मंजिल

मंजिल
ये धरती ये अंबर ,
ये रंगीन नज़ारा ,
है ऊंची अडिग हैं ,
ये पर्वत की चोटी ,
मुझसे ये कहती बड़ी दूर मंजिल ,
ये लंबा सा रास्ता ,
हरे पेड़ लंबे ,
कहती॔ हैं मुझसे ,
सफर दूर का है,
पलकें झुकाके मगर मैंने सोचा ,
ये नील आकाश ये लंबा रास्ता ,
और तो ये पर्वत की लंबी चिटारी ,
सब तो क्षितिज से बंधे ही तो हैं !!
कदम से कदम हम मिलाकर चले ,
झुकेगा वह अंबर ,
छू लेगी ज़मीन ,
गुम हो जाएगा तू सफलता की वादियों में ,
फूलों कि शैय्या में जीवन बितेगा ,
खुला है गगन ,
खुला रास्ता है ,
जा जाके मिल ,
जीत ले अपनी मंजिल ।।
कल्याणी