 = 360 दिन यानि कि नवरात्रों में किया गया नौ दिन का तप एक वर्ष के बराबर होता है।
आप मंत्र का जाप करते हैं, मंत्र का क्या अर्थ है? मंत्र का अर्थ है जिससे मन शांत हो जाए। जो मन को शांत कर सके वही मंत्र है। हर एक सम्प्रदाय का अपना-अपना एक मंत्र होता है, पूरा संप्रदाय उसी मंत्र पर खड़ा होता है। जब आप जाप करते हैं आपके मुख से जो शब्द निकलते हैं वही जाकर आकाश में गुट बना लेते हैं वही शब्द वापस निकलते हैं। वही किया गया तप-जप व मंत्र आपके ऊपर बरसता है। जो हम करते हैं वही मिलता है। चाहे वो गाली हो या मंत्र हो।
नवरात्र में पूरा वातावरण पवित्र होता है। इस वातावरण में जब आप योग जाप करते हैं वही फलाफल के रूप में मिलता है। नौ दिन का उपवास कीजिए। उपवास का अर्थ केवल भूखे रहना नहीं है कि आप भोजन न करें और हो गया उपवास। उपवास का अर्थ है ईश्वर के पास अर्थात् जप तप व ध्यान से ईश्वर के पास रहें तब हुआ उपवास।
भोजन न करने से भी आपको लाभ मिलता है आपकी चर्बी घटती है और आपका भौतिक शरीर भी ठीक बना रहता है। लगातार मंत्र-जाप व ध्यान करने से एक ऊर्जा का प्रवाह होता है। ऊर्जा क्या है? ऊर्जा एक इलैक्ट्रीसिटी (electricity) है एक तरंग है। जैसे पानी को ठंडा करके बर्फ बनती है, फिर बर्फ को गलाने से पानी हो जाता है और पानी को गर्म करके वाष्प बन जाता है। वही वाष्प ही ऊर्जा है। आनंद ही ऊर्जा है। यह आनन्द भोजन से प्राप्त नहीं होता। सांसारिक भोगों से प्राप्त नहीं होता। जब आनंद प्राप्त होने लगेगा तो आनंद रूपी ऊर्जा मिलेगी फिर भोजन की आवश्यकता नहीं रहेगी।
जैसे-जैसे आपकी वृत्तियाँ टूटती हैं वैसे-वैसे आप आनंद को उपलब्ध होते हैं। तब आप सच्चिदानंद से मिलते हैं। इसी को सत्यम् शिवम् सुन्दरम् कहते हैं। यही सत्य है, शिव है, सुंदर है।
आप क्या करते हैं आप ग्रंथों को लेकर उसके आस-पास घूमते हैं जैसे बच्चे पोखरे यानि तालाब में तैरते-तैरते अचानक बीच में खड़े डंडे को पकड़ लेते हैं उसी के चारों तरफ घूमते हैं उसी प्रकार आप ग्रंथों की कथाओं को पकड़कर उनके आस-पास घूमते हैं। अक्सर जो कथाएं आप सुनते हैं वे कथाएं आपसे छीन ली जाएं तो आप डूब जाएंगे।
कृष्ण जो कह रहे हैं वो अपना कह रहे हैं। नानक, कबीर जो कह रहे हैं वे स्वयं कह रहे हैं। जब हम किसी की वाणी का सहारा लेते हैं तो वह प्रवचन कहा जाता है। प्रवचन माने दूसरे का वचन। कृष्ण, नानक कबीर स्व वचन कहते हैं। स्व वचन वही कहेगा जो सत्य को शब्द को सुनेगा। सत्य को सुनने वाला कोई नहीं मिलता। कृष्ण को सुनने के लिए एक अर्जुन मिला। जब आप सत्य का साथ लेंगे, शब्द की खोज के लिए एक क्षण भी भीतर डूबेंगे तब पाप क्षीण हो जाएगा।
नवरात्र में ज्यादा से ज्यादा भजन करो, भोजन की चिंता मत करो। जब भजन करेंगे तो हम ऊर्जान्वित हो जाएंगे। वेद कहता है जो आप अखंड ब्रह्मांड में देख रहे हैं वह ही आपके पिंड में है तो आप अपने भीतर जाओ और अपने भीतर का शब्द सुनो।
दूसरों का वचन कब तक सुनोगे ‘कहै कबीर क्या मिला झूठा पत्तल चाट के|’
दीन दयाल जब प्रगट हुआ तो किस का कल्याण किया केवल कौशल्या का ही क्योंकि कौशल्या के गर्भ से ही राम पैदा हुआ। वही गर्भ आपका हृदय है। इन नौ दिनों में इसी हृदय रूपी गर्भ में परमात्मा आएगा आपके अंदर। आप आनंदित हो जाओगे।
पिता की अंगुली पकड़कर बच्चा चलता है उसी प्रकार गुरु ग्रंथ पकड़ाता है। सद्गुरु वही ग्रंथ छीन लेता है। सद्गुरु आपसे काम, क्रोध, लोभ, मोह छीनता है। वह तब तक छीनता रहता है जब तक आप रामत्व को प्राप्त नहीं होते। तब तक छीनता है जब तक आप बुद्धत्व को प्राप्त नहीं करते हैं। यही फर्क है गुरु और सद्गुरु में।
नवरात्र में आप इतना कर लो कि कुछ करने की कला सीख लो। संध्या होते ही आप बल्ब, दीपक जलाते हैं लेकिन सूर्य के आने पर आप दीपक जलाते हो क्या? अपना दीपक स्वयं बन जाओ।
जपुजी साहब, रामायण, बीजक यह सब झूठा पत्तल है। यह सब नानक, तुलसी, कबीर ने पाया है। जब आप कुछ पाओगे तो आपका, अपना होगा। ब्रह्म का अर्थ है रोज नया-नया सृजन करने वाला। जब उस रूप को पकड़ लोगे तो अरूप को पहचानोगे। तब आंख बंद करने की जरूरत नहीं पड़ती।
आप लोग इस नवरात्र में यदि कुछ जान लोगे, सत्य अपने अंदर उद्घाटित कर लोगे तो कुछ पा लोगे। इस सत्य को जानने के लिए आप देवास्त्र और दिव्यास्त्र को पकड़ लो। जो आप करोगे उसका उसी समय अनुभव होगा यह उधार का सौदा नहीं है। आज करो और आज ही पाओ। भारतीय धर्म सारे उधार का सौदा करते हैं। आज दान करो अगले जन्म में प्राप्त होगा। लेकिन हम तो आज ही की बात कर रहे हैं। आज करो, आज ही प्राप्त करो। नगद इस चैक पर, उधार अगले चैक पर। यदि इस नवरात्र में कुछ कर लोगे तो हम अनुग्रहित होंगे। सोचेंगे कि कुछ प्राप्त कर लिया।
दोपहर में संकीर्तन करो ऐसा संकीर्तन करो कि शरीर का कण-कण कीर्तन करने लगे तब ही संकीर्तन होगा।
‘शब्द निरंतर मनुवा लागे, मलिन वासना त्यागे।
ऊठत बैठत कबहु न बिसरे, ऐसी तारी लागे।।
आपने मुझे ध्यान से सुना आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके अंदर बैठे भगवान को मेरा नमन।
||हरि ॐ||
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‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
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