मेरी दोस्त
मेरी दोस्त
मुस्कुराहट जैसे सूरज की किरण,
हंसी जैसे वन में खिलता कोई फूल।
मिलकर तो देखो उससे,
कभी न पाओगे भूल।
सबको अपना मानती है वो,
फ़िकर सभी की करती है।
प्यार जितना भी मिले उससे,
सामने से उससे कही ज्यादा देती है।
खुश रहना सिखाया है उसने,
गम को ना कभी पास आने देती है।
उसके हंसते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाए,
ना जाने कैसा जादू करती हैं।
मेरी अपनी है वो, सबसे अलग,
ना उसके जैसा कहीं मिला न मिलेगा,
जब तक है उसका और मेरा साथ,
इस खुशियों के आंगन में फूल जरूर खिलेगा।
(मेरी सहेली सौम्या को उसके जन्मदिन पर समर्पित )
रचयिता – प्रार्थना सिंह
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