भीगा मन

#MONSOON2022
भीगा मन
घिर घिर आए काले बादल
लहराया जैसे हो माँ का आँचल
यूँ पगली पुरवाई झूम के गाने लगी
डाली -डाली को गले लगाने लगी
लोग सारे खुशी से चहकने लगे
यूँ गरज कर के बादल बरसने लगे
जोर से दरवाजा खटखटा के पवन
जबरन ही बौछारों से मुझको भिगाती है
मैं छुपा लेती हूँ हँसकर चेहरा अपना
जैसे मुहँलगी ननद होली में रंग लगाती है।
ये बारिश का मौसम बहुत भाता है मुझे
और बीता हुआ बचपन याद आता है मुझे
बादलों को खींच कर जब हवाएँ लाती थीं
हर छत पे बच्चों की टोली नजर आती थी
जी भर के भीगना हँसना और खिलखिलाना
खेलना बारिश की बूदों से और मुस्कुराना
कागज की नाव तैराना और तालियाँ बजाना ।
बारिश आज भी पसंद है मुझे
पर कुछ कमी है
बादल हो चले आवारा से
ठहरते नहीं एक जगह
बूदें अब कम सी लगती हैं
जाने क्या है वजह
अब पहले सी बरसात नहीं रही
घिरते तो हैं बादल, वो बात नही रही
अब बचपन खिड़कियों से देखता है
कहाँ भीगता है!
बूदें महसूस नहीं करता, तस्वीरें खींचता है
ये प्रकृति है इसमें जी लो
जाडे़ की धूप सेकों, बारिश की बूदों से खेलो
ये बूदें है नमी, ये ठंडक है, राहत हैं
ये बादल, ये बारिश धरती की चाहत हैं ।
मीनू यतिन
Photo by Michele Raffoni: https://www.pexels.com/photo/cold-snow-fashion-people-9065316/