छठ पूजा मेरे गांव में।
छठ पूजा मेरे गांव में।
“उग हे सूरज देव
भेल भिनसरवा …..”
छठ माता के पवन गीत से सारा वातावरण मंत्रमुग्ध हो जाता है। बहुत सालो के बाद मैं छठ पूजा के समय अपने गाँव मे हूँ। झारखण्ड में, पहाड़ों के बीच मेरा गांव हैं।
बहुत ही अच्छा लग रहा है मुझे। हमारे घर के आस-पड़ोस के कई घरों में छठ पूजा की त्यारी हो रही है। जिनके घरों मे छठ पूजा हो रही है उनके घर रिश्तेदार से भरें हुए है।हर कोई छठ पूजा में सम्मिलित होना चाहता हैं, अपना योगदान भी देना चाहता हैं। माहौल बहुत ही खुशनुमा है, गीत बज रहे है ।
छठ पूजा के रूप मे भगवान सूर्य और छठ माता की विशेष पूजा आराधना की जाती है। छठ पूजन पर विशेष तौर से महिलाएं व्रत रखती हैं, पूरे 36 घंटे बिना कुछ खाए पिए व्रत रखा जाता है। पूजा पाठ में सख्त नियमों का पालन किया जाता है। गोबर से लीप कर पूजा स्थल की साफ सफाई होती है। बलराम की पूजा के लिए हल की आकृति बनाई जाती है। इसके लिए भूसे और घास का उपयोग होता है. दिनों के अनुसार खास पूजा होती है।
छठ पूजा कुल चार दिनों का पर्व होता है, इसकी शुरुआत “नहाय-खाय”से होती है और “खरना, संध्या अर्घ और “सुबह अर्घ” के बाद इसका समापन हो जाता है ।
नहाय खाय- छठ के पहले दिन सफाई सफाई और स्नान के बाद सूर्य देव को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लेना होता है। व्रत रखने वाले इस दिन चने की सब्जी, चावल और साग का सेवन करते हैं।
खरना- ये छठ का दूसरा दिन होता है। जब पूरे ही दिन व्रत रखा जाता है. शाम के लिए खासतौर से गुड़ की खीर बनाई जाती है। मिट्टी के चूल्हे पर ही ये खीर बनाने की परंपरा है। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत रखने वाली महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं ।
तीसरा दिन संध्या अर्ध्य – महिलाएं शाम के समय किसी तालाब या नदी के पास जाकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं ।
चौथे/अंतिम दिन – सुबह अर्ध्य – व्रती महिलाएं नदी या तालाब में उतरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं. प्रार्थना करती हैं और फिर व्रत का समापन करती हैं ।
“खरना” के दिन मैं अपनी सहेली के घर गयी थी। बहुत ही अच्छा लग रहा था इतने सालो के बाद उससे मिलकर।
हमारे गांव से एक पहाड़ी नदी गुजरती हैं, छठ पूजा के लिया वहीँ घाट लगता हैं। अगले दिन संध्या-अर्ध्य समय हम सपरिवार नदी गए। नदी तक जाने का रास्ता बहुत ही लम्बा था लेकिन सभी लोग साथ मे बाते करते हुए जा रहे थे, तो रास्ते का पता ही न चला। रास्ते भर ढोल नगाड़े बज रहे थे, लोग छठी मईया के गीत गाते जा रहे थे। नदी पहुँच कर हम लोगों ने संध्या-अर्ध्य दिया। नदी के किनारे टिमटिमाते दीयों के बीच, फल सब्जी , पुआ और ठेकुआ की डाल सजायें छठ व्रती, को देखना एक अलग ही दुनिया में ले जाता हैं, पूरा वातावरण छठ मईया की आराधना में डूब जाता हैं।
छठ पूजा मे छठ व्रती की सहायता के लिए लोग अग्रसर रहते है। लोग जगह-जगह संध्या-अर्ध्य के समय छठ की डाला पर प्रसाद बाटते है। मेरे भैया भी इस धार्मिक कार्य मे हिस्सा लेते है। कुछ लोग सड़क की सफाई करतें हैं, कुछ लोग लाइट, और कुछ भीड़ को नियंत्रण करने में। सब लोग मिलजुल कर छठ पूजा में हिस्सा लेते हैं, क्यूंकि यह गांव का पर्व होता हैं।
अगले दिन सुबह की अर्ध्य के लिए हम लोग सूर्योदय से पहले, करीब ४:३० बजें घर से निकल गए। चारों और अँधियारा था लेकिन लाइट्स की रौशनी से सारा रास्ता जगमगा रहा था। नदी पहुँच कर हम सब ने ने उगते सूर्यदेव को अर्घ दिया, सब ने प्रसाद लिया, महिलाओं ने एक दूसरे को सिन्दूर लगाया।
उगते हुए सूर्य देव की पूजा के साथ ही इस पर्व का समापन हो जाता है।
यह पर्व किसी कठिन तपस्या से कम नहीं था, ऐसी मान्यता है की छठ पूजा करने से छठी मईया भक्तो की सब मनोकामनाए पूरा करती है।
जय छठी मईया की!!
रचयिता नम्रता गुप्ता