सुनो यार, तुम करते क्या हो?
सुनो यार, तुम करते क्या हो?
सुनो यार,
तुम करते क्या हो?
मैं…
मैं कविताएं लिखता हूं।
अच्छा, बड़े छुपे रुस्तम हो
कभी बताया नहीं, कभी पढ़ाया नहीं।
यार, बस यूं ही जीवन की
उठा-पटक से जन्मी कुछ
आत्मसंघर्ष की कहानियां
कागज पर निकल आती हैं
और कविता कहलाती हैं।
बड़ा नाम होगा तुम्हारा फिर
वाह वाह भी पाते होंगे
अपने पाठक और श्रोता के
दिल में भी बस जाते होगे
अपने नाम से जाने जाते होगे
एक अपनी पहचान होगी
जीवन में एक मुस्कान होगी।
अरे नहीं,
ऐसा भी कुछ खास नहीं है
स्व से स्व की यात्रा है
ढूंढ़ना अपना एक मुकाम है
जरा सी खुशी मिल जाती है
और जिन्दगी बहल जाती है
हाँ, मैं बहुत खुश हो जाता हूं
जब किसी की नज़रों में
खुद को पाता हूं।।
वाह यार, क्या बात है
तेरा जीवन तो एक सौगात है
तुझमें ज़रूर कोई खास बात है,
पर तुमने बताया नहीं तुम करते क्या हो?
रचयिता रेणु पांडे