चाँद और मैं
चाँद और मैं
हर पूर्णिमा को पूरे चाँद को देख,
मैं खुश हो जाया करती हूं।
उस चाँद की फोटो खींच,
व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाया करती हूं।
लगता मानो चाँद और मैं एक जैसे हैं।
बचपन में ढेरों दोस्त हुआ करते थे,
उस चाँद के साथ ढेरों तारे हुआ करते थे।
वक्त बीता, समय के साथ अब गिनती के कुछ दोस्त बचे हैं,
उस चाँद का भी यही हाल है,
गिनती के कुछ तारे दिखते हैं।
आज भी हर पूर्णिमा को, उस पूरे चाँद को देख,
मैं खुश हो जाया करती हूं।
जिंदगी के थपेड़े कभी मुझे घटा देती है,
उस चाँद सा बना देती है।
अंधेरे में डुबो देती है ,
अमावस बना देती है।
तो कभी नई उम्मीद जगाती है,
पूर्णिमा भी बना देती है ।
घटना– बड़ाना तो जिंदगी का नियम है, प्यारे।
वो कभी हंसाएगी, तो कभी रुलाएगी,
जब तक जिंदगी है नई रंग दिखाएगी ।
जाने कितने ही सैकड़ों वर्षो से,
ये चाँद चलते ही जा रहा है।
जब ये चाँद नहीं थका ,
तो मैं कैसे थक जाऊं ,
मैं कैसे हार मान जाऊं,
क्योंकि चाँद और मैं, तो एक जैसे हैं ।
आज भी हर पूर्णिमा को पूरे चाँद को देख,
व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाती हूं,
खुश हो जाया करती हूं।
रचयिता, स्वेता गुप्ता
Good … not bad !!
Very nice
Thank you bhaiya 😇