सुमिरन
सुमिरन
तटस्थ है तुमसे मिलना, माना।
आओगी अवश्य तुम, यह भी जाना।
नहीं जानता कैसा होगा रूप तुम्हारा,
होगी सुन्दर, या कुरूप, किसने जाना।
पल पल करूंगा प्रतीक्षा तुम्हारी,
ऐसा ना मान लेना,
ऐ मृत्यु।
एकाकी नहीं हूँ जीवन में अब भी,
वो थे साथ या ना हैं, तब भी।
श्वास अभी है, आस अभी है।
है उसका उज्ज्वल साथ अभी है,
कर्तव्य पथ पर रह्ता है जो,
राम का उस पर हाथ अभी है।
अभी है नैया उस पार लगानी,
केवट का केवट मरम हैं जानी,
उफान पड़ा हो नदिया में जो,
सुमिरन करय तब भी, वो ज्ञानी।
आशीष कुमार त्रिपाठी, “अलबेला”
यहाँ “केवट का केवट” रामायण के केवट प्रसंग से प्रभावित है। पहला केवट, हम स्वयं जो अपनी नैया खींच रहे हैं, और दूसरा केवट स्वयं श्री राम जो पूरे ब्रह्मांड के नैया खींच रहे हैं। एक केवट दुसरे केवट का मर्म अच्छे से समझ सकता है, यही भाव है इस एक पंक्ति का।