मन की बातें
मन की बातें
मैं अक्सर हार जाती हूं
जब वो मुस्कुराता है,
मेरे माथे को सहला कर
मेरी हर भूल भुलाकर
मुझे अपना जताता है,
संग रहे ना रहे कहा
मुझसे दूर जाता है।
उसकी हां भी नही होती
वो ना भी कहा करता है,
मेरे सवालों के बदले
वो अक्सर बातें बनाता है,
जब मैं भर जाती हूं
वो स्याही बन पिघल जाता है
मेरे कोरे कागज पर वो
रंग बनकर बिखर जाता है।
वो कहता है समय है
यूं ही गुजर जाएगा
हंसते गुनगुनाते ये
सफर यूं ही कट जायेगा
सोचती हूं मैं अक्सर,
कब अपना समय आएगा
मेरी बीती उमर का क्या
वो मुझे कौन लौटाएगा ,
मैं ठहरी रही इस कदर
कि कब सब बदल जाएगा ,
वो कौन सा मुकाम होगा
जब सब अपना नजर आएगा ।
रचयिता रेणु पांडे
Photo by Anastasiya Lobanovskaya from Pexels
सुन्दर अभिव्यक्त है।कृपया निरंतरता बनाए रखिए।
bohot sundar… Syahi aur kagaz wala rupak bohot hi gehra hai
Aise hi likhte rahiye