तलाश मेरे रूह की
तलाश मेरे रूह की
कुछ मेरी रूह सी लग रहीं थी,
चुप खड़ी निहार रहीं थी मुझें,
बस कुछ ही दूर तो थी खड़ी।
तलाश कर रही थी मैं उसे बहुत दिन से,
हज़ारों हज़ारों परतों के तले दफन थी,
हर परत जैसे-जैसे खुल रहीं थी,
मैं अचंभित थी,
खामोश हो गयीं थी,
कुछ मैल से लिपटी हुईं,
कुछ नकली ,
कुछ उजली भी थी,
और कुछ अनजानी थी,
फिर भी अपनी सी थी।
कुछ बोलना चाहती थी वोह,
कुछ मैं,
पर मैं असमंजस में थी,
क्या यहीं मेरी रूह हैं ?
मैं कुछ पल खड़ी रहीं,
शायद मेरी मंज़िल यह नहीं,
परतें कुछ अब भी खुलनी बाकी थी शायद,
रास्ता तय करना हैं लम्बा मुझको,
चल दी मैं अपने सफर पर, अपने रूह की तलाश में !
राखी सुनील कुमार
Photo by Lucas Pezeta: https://www.pexels.com/photo/woman-spreading-both-her-arms-2529375/
Bahut khoob…