मोहन के संग
मोहन के संग
मैं तो रंगी मोहन के रंग,
मैं तो चली मोहन के संग,
जिंदगी में उनकी मौजूदगी,
जैसे उपवन में फूलों की महक,
जैसे उपवन में चिड़ियों की चहक,
जैसे हाथ पकड़ कर चलने वाला वह साथी।
उन्होंने जो सिखाया सीखा,
मैंने जैसे जिंदगी का मूल,
उनकी महत्तता है जैसे,
अंधेरे रात में दीपक की रोशनी।
मैं तो रंगी मोहन के रंग,
मैं तो चली मोहन के संग,
छोड़कर दुनिया की यह मोह-माया,
करने लगे मैं उनकी जप,
मैं तो बनी मोहन की प्रेम- दीवानी,
जैसे मैं एक किताब और वह मेरी कहानी।
पकड़े जो वो एक बार मेरा हाथ,
छूटे ना कभी उसका साथ,
मैं तो रंगी मोहन के रंग,
मैं तो चली मोहन के संग।
-हंसिका गुप्ता
Photo by the Amritdev: https://www.pexels.com/photo/a-girls-looking-gorgeous-and-cute-18383026/
Beautiful poem…especially the line “jaise mein ek kitab, aur woh meri kahani”… keep writing 🥰