माँ
#mothersday2022
माँ
धूप कड़ी थी मगर वो अड़ी रही, अपनी छाँव में सबको लिए वो खड़ी रही।अपनी जड़ों से सींचा है जिनको अब वो पत्ते लहलहाते हैं, उंगली थामे जिनको चलना सिखाया वो जीने की राह बताते हैं।।
सब बदल गया है माँ
पर तेरी मुस्कान नहीं
तू सर पर हाथ रखे
इससे अलग मेरी कोई पहचान नहीं।
न जाने कितनी दुआओं
मन्नतों और तावीज़ों
में खुद को बांध आती है
वो मां है जनाब
कहां हार मान पाती है।
अपनी हसरतों को
भट्टी में डाल
आंगन की तुलसी
में लहलहाती है
वो मां है जनाब
अपने बच्चों के लिए
कुछ भी कर जाती है।
धूप न लगे मेरे लाल को
आंचल में छिपाती है,
हाथों से बुनकर
सर्दी से बचाती है।
बारिशों में सबके गीले
कपड़े यहां-वहाँ सुखाती है,
चाय में अदरक तुलसी
बच्चों को पिलाती है।
किसी बहाने से अक्सर
मां पीठ थपथपाती है,
छोटी मोटी मुश्किलें
ताने उलाहने से सुलझाती है।
कहती है जो मन सो करो
मेरा क्या मैं कब तक समझाऊंगी
पर कहां रह पाती है मां,
फिर से वही समझाती है मां।
अपनी आँखों के नम कोने
अपने बच्चों से छिपाती है मां,
पिता के सख्त लहजे से
जब तब अपने बच्चों को बचाती है
वो मां है जनाब कहा हार पाती है।।
एक गोद में, एक बाहें थामे
एक पेट में….वो भी एक जमाना था,
मैने पाला है ऐसे सबको
हंस हंस कर बताती है मां।
सबको जीना सिखाती है
अपनी घुड़कियों से
अपनी धमकियों से
पर अक्सर खुद जीना भूल जाती है मां।।
रेणु पाण्डे
Photo by Anil Sharma: https://www.pexels.com/photo/monochrome-photo-of-a-mother-and-her-children-smiling-together-10533763/
Beautiful poem Renu