शिव नेत्र – ऊर्जा क्षेत्र

शिव नेत्र – ऊर्जा क्षेत्र
‘तंत्र’ शब्द सुनते ही साधारण लोग घबरा जाते हैं। उसी तरह शिव नेत्र से विस्मित हो जाते हैं। तांत्रिक कुछ अनिष्ट कर देगा। इसलिए उससे भयभीत हो जाते हैं। शिव नेत्र खुलते ही जगत भस्म हो जाएगा। मुझसे बहुत व्यक्तियों ने ऐसा प्रश्न किया। जैसे सर्वप्रथम मैंने ‘ताण्डव’ का प्रदर्शन जनता के मध्य, साधकों के लिए किया जिसे साधना टी.वी.(sadhana TV) चैत्र नवरात्र 2006 से प्रसारित किया। बहुत सारे प्रश्न आने लगे- यह नृत्य तो केवल सुना था कि भगवान शिव इससे संहार करते हैं। आपने इसे साधकों को करने हेतु उत्साहित किया; क्या उचित है? क्या यही ताण्डव है? आज तक केवल इसके सम्बन्ध में कथा की तरह सुना था। आपने सर्व साधारण जनता के लिए द्वार खोल दिया। यह कैसे मानें कि यही ताण्डव है। इसके सम्बन्ध में न कहीं पढ़ा न सुना तो देखने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता है। बहुत सारे प्रश्न उठकर पूरे भारत के बाहर के विभिन्न राष्ट्रों से आए।
मैंने कहा- आप ठीक सुने हैं। यह भी सुना है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रहस्य आपके पिण्ड शरीर में छिपा है। सर्वप्रथम अपने पिण्ड शरीर के रहस्यों को खोलें। यह ताण्डव ऐसी विधि है जिससे आप अपने शरीर के अन्दर सारे रोग-दुःख (कल्मष) को जलाकर भस्म कर सदैव स्वस्थ रह सकते हैं। इससे आपके अन्दर व्याप्त हर प्रकार के कल्मष का नाश होगा। आप शिव स्वरूप युवा बने रह सकते हैं। आपकी पुरुषत्व की शक्ति बढ़ जाएगी। यदि औरतें दो मिनट से ज्यादा करेंगी तो उनमें पुरुष हारमोंस का विकास होगा। जिससे दाढ़ी मूछें उग सकती हैं। ताण्डव पूर्ण पुरुष का नृत्य है। भगवान शंकर पूर्ण पुरुष भी हैं।
पूर्ण पुरुष का तीसरा नेत्र जब खुलता है तब अनर्थकारी शक्तियों, भ्रष्ट शक्तियों का नाश होता है। कोई साधक एकान्त में तप कर रहा है। वह संसार से विरक्त है। तब साधारण जन भी उसकी मदद करता है। उसके खान-पान और रहने की व्यवस्था करता है। देवराज के इशारे पर कामदेव भगवान शंकर को भ्रष्ट करना चाहते थे। उद्देश्य कुछ भी हो, अधिकांश उद्देश्य के पीछे अपना स्वार्थ होता है। अति स्वार्थ राष्ट्र के लिए घातक होता है। उसका नाश तो होना ही चाहिए। भगवान शंकर अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म किए। यह काम उस समय के लिए जगत हित में था। भविष्य के लिए उन्होंने काम का व्यवस्थित स्वरूप भी प्रदान किया जो विश्व मंगल का प्रतीक बना।
मेरा अपना अनुभव है कि आपके शरीर में भृकुटियों के मध्य में एक विशाल पावर प्वाइंट है जिसे शिव नेत्र या तीसरा नेत्र कहते हैं। इसमें इतनी शक्ति, सामर्थ्य एवं ऊर्जा है कि अभी तक पृथ्वी पर स्थापित किसी भी पावर प्लांट में नहीं है। प्रकाश की गति सम्भवतः एक लाख पचासी हजार मील प्रति सैकेण्ड है। जबकि तीसरे नेत्र स्थित ऊर्जा की गति क्षमता इससे सौ गुना ज्यादा है। यह मन की गति से गमन कर सकती है। मन की तरह ही निर्माण और विध्वंस कर सकती है। भ्रूमध्य से एक विशेष प्रकार की ऊर्जा की तरंगें निकलती हैं जो अति चंचल और गतिमान हैं। वह जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं-सूक्ष्म होती जाती हैं। यह अपने गमन के रास्ते पर चक्र सुदर्शन की तरह चारों तरफ नृत्य करते गमन करती हैं। इसका संचालन आत्मा के हाथ में होता है। इसका केन्द्रबिन्दु आत्मा ही है। इसी से शरीर रूपी राष्ट्र का संचालन होता है जिससे हम अनभिज्ञ होते हैं।
आज विज्ञान भी कहता है कि वहाँ एक विशेष प्रकार का हारमोन (hormone) बनता है जिससे सम्पूर्ण शरीर का संतुलन बना रहता है। यह आत्मा का सेनापति है। जिस साधक का शिव नेत्र खुल जाता है उसके लिए इस विश्व ब्रह्माण्ड में कुछ भी दुर्लभ नहीं होता है। लेकिन इस जगत के साधारण साधक अपनी छोटी-छोटी कामना से प्रेरित ऐसे महामानव का कुछ भी उपयोग नहीं कर पाते हैं।
मेरी भी वेदना यही है। कोई सम्राट बनाना चाहता है लेकिन जन समुदाय चपरासी बनने के लिए उतावले हैं। सभी अपने क्षुद्र दृष्टिकोण के चलते इन्हें पहचानते हुए भी पहचानने से इंकार कर देते हैं। यदि उनकी किसी छोटी इच्छा की पूर्ति भी कर दो, तो उनकी माँग सुरसा की तरह बढ़ती जाती है।
आज्ञा चक्र के ऊपर सुषुम्ना में चाँद के सदृश आकृति बनती है जिसमें एक द्रव पदार्थ भरा रहता है। जिसे योगी जन अमृत कहते हैं। विज्ञान मस्तिष्क सौष्मन द्रव (Cerebro Spinal fluid) कहता है। यही मुँह में बूंद-बूंद गिरते रहता है। जिसे योगी जन पीते रहते हैं। कुण्डलिनी जागरण के पहले यह क्रिया अवश्य सीखनी चाहिए। सुषुम्ना के दोनों तरफ से स्नायु भ्रूमध्य प्रदेश में एक बिन्दु पर मिलकर दक्षिण भाग से वाम और वाम भाग से दक्षिण ओर होकर सहस्रार में चढ़ जाते हैं। इसी भ्रूमध्य स्थान को ही शिव नेत्र कहते हैं। यह अपूर्व ऊर्जा का भण्डार है।
इसके ऊपर चार लोक हैं। भ्रूमध्य का अधोभाग (Medula-Oblongata) है। इसके ऊपर छोटा मस्तिष्क (Cerebellum/hind brain) है। इसे कपाल-कंद कहते हैं। यहाँ पाँचों ज्ञानेन्द्रियाँ और स्वप्न की नाड़ियों का स्थान है। यही मनश्चक्र है। जो ऊपर कपाल कन्द को सहस्रार (Cerebrum) के मध्यवर्ती ब्रह्मरन्ध्र से जोड़ता है। इसके नीचे का भाग त्रिकोण की तरह कपाल रन्ध्र (Fourth ventricle) है।
ब्रह्मरन्ध्र (Third ventricle) के पिछले भाग पर नेत्र की आकृति बनती है, जिसे पीनियल (Pineal gland) कहते हैं। यही तीसरा नेत्र है। भ्रूमध्य पर एक और ग्रन्थि है जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड (Pituitary gland) कहते हैं। यही सारे रहस्यों का द्वार है। तालु के अन्तिम भाग में नीचे की तरफ लटका रहता है जिसे मैं अमर नाथ कहता हूँ। उपनिषद इन्द्रयोनि कहता है। जो अमृत द्वार है। योगी जन जिह्वा की लम्बिका क्रिया द्वारा अमृत पान करते हैं।
आज्ञा चक्र के ऊपर चन्द्रमा पर दबाव पड़ता है। यह दबाव सूर्य अथवा प्राण का पड़ता है। तब अमृत गिरने लगता है। इसे ही भगवान शंकर के मस्तिष्क पर स्थित चन्द्रमा कहते हैं। चन्द्रमा से मन और सूर्य से प्राण का सम्बन्ध है।
योगी वस्त्र की तरह यहीं से अपने शरीर को बदलने की कला प्राप्त करते हैं। जैसे सिंहासन पर बैठकर मन को संकल्प-विकल्प से रहित कर एकाग्र करते हैं। मन को प्राण में लीन करते हैं। प्राण को अपान में। फिर उसे सुषुम्ना में प्रविष्ट कराते हैं। जहाँ पाँचों तत्त्व को तीन गुणों में, तीनों गुणों को एक महत्तत्व में लीन कर देते हैं। फिर इसे आत्मा में, आत्मा को परम पुरुष में लीन कर देते हैं। साधक ‘ब्रह्मास्मि’ के ज्ञान में निदिध्यासन द्वारा सायुज्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यदि वह मोक्ष नहीं चाहता किसी कामना के वश पुनर्जन्म लेना चाहता है तब वह अपने अनुसार माँ व पिता का चुनाव कर जन्म ग्रहण कर सकता है।
||हरि ॐ||
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समय के सदगुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति ‘शिव नेत्र’ से उद्धृत….
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –