पल इतंजार का

पल इतंजार का
गुम है कहीं, गुमशुदा सा है
हँसने हंसाने से डरा सा है
मिला तो रोज ही की तरहा
लम्हा फिर भी
रोज से जुदा सा है ।
बीतता नहीं क्यों
वक्त इतंजार का
जाने किस पहर से
ये पहर,यहीं रुका सा है।
वक्त के साथ चलना
इसे आया नहीं
किस उम्मीद पे अब भी
कमबख़्त दिल ठहरा है ।
आँखो की आदत भी
अजीब है न!
नम हों तो दरिया है
सूख जाये तो सहरा है।
मीनू यतिन
Photo by Juan Pablo Serrano Arenas: https://www.pexels.com/photo/woman-leaning-on-glass-window-1101726/