खड़ूस मकान मालकिन

खड़ूस मकान मालकिन
‘‘साहबजी, आप अपने लिए मकान देख रहे हैं?’’ होटल वाला राहुल से पूछ रहा था।
पिछले 2 हफ्ते से राहुल एक धर्मशाला में रह रहा था। दफ्तर से छुट्टी होने के बाद वह मकान ही देख रहा था। उसने कई लोगों से कह रखा था। होटल वाला भी उन में से एक था। होटल का मालिक बता रहा था कि वेतन स्वीट्स के पास वाली गली में एक मकान है, 2 कमरे का। बस, एक ही कमी थी….. उस की मकान मालकिन।
पर होटल वाले ने इस का एक हल निकाला था कि मकान ले लो और साथ में दूसरा मकान भी देखते रहो। उस मकान में कोई 2 महीने से ज्यादा नहीं रहा है।
‘‘आप मकान बता रहे हो या डरा रहे हो?’’ राहुल बोला, ‘‘मैं उस मकान को देख लूंगा। धर्मशाला से तो बेहतर ही रहेगा।’’
अगले दिन दफ्तर के बाद राहुल अपने एक दोस्त प्रशांत के साथ मकान देखने चला गया। मकान उसे पसंद था, पर मकान मालकिन ने यह कह कर उस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि रात को 10 बजे के बाद गेट नहीं खुलेगा। राहुल ने सोचा, ‘मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर देर रात हो जाती है…..’ वह बोला, ‘‘आंटी, मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर रात को देर हो सकती है।’’
‘‘ठीक है बेटा,’’ आंटी बोलीं, ‘‘अगर पसंद न हो, तो कोई बात नहीं।’’
राहुल कुछ देर खड़ा रहा और बोला, ‘‘आंटी, आप उस हिस्से में एक गेट और लगवा दो। उस की चाबी मैं अपने पास रख लूंगा।’’
आंटी ने अपनी मजबूरी बता दी, ‘‘मेरे पास खर्च करने के लिए एक भी पैसा नहीं है।’’
राहुल ने गेट बनाने का सारा खर्च खुद उठाने की बात की, तो आंटी राजी हो गईं। इस के साथ ही उस ने झगड़े की जड़ पानी और बिजली के कनैक्शन भी अलग करवा लिए। दोनों जगहों के बीच दीवार खड़ी करवा दी। उस में दरवाजा भी बनवा दिया, लेकिन दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ। सारा काम पूरा हो जाने के बाद राहुल मकान में आ गया। उस ने मकान मालकिन द्वारा कही गई बातों का पालन किया।
राहुल दिन में अपने मकान में कम ही रहता था। खाना भी वह होटल में ही खाता था। हाँ रात में वह जरूर अपने कमरे पर आ जाता था। उस के हिस्से में ‘खटखट’ की आवाज से आंटी को पता चल जाता और वे आवाज लगा कर उस के आने की तसल्ली कर लेतीं। उन आंटी का नाम प्रभा देवी था। वे अकेली रहती थीं। उन की 2 बेटियां थीं। दोनों शादीशुदा थीं। आंटी के पति की मौत कुछ साल पहले ही हुई थी। उन की मौत के बाद वे दोनों बेटियां उन को अपने साथ रखने को तैयार थीं, पर वे खुद ही नहीं रहना चाहती थीं। जब तक शरीर चल रहा है, तब तक क्यों उन के भरे पूरे परिवार को परेशान करें।
अपनी मां के एक फोन पर वे दोनों बेटियां दौड़ी चली आती थीं। आंटी और उनके पति ने मेहनत मजदूरी कर के अपने परिवार को पाला था। उन के पास अब केवल यह मकान ही बचा था, जिसको किराए पर उठा कर उस से मिले पैसे से उन का खर्च चल जाता था। एक हिस्से में आंटी रहती थीं और दूसरे हिस्से को वे किराए पर उठा देती थीं। पर एक मजदूर के पास मजदूरी से इतना बड़ा मकान नहीं हो सकता। पति-पत्नी दोनों ने खूब मेहनत की और यहां जमीन खरीदी। धीरेधीरे इतना कर लिया कि मकान के एक हिस्से को किराए पर उठा कर आमदनी का एक जरीया तैयार कर लिया था।
राहुल अपने मांबाप का एकलौता बेटा था। अभी उस की शादी नहीं हुई थी। नौकरी पर वह यहां आ गया और आंटी का किराएदार बन गया। दोनों ही अकेले थे। धीरेधीरे मांबेटे का रिश्ता बन गया। घर के दोनों हिस्सों के बीच का दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ। हमेशा खुला रहा। राहुल को कभी ऐसा नहीं लगा कि आंटी गैर हैं। आंटी के बारे में जैसा सुना था, वैसा उस ने नहीं पाया। कभीकभी उसे लगता कि लोग बेवजह ही आंटी को बदनाम करते रहे हैं या राहुल का अपना स्वभाव अच्छा था, जिस ने कभी न करना नहीं सीखा था। आंटी जो भी कहतीं, उसे वह मान लेता। आंटी हमेशा खुश रहने की कोशिश करतीं, पर राहुल को उन की खुशी खोखली लगती, जैसे वे जबरदस्ती खुश रहने की कोशिश कर रही हों। उसे लगता कि ऐसी जरूर कोई बात है, जो आंटी को परेशान करती है। उसे वे किसी से बताना भी नहीं चाहती हैं। उन की बेटियां भी अपनी मां की समस्या किसी से नहीं कहती थीं।
वैसे, दोनों बेटियों से भी राहुल का भाई-बहन का रिश्ता बन गया था। उन के बच्चे उसे ‘मामा-मामा’ कहते नहीं थकते थे। फिर भी वह एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ता था। लोग हैरान थे कि राहुल अभी तक वहां कैसे टिका हुआ है। आज रात राहुल जल्दी घर आ गया था। एक बार वह जा कर आंटी से मिल आया था, जो एक नियम सा बन गया था। जब वह देर से घर आता था, तब यह नियम टूटता था। हां, तब आंटी अपने कमरे से ही आवाज लगा देती थीं।
रात के 11 बज रहे थे। राहुल ने सुना कि आंटी चीख रही थीं, ‘मेरा बच्चा….. मेरा बच्चा….. वह मेरे बच्चे को मुझ से छीन नहीं सकता…..’ वे चीख रही थीं और रो भी रही थीं। पहले तो राहुल ने इसे अनदेखा करने की कोशिश की, पर आंटी की चीखें बढ़ती ही जा रही थीं। इतनी रात को आंटी के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी, भले ही उन के बीच मां-बेटे का अनकहा रिश्ता बन गया था।
राहुल ने अपने दोस्त प्रशांत को फोन किया और कहा, ‘‘भाभी को लेता आ।’’
थोड़ी देर बाद प्रशांत अपनी बीवी को साथ ले कर आ गया। आंटी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। यह उनके लिए हैरानी की बात थी। तीनों अंदर घुसे। राहुल सब से आगे था। उसे देखते ही पलंग पर लेटी आंटी चीखीं, ‘‘तू आ गया…. मुझे पता था कि तू एक दिन जरूर अपनी मां की चीख सुनेगा और आएगा। उन्होंने तुझे छोड़ दिया। आ जा बेटा, आ जा, मेरी गोद में आ जा।’’ राहुल आगे बढ़ा और आंटी के सिर को अपनी गोद में ले कर सहलाने लगा। आंटी को बहुत अच्छा लग रहा था। उन को लग रहा था, जैसे उन का अपना बेटा आ गया। धीरे धीरे वे नौर्मल होने लगीं।
प्रशांत और उस की बीवी भी वहीं आ कर बैठ गए। उन्होंने आंटी से पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने टाल दिया। वे राहुल की गोद में ही सो गईं। उनकी नींद को डिस्टर्ब न करने की खातिर राहुल बैठा रहा। थोड़ी देर बाद प्रशांत और उस की बीवी चले गए। राहुल रात भर वहीं बैठा रहा। सुबह जब आंटी ने राहुल की गोद में अपना सिर देखा, तो राहुल के लिए उन के मन में प्यार हिलोरें मारने लगा। उन्होंने उस को चाय-नाश्ता किए बिना जाने नहीं दिया।
राहुल ने दफ्तर पहुंच कर आंटी की बड़ी बेटी को फोन किया और रात में जो कुछ घटा, सब बता दिया। फोन सुनते ही बेटी शाम तक घर पहुंच गई। उस बेटी ने बताया, ‘‘जब मेरी छोटी बहन 5 साल की हुई थी, तब हमारा भाई लापता हो गया था। उस की उम्र तब 3 साल की थी। मां-बाप दोनों काम पर चले गए थे। ‘‘हम दोनों बहनें अपने भाई के साथ खेलती रहतीं, लेकिन एक दिन वह खेलते खेलते घर से बाहर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया।‘‘उस समय बच्चों को उठा ले जाने वाले बाबाओं के बारे में हल्ला मचा हुआ था। यही डर था कि उसे कोई बाबा न उठा ले गया हो।
‘‘मां कभी-कभी हमारे भाई की याद में बहक जाती हैं। तभी वे परेशानी में अपने बेटे के लिए रोने लगती हैं।’’ आंटी की बड़ी बेटी कुछ दिन वहीं रही। बड़ी बेटी के जाने के बाद छोटी बेटी आ गई। आंटी को फिर कोई दौरा नहीं पड़ा।
2 दिन हो गए आंटी को। राहुल नहीं दिखा। ‘खटखट’ की आवाज से उन को यह तो अंदाजा था कि राहुल यहीं है, लेकिन वह अपनी आंटी से मिलने क्यों नहीं आया, जबकि तकरीबन रोज एक बार जरूर वह उन से मिलने आ जाता था। उस के मिलने आने से ही आंटी को तसल्ली हो जाती थी कि उन के बेटे को उन की फिक्र है। अगर वह बाहर जाता, तो कह कर जाता, पर उस के कमरे की ‘खटखट’ बता रही थी कि वह यहीं है। तो क्या वह बीमार है? यही देखने के लिए आंटी उस के कमरे पर आ गईं। राहुल बुखार में तप रहा था। आंटी उस से नाराज हो गईं। उनकी नाराजगी जायज थी।
उन्होंने उसे डांटा और बोलीं, ‘‘तू ने अपनी आंटी को पराया कर दिया….’’
वे राहुल की तीमारदारी में जुट गईं। उन्होंने कहा, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारे मां-बाप जब तक आएंगे, तब तक हम ही तेरे अपने हैं।’’
राहुल के ठीक होने तक आंटी ने उसे कोई भी काम करने से मना कर दिया। उसे बाजार का खाना नहीं खाने दिया। वे उस का खाना खुद ही बनाती थीं। राहुल को वहां रहते तकरीबन 9 महीने हो गए थे। समय का पता ही नहीं चला। वह यह भी भूल गया कि उस का जन्मदिन नजदीक आ रहा है। उस की मम्मी सविता ने फोन पर बताया था, ‘हम दोनों तेरा जन्मदिन तेरे साथ मनाएंगे। इस बहाने तेरा मकान भी देख लेंगे।’
आज राहुल की मम्मी सविता और पापा रामलाल आ गए। उन को चिंता थी कि राहुल एक अनजान शहर में कैसे रह रहा है। वैसे, राहुल फोन पर अपने और आंटी के बारे में बताता रहता था और कहता था, ‘‘मम्मी, मुझे आप जैसी एक मां और मिल गई हैं।’’
फोन पर ही उस ने अपनी मम्मी को यह भी बताया था, ‘‘मकान किराए पर लेने से पहले लोगों ने मुझे बहुत डराया था कि मकान मालकिन बहुत खड़ूस हैं। ज्यादा दिन नहीं रह पाओगे। लेकिन मैंने तो ऐसा कुछ नहीं देखा।’’ तब उस की मम्मी बोली थीं, ‘बेटा, जब खुद अच्छे तो जग अच्छा होता है। हमें जग से अच्छे की उम्मीद करने से पहले खुद को अच्छा करना पड़ेगा। तेरी अच्छाइयों के चलते तेरी आंटी भी बदल गई हैं,’ अपने बेटे के मुंह से आंटी की तारीफ सुन कर वे भी उनसे मिलने को बेचैन थीं।
राहुल मां को आंटी के पास बैठा कर अपने दफ्तर चला गया। दोनों के बीच की बातचीत से जो नतीजा सामने आया, वह हैरान कर देने वाला था। राहुल के लिए तो जो सच सामने आया, वह किसी बम धमाके से कम नहीं था। उस की आंटी जिस बच्चे के लिए तड़प रही थीं, वह खुद राहुल था।
मां ने अपने बेटे को उस की आंटी की सचाई बता दी और बोलीं, ‘‘बेटा, ये ही तेरी मां हैं। हमने तो तुझे एक बाबा के पास देखा था। तू रो रहा था और बार-बार उस के हाथ से भागने की कोशिश कर रहा था। हमने तुझे उस से छुड़ाया। तेरे मां-बाप को खोजने की कोशिश की, पर वे नहीं मिले। ‘हमारा खुद का कोई बच्चा नहीं था। हम ने तुझे पाला और पढ़ाया। जिस दिन तू हमें मिला, हम ने उसी दिन को तेरा जन्मदिन मान लिया। अब तू अपने ही घर में है। हमें खुशी है कि तुझे तेरा परिवार मिल गया।’’
राहुल बोला, ‘‘आप भी मेरी मां हैं। मेरी अब 2-2 मांएं हैं।’’
इस के बाद घर के दोनों हिस्से के बीच की दीवार टूट गई।
धनेश रा. परमार
Photo by Mehmet Turgut Kirkgoz : https://www.pexels.com/photo/an-elderly-woman-in-red-clothes-11846347/