बदलती दुनिया
बदलती दुनिया
दिल ए नादाँ किसे ढूँढ रहा है इस भीड़ में, वो शिद्दत वाली मोहब्बत अब नहीं मिलती।
पास बुलाकर बस गम ही दे जाएगी ये दुनिया, किसी के साथ बैठकर अब दिल को राहत नहीं मिलती।
वो जमाना और था जब इश्क़ में लोग लुट जाया करते थे ।
मोहब्बत में फ़ना हो जाने की चाहत अब कहीं नहीं मिलती।
एक हम ही हैं जो सबको नेक दिल समझ बैठे हैं, बेईमानी बिकती है मुहँबोले दामों में, ईमानदारी की कोई कीमत नहीं मिलती।
अपनी ख़ुशी देकर किसी का ग़म ले ले, ऐसी फितरत अब कहाँ रही,
दौलत के पीछे भागते इंसानो में इन्सानीयत नहीं मिलती।
मंजिल पाने की दौड़ में बस बेतहाशा भाग ही रहे हैं सब।
पर कभी किस्मत को हम नहीं मिलते ,कभी किस्मत हमको नहीं मिलती ।
जख्म अब भी हरे हैं बिल्कुल दिल के किसी कोने में,
मर्ज क्या है ये सबको पता है, पर मर्ज की तासीर किसी को नहीं मिलती।
वो एक अधूरा ख़्वाब हमारा भी मुकम्मल ना हुआ,
देखे हुए ख़्वाब पूरे हो जाएं ऐसी तकदीर सभी को नहीं मिलती।
आरती सामंत
Photo by mentatdgt: https://www.pexels.com/photo/photo-of-woman-standing-inside-train-holding-on-metal-rail-while-looking-outside-2083246/
Awesome…keep writing👍
Awesome… Keep writing👍
Lovely poem and so true…Keep it up sis!!
thnx di