इगो
इगो
अभी एक साल भी नहीं हुआ था दोनों की शादी को कि दोनों में झगड़ा हो गया किसी बात पर।
जरा सी अनबन हुई और दोनों के बीच बातचीत बंद हो गई। वैसे दोनों बराबर पढ़ें-लिखें, दोनों अपनी नौकरी में व्यस्त तो दोनों का इगो भी बराबर।
वहीं पहले मैं क्यों बोलूं….मैं कयों झुकूं ?
तीन दिन हो गए थे पर दोनों के बीच बातचीत बिल्कुल बंद थी। कल कुंजन ने ब्रेकफास्ट में पोहे बनाए, पोहे में मिर्च बहुत ज्यादा हो गई कुंजन ने चखा नही तो उसे पता भी नहीं चला और निकुंज ने भी नाराजगी की वजह से बिना कुछ कहे पूरा नाश्ता किया पर एक शब्द नही बोला, लेकिन अधिक तीखे की वजह से सर्दी में भी वह पसीने से भीग गया बाद में जब कुंजन ने ब्रेकफास्ट किया तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।
एक बार उसे लगा कि उसे निकुंज से सॉरी बोलना चाहिए लेकिन फिर उसे अपनी फ्रैंड की सीख याद आ गई कि अगर तुम पहले झुकी तो फिर हमेशा तुम्हें ही झुकना पड़ेगा और वह चुप रह गई हालांकि उसे अंदर ही अंदर अपराध बोध हो रहा था।
अगले दिन सन्डे (sunday) था तो निकुंज की नींद देर से खुली घड़ी देखी तो नौ बज गए थे, उसने कुंजन की साइड देखा, वह अभी तक सो रही थी, वह तो रोज जल्दी उठकर योगा करती है। निकुंज ने सोचा, खैर… मुझे क्या ?
उसने किचन में जाकर अपने लिए नींबू पानी बनाया और न्यूजपेपर लेकर बैठ गया।
दस बजे तक जब कुंजन नही जगी तब निकुंज को चिंता हुई। कुछ हिचकते हुए वह उसके पास गया, कुंजन… दस बज गए हैं। अब तो जगो।
कोई जवाब नही। दो-तीन बार बुलाने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तब वह परेशान हो गया। उसने कुंजन का ब्लैंकेट हटा कर उसके चेहरे पर थपथपाया….. उसे तो बुखार था।
वह जल्दी से अदरक की चाय बना लाया कुंजन को अपने हाथों का सहारा देकर बिठाया और पीठ के पीछे तकिया लगा दिया, उसे चाय दी।
‘कोई दिक्कत तो नही कप पकड़ने में, क्या मैं पिला दूं ? निकुंज के कहने का अंदाज में कितना प्यार था यह कुंजन फीवर में भी महसूस कर रही थी।
‘मैं पी लूंगी।’ उसने कहा।
निकुंज भी बेड पर ही बैठ कर चाय पीने लगा। ‘इसके बाद तुम आराम करो, मैं मेडिसिन लेकर आता हूं।’
कुंजन चाय पीते-पीते भी उसे ही देख रही थी।
कितना परेशान लग रहा था, कितनी परवाह है निकुंज को मेरी, कहीं से भी नही लग रहा कि तीन दिन से हम एक- दूसरे से बात भी नही कर रहे और मैं इसे छोड़कर मायके जाने की सोच रही थी… कितनी गलत थी मैं।
‘क्या हुआ ? निकुंज ने उसे परेशान देख पूछा, सिर में ज्यादा दर्द तो नही हो रहा ? लाओ मैं सहला दूं।’
‘नही निकुंज… मैं ठीक हूं। एक बात पूछूं ?
‘हां बिल्कुल…’ निकुंज ने सहज भाव से कहा।
‘इतने दिन से मैं तुमसे बात भी नही कर रही थी और उस दिन ब्रेकफास्ट में मिर्च भी बहुत ज्यादा थी तुम बहुत परेशान हुए फिर भी तुम मेरी इतनी केयर कर रहे हो ? मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हो, क्यों ?’
‘हां, परेशान तो मैं बहुत हूं, तुम्हारी तबियत जो ठीक नही और रही मेरे- तुम्हारे झगड़े की बात, तो जब जिंदगी भर साथ रहना ही है तो कभी-कभी बहस भी होगी, झगड़े भी होंगे, रूठना-मनाना भी होगा। दो बर्तन जहां हो वहां कुछ खटखट तो होगी ही, समझी कि नही मेरी जीवनसंगिनी ?
‘सही कह रहे हो…’ कहते हुए कुंजन निकुंज के गले लग गई।
मन ही मन उसने अपने-आप से वादा किया, अब कभी मेरे और निकुंज के बीच इगो नही आने दूंगी।
धनेश परमार ‘परम’