किरदार

किरदार
कहानियों के शहर में मुझको
जाने अनजाने कितने किरदार मिले, कुछ हंसते ,मुस्कराते
कुछ बोझिल और बेजार मिले।
कुछ साज़िशें करते, कुछ बनते सवरते , कुछ भोले , कुछ शातिर, कुछ समझदार मिले।
कहते है सामने कुछ, पीठ पीछे कुछ ,अकसर
राय बदलते जाने
कितनी बार मिले।
साथ छोड़ जाने वाले, दोस्ती निभाने वाले,
जाहिल से दिखते होशियार मिले।
बड़ी खामोशी सी थी एक तरफ, जाकर देखा जो बचपन के मोहल्ले में ,कुछ फटी किताबें बिखरी थीं, कुछ टूटे खिलौने बेकार मिले।
खिलखिलाते कमरों, बरामदों में सन्नाटा क्यों?
सब खो गए या बड़े हो गए?
जाने पहचाने बचपन के चेहरे इस बार मिले।
मौसम का जादू लिए
सर्दी के दिनों जैसा, गर्मी की शामों की तरह, बारिश की खुशबू भरे, एक गली मुहब्बत वाली,
गालों पर लाली, चेहरे पे हँसी वाली, आँखों में मिले प्यार या प्यार के इजहार मिले।
रूखे से चेहरे, थके -थके से कदम
भागते हैं फिर भी, इधर उधर बदहवास से, मन भरा हुआ है जैसे जाने कितनी आस से, संभालते सब कुछ लोग बड़े जिम्मेदार मिले।
कुछ रूठे से ,कुछ टूटे से
कुछ बेगाने, कुछ अपने से
कुछ सच जैसे कुछ सपने से
कुछ दोस्त भी , यार भी
कुछ बेबस लाचार भी
कहीं गुरुर, कोई मजबूर ,
कहीं हंसमुख, गुलजार मिले।
कहानियों के शहर में मुझको जाने अनजाने कितने किरदार मिले।।
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