मिथक पुरुष नानक

||श्री सद्गुरवे नमः||
गुरु नानक जयंती (कार्तिक पूर्णिमा, दिनांक 8.8.2022) पर विशेष…..
मिथक पुरुष नानक
भारतीय परंपरा रही है कि जो भी पुरुष संन्यास लेता है, उसका रूप, नाम, स्थान बदल दिया जाता है| नया नाम दिया जाता है| पुराने से सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया जाता है| पुराना वस्त्र भी उतार दिया जाता है| नया वस्त्र सफ़ेद, लाल, पीला इत्यादि पंथ, सम्प्रदाय के अनुसार दे दिया जाता है| परन्तु नानकदेव ऐसा कुछ नहीं करते हैं| वस्त्र वही रहता है, काम वही करते रहते हैं| परमात्मा का भजन निरंतर चलता रहता है| परमात्मा के लिए कहीं भागते नहीं| दौड़ते नहीं| अपने में मस्त हैं| गीता गा रहे हैं| जो पास है, ज़रुरतमंदों को दे रहे हैं| मन भजन में है| भक्ति में है| शरीर काम में है| लकीर के फ़क़ीर नहीं हैं| परंपरावादी नहीं हैं| विद्रोही हैं| अपने चलने के लिए स्वयं का रास्ता निर्माण करते हैं| मैं इन्हें मिथक पुरुष मानता हूँ| इनके द्वारा जो किया गया वह मिथ है|
भारतीय चिन्तन में विद्वान लोग राम-कृष्ण, भीष्म, विश्वमित्र, अत्रि, याज्ञवल्क्य को मिथक पुरुष मानते हैं| ये लोग जीवन एवं प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों से तालमेल बैठाते हुए आगे बढ़ते हैं| इनका जीवन अलौकिक प्रतीत होने लगता है| इनके सदाचारी जीवन से अनहोनी घटनाएं स्वतः प्रभावित होने लगती हैं| इन्हीं की संवेदनाओं से मिथ जन्म लेता है–आगे बढ़कर ताना-बाना बुनकर नए पुनर्निर्माण करते हैं| मिथ में भूत छिपा रहता है| वर्तमान के लिए प्रेरणास्रोत बना रहता है| भविष्य का द्रष्टा है|
इतिहास एवं मिथक में अंतर है| इति अर्थात् बीता हुआ| हास अर्थात् कहानी| बीती हुई कहानी को इतिहास कहते हैं| बासी को इतिहास कहते हैं| मिथक भिन्न है| इतिहास का प्रत्येक खंड मिथक नहीं हो सकता| इतिहास के श्रेष्ठ पन्ने जो मानस जो लोक मानस के लिए समर्पित हैं, मिथक हो सकते हैं| जैसे रामायण काल में राम, हनुमान, विश्वमित्र, परशुराम, त्रिशंकु, लोमश, दुर्वासा, रावण मिथक पुरुष हैं| इन्हें छोड़कर उस काल की कल्पना नहीं की जा सकती| इसके बाद कृष्ण, कंस, भीष्म द्रोण, दुर्योधन, कर्ण इत्यादि मिथक हुए| मुग़ल काल में अकबर, शिवाजी, औरंगजेब, कबीर, नानक में मिथक बनने की ज़बरदस्त क्षमता है| इनसे कुछ पहले दृष्टि डालते हैं तो बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, अशोक मिथक हैं| इनको छोड़कर इतिहास की रचना बेकार होगी|
वर्तमान काल के निर्माण में इन पुरुषों की अहम् भूमिका है| इन्हीं की छाया से धर्म, भाषा, संस्कृति एवं दर्शन का निर्माण हुआ, जो कालांतर में मिथक कहलाये हैं| राम या यूनान में हरकुलिस, एटलस, प्रमथ्यु, ईसा तथा अरब में मुहम्मद एवं मुल्ला नसरुद्दीन को छोड़ दें तो इतिहास अधूरा रह होगा| इन व्यक्तियों का कद हर समय, समय के राजनेता से ऊँचा होता है| क्योंकि इतिहास मात्र स्मृति होती है जबकि मिथक पुरुष समाज का प्राण होता है|
गुरु नानक के व्यक्तित्व, प्रभा मण्डल के सामने लेनिन, माओ, गाँधी या वर्तमान समय के मुसलमान शासक बौने दिखाई देते हैं| ये संस्कृति पुरुष की तरह महान स्तम्भ साबित हुए हैं| राजनेता की लोकप्रियता का ग्राफ चढ़ता-उतरता है| समय के साथ घटता-बढ़ता है| परन्तु इनका ग्राफ निरंतर बढ़ता ही जाता है| इन्हीं से सिख पंथ चला| गुरुमुखी भाषा की एक विशेष पहचान का निर्माण हुआ| हिन्दू-मुसलमान, बाला-मरदाना दोनों साथ-साथ चले| ये अत्यंत विद्रोही हुए| आग के अंगारों की तरह जलते हुए| आग की गरमी सभी बरदाश्त नहीं कर सकते| विश्वमित्र ने जातिगत व्यवस्था पर लात मारकर ब्रह्मर्षि बनने का मार्ग खोला| कृष्ण इंद्र की पूजा छोड़कर उद्योग को प्रतिष्ठित किये| नानकदेव तथाकथित संन्यास को लात मारकर काम करते रहे| भ्रमण करते रहे| परमात्मा के चिन्तन में लगे रहे| कभी देखादेखी नहीं की| जो स्वयं के अन्दर देखा, वही आम जनता को दिखाया| वास्तविक भक्ति एक ओंकार की तरफ लोगों को आकृष्ट किया| इनका सम्बन्ध एक ओंकार से हो गया| अतएव ये अनंत शक्ति के पॉवर हाउस बन गए| जिसका परिणाम सामने है| जो नजदीक आया चकाचौंध हो गया| प्रकाशित हो गया| तत्कालीन लोक मानस की चेतना में छा गए| इन्हें छोड़कर हम इतिहास नहीं लिख सकते| चूँकि ये मिथक पुरुष हैं|
यह सत्य है कि किसी महापुरुष के आगमन के साथ उनके इर्द-गिर्द उनसे सम्बंधित जीव जगत् में रूप धारण कर लेते हैं| वह पुरुष सद्गुरु उसका उद्धार करना चाहता है| गुरु शिष्य का सम्बन्ध अत्यंत पुरातन होता है| जन्मों जन्म का वादा रहता है| सद्गुरु जन्म मरण से मुक्त होते हुए भी करुणावश जीव-जगत् के लिए आते हैं| कुछ के लिए पूर्व में ही संकल्प ले लिए रहते हैं कि तुझे भी बोधि ज्ञान कराऊँगा| उस संकल्प को पूरा करने हेतु उनका आगमन इस धराधाम पर होता है| उससे सम्बंधित साधारण जीव, उन्नत जीव भी जन्म ले लेते हैं जो सहज ही उस सद्गुरु के सान्निध्य में अपने को पुनीत कर अपने चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं|
पउड़ी – 1
हुकुमि रजाई चलणा
(परमात्मा के देश पर चलना)
आदि सचु जुगादि सचु | है भी सचु नानक होसी सचु ||
वह रचना से पहले भी सत्य था, युगों के आरंभ में भी सत्य था| अब भी सत्य है, आगे भी सत्य होगा| गुरु नानक देव उस परमात्मा की विशेषता बता रहे हैं, जो अभी अभी उनमें अवतीर्ण हुआ है| वह पहले था जब सृष्टि नहीं थी| सत्य और झूठ में यही अंतर है| झूठ पहले नहीं था| अभी है परन्तु बाद में नहीं रहेगा| यह शरीर पहले नहीं था| बाद में भी नहीं रहेगा| अभी है| अतः यह झूठा है| सपना पहले भी नहीं था, जागने पर भी नहीं है| अतः वह भी झूठा है| जो सत्य है वह है- केंद्र बिंदु| जिसके चारों तरफ सृष्टि घूमती है| कबीर साहब भी कहते हैं –
अविगति की गति का कहो, जाके गाँव न ठाँव|
गुण बिहूना पेखना, का कहि लीजे नाँव||
वह परमात्मा ही शाश्वत है| वह गति से रहित है| उसका गाँव, नाम, ठाँव कुछ भी कहना उससे बाँधना है| गुरु नानक जी का एक सूत्र व्यक्ति के जीवन को बदल देने के लिए काफी है| काम, क्रोध, लोभ, अहंकार भी असत्य हैं| ये तो एक झटके में आ जाते हैं| इस वाणी को जापु कहते हैं| जो जपने योग्य हो| जब साधक काम, क्रोध, अहंकार से आक्रांत हो| चारों तरफ से वासनाएं आक्रमण कर रही हों, साधक डांवाडोल हो गया हो| तब इसे मन से गुनगुनाएं| इसे बार-बार दोहराएं –
आदि सचु जुगादि सचु| है भी सचु नानक होसी सचु||
साधक एकाएक अपने में परिवर्तन पायेगा| चूँकि यह वाणी किसी काल्पनिक व्यक्ति के द्वारा कल्पित नहीं की गई है| अपितु वे द्रष्टा हैं| देख रहे हैं| जैसे आकाश बादलों से घिर गया हो, सर्वत्र अँधेरा छा जाये, तभी एकाएक हवा का प्रबल झोंका या आँधी आ जाये तो क्षणमात्र में बादल भाग जाते हैं| पूरा आकाश साफ़ हो जाता है| उसी तरह से साधक को मन रूपी आकाश को साफ करने के लिए जापु काफी है|
सोचै सोचि न होवई जे सोची लाख वार||
चुपै चुप न होवई जे लाइ रहा लिव तार||
भुखिया भूख न उतरी जे बना पुरीआ भार||
सहस सिआणपा लख होहि त इक न चलै नालि||
किव सचिआरा होईऐ किव कूड़ै तुटै पालि||
हुकुमि रजाई चलणा नानक लिखिआ नालि||
अर्थात् सोचने से सोच नहीं जा सकती, चाहे लाखों बार सोचें| चुप रहने से चुप नहीं रहा जा सकता, चाहे एक तार ध्यान लगाये रखें| भूखे रहने से मन की भूख नहीं मिटती चाहे सब प्रकार के पदार्थों की गंध ले लें| लाखों और हजारों चतुरों की चतुराइयाँ हों, तब भी उसके साथ एक नहीं चलती| सच्चे किस प्रकार से हो सकते हैं? झूठ का पर्दा किस प्रकार टूटता है? परमात्मा के हुक्म में चलना है जो उसने जीव के साथ लिखा है|
अक्सर हम परमात्मा को सोच-सोचकर प्राप्त करना चाहते हैं| गुरु नानक देव कहते हैं कि उसे लाखों बार सोचें तो भी प्राप्त नहीं कर सकते| मंदिर का पुजारी, गिरिजाघर का पुजारी उसे सोच-सोचकर पाना चाहता है| विचार तो मन का है| फिलॉसफ़र लोग मनन करते रहते हैं| कुछ भी नहीं करते| किसी किनारे नहीं पहुँच पाते हैं| केवल सोचते रहते हैं| केवल सोचना व्यक्ति को अकर्मण्य बना देता है|
जब साधक की सोच समाप्त हो जाती है तो वह निर्विकार हो जाता है| उस दशा को कबीर कहते हैं – ‘सहजे उन्मुनी जागी, सहजे मिले रघुराई|’ सब सहज हो जाता है| जिसे पातंजलि जी निर्विकल्प समाधि कहते हैं|
यह मौन रहने से भी नहीं मिलता है| बहुत लोग मौनी हो जाते हैं| जैन मुनि जी मुँह पर कपड़ा बाँध लेते हैं| मुँह बंद है, परन्तु मन और तेज़ हो गया| हाथ चलने लगा| हाथ चलने लगा| पेंसिल एवं कॉपी चलने लगी| मुँह चुप हो गया और सब खुल गया| हम ज़बरदस्ती मौन साधते हैं|
जब आप ध्यान में बैठते हैं उस समय ज्यादा विचार उठते हैं| अक्सर मुझसे लोग आकर कहते हैं कि जब मैं ध्यान में बैठता हूँ तो मन तेजी से घूमने लगता है| पूजा से उठना पड़ता है| जब सत्संग में बैठते हैं, नींद आने लगती है| वही व्यक्ति जब कभी नाच-गाने में बैठता है तब पता नहीं चलता कि कब समय निकल गया| चूँकि मन वासनाओं से बाहर नहीं आता है| मन जन्मोंजन्म से वासनाओं में घूम रहा है| कूड़े-करकट में रमा है| बाहर नहीं निकलना चाहता है| जैसे विष्ठा के कीड़े को निकालकर गंगा जल में रखें तो वह मर जायेगा| क्योंकि गंदगी के साथ अपना तादात्म्य बैठा लिया है| उससे हटने में अड़चन है| नाच-गाना मन की वासना है| सत्संग, ध्यान, पूजन मन के विपरीत हैं| वासनाओं के विपरीत हैं| मौन रहने में वासनाएं नहीं मिलती हैं|
पूरियों की गठरी सर पर लेकर चलने से भूख नहीं जाती| उसी प्रकार जैसे बैल पर शास्त्रों का बोझ लाद दें तो वह ज्ञानी नहीं हो सकता है| जब तक वह पूरी उतारकर मुँह में नहीं डाल देते, तब तक पेट में नहीं जाती, न ही भूख मिटती है| कबीर भी कहते हैं–
‘खाँड़ काहे मुँह मीठा न होई||’ खाँड़ कहने से मुँह मीठा नहीं होता, और ‘धन-धन कहे जो धनिक हो जाई, निर्धन रहे न कोई||’ यदि परमात्मा की भूख उत्पन्न हो गई, तब उसे आत्मसात् करना पड़ेगा| लेकिन हम ग्रंथों को रटकर वह भूख मिटाने की धृष्टता करते हैं| वह भूख गुरु मिटाता है|
‘हुकुमि रजाई चलणा नानक लिखिया नालि||’
गुरु नानक का यह वचन अत्यंत कीमती है| यदि इसी को समझ लें तो दुःख सुख से नाता छूट जाता है|
उसके हुक्म, उसकी मर्ज़ी के अनुसार ही चलना है| अपने विचार करने की ज़रूरत ही नहीं| हम व्यर्थ का दिमागी तनाव लेते हैं| हमारा यह काम नहीं हुआ तो वह काम नहीं हुआ| रात-रात भर नींद नहीं आती है| कबीर भी कहते हैं–
कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मेरा नाँव|
गले राम की जेवड़ी, जित खैंचै तित जाँव||
उस पर ही छोड़ देना है| ‘तेरा तुझको सौंपिया मेरा लागत है क्या?’ लेकिन हम उसपर छोड़ते नहीं हैं| उस पर विश्वास ही नहीं है| शक की दृष्टि से देखते हैं| पता नहीं कहाँ ले जाए| हम अपनी इच्छा के अनुसार परमात्मा को लेकर चलाना चाहते हैं| हम चाहते हैं हमारी शादी अच्छी लड़की से हो जाए| हमें बहुत दहेज मिल जाए| पुत्र उत्पन्न हो जाए| कुछ करना न पड़े| खूब नाजायज़ पैसा मिले| हम परमात्मा से काम लेना चाहते हैं– उसको नौकर से भी बदतर समझते हैं|
मेरे एक मित्र हैं– वे कहते हैं, मेरी नौकरी नहीं लगी| मैंने पूजा-पाठ छोड़ दिया| बोला– भगवान्, तू नौकरी भी नहीं दिला सकता तो अब से मैं नास्तिक हो जाता हूँ| छोड़ दिया– उसके दो महीने बाद मेरी सरकारी नौकरी लग गई| मैं पुनः आस्तिक हो गया| पूजा-पाठ करने लगा| ऐसा काम भी मिल गया कि हजारों रुपये रोज़ की आमदनी होने लगी| अब मैं उसमें से कुछ निकालकर भगवान् को देने लगा| उनका मंदिर बनवाया, दान दिया| मैंने भी अपना विशाल घर बनवाया| गाड़ी खरीदी| मेरी इज्जत-प्रतिष्ठा बढ़ गई| एक दिन घूसखोरी में पकड़ा गया| मैंने मंदिर में जाकर पुजारी एवं भगवान् को खूब गालियाँ दीं| हमने तुम्हारा मंदिर बनवाया| पुजारी रखा| रोज़ भोग लगता है| कहाँ से आता है? तू बैठे-बैठे कहाँ से खाता है? तुझे शर्म नहीं आई जेल भेजते हुए! एक महीना बाद जेल से बाहर आया| पूजा- पाठ छोड़ दिया| अब मैं इसे बेकार मानता हूँ| ढोंग मानता हूँ|
यही है आस्तिकता| जिसकी कोई कीमत नहीं| चोरी, डकैती, हत्या करना मेरी प्रतिभा है| पकड़ा गया तो परमात्मा की गलती है| आजकल नौकर को भी गाली नहीं दे सकते| परमात्मा तो नौकर से भी बदतर हो गया है|
नानक देव कहते हैं– उसी पर छोड़ दो| जैसा करना चाहे करे| वह जहाँ ले जाए, जाओ| उसका हुक्म मानना ही साधना है| जो करे, उसपर धन्यवाद देना है| अहोभाव प्रगट करना है| यदि यह स्थिति आ गई, हम जहाँ बैठे हैं वहीं ध्यान लग जायेगा| यदि इसके उलटे हैं, तब वही हमारी चिंता का कारण है|
नानक कहते हैं कि जप, तप, ध्यान, पूजा सभी कुछ है– उसी की मर्ज़ी पर चलना| कोई अवरोध नहीं| नदी की धार के साथ बहना| हवा के झोंके के साथ उड़ना| ‘जेहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिए|’ जैसा रखना चाहता है, वैसा ही रहिए| फिर एक क्रांति घट जाएगी| वह क्रांति शांति की होगी, अहोभाव की होगी|
समय के सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति ‘एक ओंकार’ से उद्धृत….
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‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –