ठुमकता मन

ठुमकता मन
बचपन के टूटे खिलौने सा
कभी टूटा हुआ लम्हा ।
पैरों में चुभता है कोई
चूर हो चुका सपना।
किस किस राह चले कदम
मंजिल मिली कहांँ
मुसाफिर सा मन
भटके यहाँ- वहाँ।
ठुमकता मन मचलता मन
नुक्ताचीन है बडा़
कुछ भी इसे भाता है नहीं ।
खामियाँ ही देखता है मुझमें
क्यों इसे कुछ सुहाता नहीं।
कमियां निकालता है
हर बात की मेरी
मेरा ही दिल बना है
दुश्मन मेरा यहाँ ।
कितना तराशेगा ये
इसे खबर नहीं
हल्का ही हो चुका
सारा हुनर मेरा।
मीनू यतिन
Photo by Azraq Al Rezoan : https://www.pexels.com/photo/young-indian-woman-sitting-with-book-5641184/
Very nice
🙏