सृजन के वो क्षण

सृजन के वो क्षण
गरजकर बरसती पीड़ा
की अनुभूति,
बादलों की तरह
धरा पर बिखरती।
पत्तो पर ठहरतीं
ठहराव यह प्रवाह का
नवजीवन का
सृजन का संसार है,
कविताये यूँ ही
बादलों की तरह
भावों का तकरार है।
कुछ घुटकर रह जाता है
कुछ बरसकर उतर जाता है।।
@रेणु