भक्ति
भक्ति
बांध दिया है
तुमने उसे
बेड़ियों में,
मूर्तियों में
सजा के पंडालों में,
हाथ जोड़ कर
शीश झुकाए
मांगने को वरदान.
उसी को चढ़ाए
अलंकार आभूषण
सजाते हो संवारते हो
वंदन करते हो,
क्योंकि वो खामोश है
समर्थन करती है?
पर कहा देख पाते हो
ज्वाला उन
जीती जागती
आंखो की,
जो आस पास है
वो अनकहा दर्द
जो तुम देते हो
उसकी भाषा
उसका चलन
निर्धारित करते हो,
उससे ही जन्म लेते हो
उसे ही नवाजते हो
गालियों से उन्ही
रिश्तों को नामो को
जिन्होंने बनाया तुम्हे
क्या पुरुष की मर्यादा
स्त्री से अलग हो गई
मां बहन कैसे महज
एक नाम हो गई,
क्या ये देवी पूजन
स्त्री को सम्मान
करना नहीं सिखाता
मूर्तियों से जुड़ी
आस्था क्या
जीती जागती
के हिस्से नही आता ?
रचयिता रेणु पांडे