सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ (Part 6)
सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ
कुछ कहानियों में अनेकों कहानियां छिपी होती। शायद मेरी कहानी भी इन्हीं में से एक है।
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अब तक आपने पढ़ा कि कुछ पुराने बीतें लम्हों को याद करके अंशुमन कैसे भावुक हो उठता है। वंशिका ने जब उसके बातों को सुना तो उसने अंशुमन को ये अनुभव करवाया कि उस बीतें हुए किस्से में गलतियां उसने भी थी क्यूंकि ताली भला कभी एक हाथ से बज सकती है क्या? अब पढ़ते है आगे..
अध्याय 6- iPhone वाली आफ़त
अंशुमन को वंशिका की कही गई बात अब भी चुभ रही थी। वह अब भी तय नहीं कर पा रहा था कि क्या गलती सच में उसकी ही थी। पर उसे अब अपनी गलती का एहसास थोडा-थोडा हो गया था।
अंशुमन को उधेड़बुन में देख कर वंशिका से रहा नहीं गया।
“अंशुमन, छोडो! अब पुरानी बातों को। गलती हो गई, तो हो गई। अब उसे बदला भी तो नहीं जा सकता है। अगर तुम अपने उस गलती से सीख ले लो तो फिर उस गलती को भगवान माफ़ शायद माफ़ भी कर दे।“
अंशुमन ने कुछ न कहा।
कोई उत्तर नहीं मिलने पर वंशिका ने फिर कहा, “ट्रैन तो काफी लेट चल ही रही है। पर कल सुबह तक जैसे भी वो पहुँच जाएगी, जहाँ हमें जाना है। तो तुम क्या चाहते हो, अंशुमन? इतने कम बचे समय को तुम अपनी दोस्त के साथ ख़ुशी से व्यतीत करना नहीं चाहोगे?”
इतना कह कर मानो वंशिका ने अंशुमन को बीते लम्हों के गर्त से तदक्षण बाहर निकाल दिया हो।
“वंशिका, ऐसे क्यों बोल रही हो? ये दोस्ती हमें अब जन्मों-जन्मों निभानी है।“ अंशुमन के मन की इच्छा उसके जुबान में परोक्ष रूप में सामने आ गई थी।
वंशिका ने कुछ नहीं कहा।
“क्या हुआ वंशु? तुम नहीं चाहती हो कि हमारी दोस्ती बनी रहे?“
“चाहती तो हूँ। पर देखो! किस्मत को क्या मंजूर है?“ वंशिका ने अंशुमन की नजरों से खुद की नज़र बचाते हुए धीमे से कहा।
“मतलब वंशिका?”
“कुछ नहीं बुद्धू।“
अंशुमन, वंशिका के इस प्रकार के रहस्यमयी बातों से परिचित हो चूका था। उसे पता था कि वंशिका के मन में जो लावा पिघल कर बाहर आने को व्याकुल था, उसे वो निकलने ही नहीं देना चाहती थी। इसलिए अंशुमन ने वंशिका से फिर कुछ कहा ही नहीं।
ट्रैन की रफ़्तार धीमी हो रही थी। इश्कबाज ट्रैन जो कि अपने हरकतों से कभी बाज नहीं आता था, वो अगले स्टेशन “ईलू” पर लाइन मारने के लिए जोर-जोर से सिटी मार रहा था। ट्रैन अंततः “ईलू” स्टेशन पर रुक चुकी थी।
कुछ लोग उतर रहे थे, और बहुत सारे नए लोग ट्रैन में चढ़ने के लिए धक्का-मुक्की कर रहे थे। तभी एक आंटी जिसने मोटे-मोटे सोने के हार पहने हुए थे, वो भी ट्रैन में गुस्सा होते हुए चढ़ी, “इनलोगों को तमीज़ नाम की कोई चीज ही नहीं है। कहाँ से आ जाते है ये लोग? देख रहे है कि एक सुंदर औरत ट्रैन में चढ़ रही है, जिसका बेटा इतने बड़े पोस्ट में है, उसको चढ़ने की जगह भी नहीं दे रहे। हाउ डीसग्स्टिंग दे आर।“
“सुंदर औरत” सुनते ही अंशुमन ट्रैन के दरवाजे की ओर डोरा डालने लगा कि कौन-सी सुंदर औरत ट्रैन में आ चुकी है। जैसे ही उसने उस आंटीजी को देखा तो उसके सूर्य के जैसे चमकने वाले चेहरे में पीलिया रोग का पीलापन आ चूका था। मोटी-ताजी वो विशालकाय आंटीजी ऐसे अपने कदम बढ़ा रही थी, मानो कोई विशालकाय घना वृक्ष जीवंत हो गया हो और वो अपने जड़ों के सहारे आगे बढ़ रहा हो। सोने से लदी वो आंटीजी अंशुमन और वंशिका की ओर बढ़ रही थी। अंशुमन उन्हें अपने सामने आता देख डर-सा गया और उसने वंशिका के हाथ को जोड़ से पकड़ लिया।
अंशुमन के इस बर्ताव से वंशिका को हँसी आ गई और उसने धीरे से उसे चिढाते हुए कहा,’डरपोक कहीं का।’
अंशुमन इस बात से थोडा खीज गया। पर उसके मन का डर अब भी उसे वंशिका का हाथ छोड़ने की इजाज़त नहीं दे रहा था।
जिस चीज का डर था, वही हुआ। आंटीजी अंशुमन के सामने खड़ी हो चुकी थी और अपने डरावने दाँतों से, जिसमें एक दांत सोने की थी, बड़ी मुस्कान दे कर उनदोनों को देखते हुए बोली, ‘एक्सक्युज मी बच्चों, that window seat is of mine. Would you please let me in? (माफ़ करना बच्चों! वो खिड़की वाली सीट मेरी है। कृपया करके मुझे अंदर अपने सीट में घुसने दो।)’
आंटीजी को पता था कि जब तक अंशुमन और वंशिका अपने-अपने सीट से बाहर नहीं आएंगे, तब तक वो उस सीट तक पहुँच ही नहीं पायेगी।
“थैंक यू, बच्चों। You, guys, also sit.”
उनके लहजे और पहनावे को देखकर ऐसा लग रहा था कि वो किसी अच्छे अमीर घराने से संबंध रखती हो।
अंशुमन इतना डरा हुआ था कि उसने पहले वंशिका को उस आंटीजी के बगल में बैठाया और वंशिका के बगल में फिर खुद बैठा। मतलब कि उस आंटी और अंशुमन के बीच वंशिका मील का फासला था।
ऐसा नहीं था कि अंशुमन ही उस आंटी से डरा हुआ था। पूरी की पूरी पैसेंजर उन्हें ऊपर से नीचे देख रही थी। वो सबके लिए एक आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी।
“You know..My son is an IITian. He is earning in crores.” आंटीजी ने अपने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर अपने ओंठ में लगाते हुए अंशुमन और वंशिका को बिना देखे हुए कहा।
जब इस पर अंशुमन और वंशिका ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो थोड़ी देर बात उन्होंने अपने पर्स से एक मोबाइल निकाला, जिसके पीछे किसी के द्वारा जूठा खा कर छोड़े गए आधे-पौन सेव की तस्वीर बनी हुई थी।
“This phone is not an ordinary phone. You know. It’s an iPhone. It’s very costly. My beloved son has gifted me this iPhone..you know..(ये कोई साधारण फ़ोन नहीं, बल्कि iPhone है। बहुत महंगी है। मेरे राजदुलारे ने ये iPhone मुझे गिफ्ट किया है।)
इस बात पर वंशिका से रहा नहीं गया और वो आंटीजी की चुटकी लेने के लिए कह दी, “क्या बात है आंटी जी? मैंने आजतक इतना महंगा फ़ोन नहीं देखा था। बहुत सुंदर है। आपको अपने बेटे पर नाज होना चाहिए।“
बस वंशिका का इतना कहना था कि वो आंटीजी फूल गई और फिर जो वो शुरू हुई कि मानो अमेरिका का राष्ट्रपति भी उनके सामने कुछ न हो।
“You know..I don’t care about money.. For me, Money is just a mean to enjoy our life.. You know. (मुझे पैसो की परवाह नहीं है। मेरे लिए वो बस जीवन में मजे करने का बस एक साधन मात्र है।)“
“You know.. We do kitty parties.. We, the gang of women, enjoy a lot..”
“You know.. this ..”
“You know.. that..”
वो इतने जोर-जोर से सारी बातें बता रही थी कि मानो उस बोगी का हरेक यात्री उन्हें सुनने को इक्छुक हो।
कुछ बच्चों, जिन्हें धन-पैसे से कोई मतलब नहीं था और वो बस अपनी जिंदगी खेल-खेल में ही व्यतीत करना चाहते थे, को छोड़ कर सारे यात्री भी स्तब्ध होकर बस उसे सुने जा रहे थे और उनके और उनके बेटे के तारीफ़ के पुल बांध रहे थे।
कुछ देर बाद कुछ यात्री तो इतने प्रभावित हो चुके थे कि वो सब अपने सीट से उठ कर आंटी जी के सीट के पास जमावड़ा लगा कर आंटीजी की बात और उनके iPhone को देखे जा रहे थे।
इतना भाव मिलने और अपने बेटे की अन्य यात्रियों से तारीफ़ सुन कर वो आंटीजी इतना ज्यादा उल्लासित हो गई कि उन्होंने अपने फ़ोन को खिड़की के पास रख कर अपने बेटे को विडियो कॉल लगा दिया, “मेरे बेटे से बात करो आपलोग। बहुत ही स्मार्ट और आदर्शवादी बेटा है मेरा।“
वंशिका भी उनके लड़के की इतनी तारीफ सुन चुकी थी कि वो भी उस ‘Handsome Hunk’ को देखने के लिए अपने बाएं झुकी। उसके साथ और लोग भी, शैतानी कर रहे अपने बच्चों का हाथ पकड़ कर, दुबले-पतले अंशुमन को सीट में दाबते हुए आगे झुके।
अंशुमन को इस तरह वंशिका का किसी पराये लड़के को देखने की उत्सुकता ने क्रोधित कर दिया और उसने उसके बाएं हाथ में अपने दायें हाथ से दे मारा।
“वंशिका, शर्म नहीं आती तुम्हें, पराये लड़के को इस तरह देखने में।”
“अच्छा बेटा, तुम करे तो लीला और हम करे तो हमारा ईमान है ढीला।” वंशिका भी अंशुमन को तंग करने का एक भी मौका छोड़ना नहीं चाहती थी।
“फिर भी.. इतनी उत्सुकता उसे देखने के लिए …” अंशुमन गंभीर था।
जब तक वंशिका कुछ कह पाती, तब तक विडियो कॉल के दूसरे ओर से आवाज आई, “पाए लागूं माँ।“
इतना सुनना था कि अंशुमन, वंशिका और सारे यात्रियों का ध्यान मोबाइल की स्क्रीन में जा चूका था।
भला जाता भी क्यों नहीं, आज-कल ‘शरबन कुमार’ कहाँ कहीं देखने को मिलते है।
एक मोटा-चस्मा पहने हुए छड़ी की तरह पतला-दुबला एक लड़का, जिसके दो दाँत खरगोश की तरह बाहर झांक रहे थे, उस स्क्रीन में से अवतरित हुआ।
वैसे तो सारे यात्रियों की आँखों में चूँकि ‘स्मार्ट और संस्कारी होने का’ लेंस उस आंटी जी ने पहले ही डाल रखा था, इसलिए उस पिद्दू जैसे दिखने वाले लड़के में भी लोगों को भगवान राम नज़र आ रहे थे। पर वंशिका का चेहरा देखने लायक था।
अंशुमन अपनी हँसी को दबा कर वंशिका से कहा, “देखो! देखो! तुमने मेरी आँखें खोल दी वंशु। पराये मर्द को देखने में कोई बुराई नहीं है। देखो, तुम उसे।“
वंशिका गुस्से से आँखें छोटी करके अंशुमन को देखने लगी कि तभी उस आंटीजी की करकराहट भरी जोर की चिल्लाहट सुनाई दी।।
“अरे करमजलो! मेरा iPhone खिड़की से गिरा दिया रे। क्या करूँ अब मैं?”
जो यात्री अपने बच्चों को पकड़ कर बड़ी उत्सुकता के साथ विडियो कॉल में उस पिद्दे से बात कर रहे थे, उन्हीं के बच्चों में से एक बच्चा शैतानी-शैतानी में अपना एक हाथ उस मोबाइल पर दे मारा और खिड़की से बाहर निकल कर वो फ़ोन रेल की पटरी पर जा गिरा था।
असली बात अब धीरे-धीरे बाहर आने लगी थी।
“शैतानों! अगर मेरे बेटे को ये बात पता लग गई कि मैंने मोबाइल गिरा दिया है तो वो मुझे घर में घुसने नहीं देगा। उसने जब दूसरा फ़ोन ले लिया तो अपना पुराना iPhone मुझे दे दिया था। अब क्या करूँ मैं? मैं लूट गई। बर्बाद हो गयी।” वो आंटी जी जोर-जोर से रोने लगी।
अंशुमन और वंशिका इस बात से खुश थे कि उस आंटीजी से “You know..this.. you know that..” के जगह अब ‘टिपिकल भारतीय फ़िल्म’ वाली भाषा सुनने को मिल रही थी और सारी की सारी सच्चाई भी अब जग-जाहिर हो गयी थी कि कितना प्यार उनका बेटा उनसे करता था।
खैर! उस आंटीजी के आस-पास घेरा लगाए हुए लोग अब अपने जीवन में पहले से ज़्यादा खुश थे क्योंकि उस आंटी की सच्चाई लोगों को पता लग चुकी थी और अब उनलोगों को अपनी जिंदगी ज्यादा अच्छी लगने लगी थी।
उस आंटी की चिल्लाहट से पूरे ट्रैन में तहलका मच गया था। वो चारों तरफ हाहाकार मचा रही थी मानो किसी दूसरे देश की सेना केवल उससे युद्ध करने को आ रही हो।
अंशुमन भी थोडा बैचैन नज़र आ रहा था।
“इतने बैचैन क्यों नज़र आ रहे हो, अंशुमन?” वंशिका ने पूछा।
“वंशिका, जो बचपन से मैं करना चाहता था, वो करने का मौका मुझे मिल गया है। मेरे पास अब वो कंधा भी मिल चुका है, जिस पर बंदूक रख कर मैं गोली चला सकता हूँ। अब मेरे लिए उस चेतावनी का कोई डर नहीं है जिसमें लिखा होता है, उचित और पर्याप्त कारण के बिना जंजीर खींचने की सजा 1000 रुपये जुर्माना और/या एक साल तक की कैद।”
वंशिका जब तक कुछ समझ पाती, तब तक अंशुमन ने ऊपर टंगे लाल रंग की जंजीर को खींच दिया ,जिसे खींचने की इच्छा बचपन में हरेक बच्चे को होती है।
फिर क्या था! ब्रेक पाईप में हवा का दवाब कम होने से ट्रैन की गति धीमी हो गई और धीमी-धीमी होते हुए थोड़ी देर और आगे जाकर ट्रैन पूरी तरह रुक गई।
उस आंटीजी के सामने अंशुमन अब किसी हीरो से कम नहीं था। पूरे बोगी में खुशी का माहौल था। अंशुमन के इस हैरत भरे काम के लिए बोगी के सारे पैसेंजर ताली बजाने लगे। अंशुमन को ऐसा लग रहा था, जैसे वो किसी सेलिब्रिटी से कम न हो। सुहाना भी जोर-शोर से ताली बजा रही थी।
अंशुमन तुरंत ट्रैन से उतरा और फिर दौड़ते हुए उस जगह पहुंचा, जहाँ आंटीजी का मोबाईल गिरा था। उसने मोबाईल पटरी के किनारे लगे हुए पत्थरों के ढ़ेर से उठा लिया। मोबाईल का स्क्रीन पूरी तरह से टूट चुका था। पर वो खुश था कि उसने आज बहुत बड़ा काम किया है।
जैसे ही अंशुमन अपनी बोगी के गेट के पास पहुंचा तो देखा, वहां दो RPF के वर्दी में दो लंबे-तगड़े आदमी खड़े थे। अंशुमन को ऊपर से नीचे देख कर उनमें से एक ने कहा, “ओए लड़के! तुम ही हो वो, जिसने ट्रैन की चैन खींची?”
अंशुमन को लगा कि उसके बोगी के पैसेंजर्स ने सारी बात बता दी होगी।
अंशुमन ने गर्व से कहा, “जी सर। मैं ही वो बंदा हूँ।”
“अच्छा! चल बेटा, तुम्हें थोड़ी जेल की सैर करवा दूँ।” उनमें से एक ने अंशुमन का हाथ जोड़ से पकड़ते हुए कहा।
“मैंने तो मदद की। फिर मुझे क्यों पकड़ रहे हो सरकार?” अंशुमन ने झिझकते हुए कहा।
“बेटा, तू तो गया अब। 1 साल जेल में रह ले, फिर किसने-किसकी मदद की, समझ आ जायेगा। बुड़बक, तुम्हें पता नहीं है कि बिना किसी आकस्मिक कारण के चैन खींचना, दंडनीय अपराध है।” दोनों ने अब अंशुमन को दोनों तरफ से पकड़ लिया था, जैसे मानो वो कोई कुख्यात अपराधी हो, जिसके सर पर 10 लाख का इनाम हो।
“सर, एक पैसेंजर का मोबाईल, ट्रैन से गिर गया था, बस उसी के लिए मैंने ट्रैन की चैन खींची। मैं बेक़सूर हूँ। मुझे जाने दो।” अंशुमन ने हाल ही में देखे एक फ़िल्म में कोर्ट के एक सीन का डायलोग मारा।
“ट्रैन वैसे ही इतनी देरी से चल रही है और तुम बिना मानो मतलब के चैन खींच दिए। किसी बच्चें का डायपर गिर जाएगा तो भी तुम ट्रैन का चैन खींच दोगे क्या? गज़ब के घोंचू हो बे।” उनमें से एक ने झुंझलाते हुए कहा।
इतने देर में अंशुमन और दूसरी बोगी के पैसेंजर्स वहाँ एकत्रित हो चुके थे। वंशिका भी बोगी से बाहर निकल आई थी।
वंशिका ने अंशुमन का एक हाथ गुस्से में पकड़ा और उन दोनों RPF वालों पर चिल्लाने लगी, “समझ क्या रखे हो आप दोनों। इसने किसी की मदद की है और आपलोग इसको ही पकड़ रहे। गज़ब के हो आपलोग।”
अंशुमन खुश था कि वंशिका उसके लिए उनसे लड़ रही थी। उसका हाथ पकड़ कर इस तरह हक जताना अंशुमन को बहुत अच्छा लग रहा था। वो उस क्षण को बस रोक लेना चाहता था। पर अंशुमन को ये भी महसूस होने लगा था कि कहीं वंशिका के चक्कर में बात और न बिगड़ जाए।
“वंशिका, रुक जाओ। Let me handle the situation.” अंशुमन ने उसको समझाने की कोशिश की।
पर वो मानने वाली तो थी नहीं। भला लड़की कभी किसी की सुनती है क्या, जब वो अपने में आ जाती है।
“मैं बात कर रही हूँ न। तुम चुप रहो। आपलोग बताईये कि क्या गलत किया इसने, किसी की मदद करके।” वंशिका ने बोगी में सफर कर रहे अन्य लोगों की ओर देखते हुए कहा।
बोगी के सारे यात्री उसके समर्थन में अब आ चुके थे।
“ठीक है! चलो, इसको छोड़ देता हूँ। पर 1,000 रुपए जुर्माना देना होगा इसे।” उनमें से एक वर्दी वाले ने अंशुमन से अपने हाथों की पकड़ ढीली करते हुए कहा।
“न ये पैसे देगा और न मैं आपलोगों को इसको कहीं ले जाने दूँगी।” वंशिका ने अड़ते हुए कहा।
उनदोनों का दिमाग दुबारा फिर न जाएं, इसके लिए अंशुमन, वंशिका को चुप करते हुए कहा,” ठीक है! मैं पैसे नहीं दूँगा। जिस आंटीजी का ये मोबाईल हैं, वो ही जुर्माना भरेगी। आखिर मोबाईल उनका ही हैं।”
“हमें जुर्माना चाहिए, चाहे कोई भी दे।” वर्दी पहने हुए एक RPF ने अकड़ते हुए कहा।
सब की नजर अब आंटीजी की ओर थी।
“You know. I don’t keep cash. It’s very dangerous to carry cash on journey. You know.. My son has given me Credit card.. Swipe it and take Rs.1000. I don’t have any problem.” उस आंटीजी का फिर से इंग्लिश ड्रामा शुरू हो चुका था।
अब अंशुमन के पास कोई और चारा नहीं था। उसने दिल पर पत्थर रखकर अपने पर्स से 500 के दो नोट उनको थमा दिए।
वंशिका इस बात के लिए राजी नहीं थी औऱ गुस्से में वो वहाँ से निकल कर अपनी सीट पर जा कर बैठ गई।
दोनों RPF के अधिकारी जा चुके थे।
अंशुमन ने बिना कुछ कहें गुस्से में उस आंटीजी को उनका मोबाइल दे दिया। वो अपने मोबाइल के टूटे हुए स्क्रीन देख कर बस रोने-रोने को थी।
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कितनी अज़ीब है न दुनिया। हम अपने जीवन में तभी तक खुश है, जब तक हमसे अधिक खुश दिखने वाला हमें मिल नहीं जाता है। उनके मिल जाने के बाद तो सारी खुशियाँ होने के बाद भी दूसरों को ज्यादा सुखी देखकर हम दुखी हो जाते है और उनसे अपनी तुलना करने जैसा बड़ा और घिनोना अपराध कर देते है। हर तरह से समृद्ध होने के बाद भी लोग दूसरे की समृद्धि से जलते हैं और दूसरों के समृद्धि और सम्पन्नता देख दुखी रहते है। कैसी विडंबना है न? कितने महापुरुषों ने ये बात बार-बार बतलाई है कि दूसरों से अपनी तुलना करना ही दुख का कारण है लेकिन ये बात लोगों को पता कहाँ है या यूं कहें तो ये वास्तविकता मानवीय प्रकृति मानना ही नहीं चाहती है।
खैर छोडिये! चैन पुलिंग की जो घटना हमने आज देखी, उसे अंजाम तक पहुँचाने के लिए हम सब में बचपन से एक तीर्व इच्छा होती है। बड़े होने के बाद भी हम सब ये जरुर सोचते है कि काश! एक मौका मिल जाता और हम भी चैन पुलिंग करके देखते कि क्या होता है। अंशुमन ने भी अपनी वर्षों पुरानी इस दबी हुई इच्छा को अंजाम तक पहुँचाया और क्या परिणाम हुआ, वो तो आपने देख ही लिया। सीख ये है कि हमेशा अपनी इच्छाओं को मूर्त रूप देने से पहले दो बार जरुर सोच लेना चाहिए। तो मिलते है अब अगले अध्याय में…
सागर गुप्ता