पाप और पुण्य
पाप और पुण्य
‘पाप और पुण्य क्या है?’
‘तुम्हारा तबियत तो ठीक है न वंशिका?’ अंशुमन ने उसके ललाट पर हाथ रख कर पूछा|
‘मेरी तबियत को क्या हुआ? भली चंगी तो हूँ|’
‘तो आज ऐसी बहकी-बहकी बात क्यों कर रही हो?’ अंशुमन ने हँसते हुए पूछा|
‘इसमें बहकने वाली क्या बात है? बस मन में भाव उठा और मैने पूछ डाला|’ वंशिका ने थोड़े गुस्से में कहा|
‘अब नए जमाने की लड़की डेट में ऐसी-ऐसी बातें पूछेगी तो क्या ही बोलूँगा|’
‘देखो मिस्टर, बताना है तो बताओ| नहीं बताना है, तो मत बताओ|’ वंशिका इतना कह कर कुछ देर रुकी और फिर बोली,
‘मैंने तुम्हारी लिखी एक भी कहानी तो नहीं पढ़ी, पर मेरी कुछ सखियों को तुम्हारी लिखी कहानियाँ बहुत पसंद आती है और उन्होंने ही बताया था कि तुम काफी गहरी बातें कुछ कहानियों में इस तरह उधृत कर देते हो कि कुछ लोगों को उसके पीछे का सच साफ- साफ नजर आ जाता है और कुछ लोग उसकी गहराई को नाप नहीं पाते|…. तो मैंने सोचा कि आज लेखक साहब से मिलना हुआ है तो आज उनके साथ गहराई में उतरा जाए|’ वंशिका की बातों में कुछ शरारती तत्वों की बू आ रही थी|
‘अच्छा जी| तो पूछो, क्या पूछना है? ‘
‘पूछ तो लिया| पाप और पुण्य क्या है?’ वंशिका ने अंशुमन की आँखों में उतरते हुए कहा|
‘हम्म्… ‘ अंशुमन कुछ देर रुका और फिर उसने कहना शुरू किया,
‘पाप और पुण्य कुछ नहीं है| सब बस मनग्रहंत बातें है|’
‘क्या? ये कैसा उत्तर हुआ? इतना सड़ा- सा उत्तर की कल्पना मैंने नहीं की थी, अंशुमन|’ वंशिका ने त्योरी चढ़ाते हुए कहा|
‘हा हा.. तुमने जो पूछा, मैंने उसका उत्तर दिया| अब तुम्हारे अपेक्षा के अनुरूप तो मैं उत्तर नहीं दे सकता| अगर मैंने तुम्हारे अनुरूप उत्तर दिया तो वो मेरा उत्तर हुआ कहाँ| वो तो एक तरह से तुम्हारा हुआ न|’ अंशुमन ने गहराई में अपना पहला कदम रख चूका था|
‘उफ़ अंशुमन, कभी तो सीधी तरह से बात कर लिया करो| तुम्हारी बातें मुझे कभी समझ नहीं आती है, पर फिर भी पता नहीं क्यों, तुम्हारी ओर खिंची चली आती हूँ|’
‘अच्छा, ठीक है बाबा| आसान भाषा में समझाता हूँ|…
पाप और पुण्य की परिभाषा कभी स्थिर नहीं रही है| इसे हर युग में अलग- अलग तरह से परिभाषित किया गया है| ऐसा भी हो सकता है कि जो इस युग में पाप माना जाता है, वो शायद किसी दूसरे काल में पुण्य माना जाता हो|’
‘मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है| अंशुमन, तुम छोड़ो ये सब बातें, तुमसे न हो पायेगा| वैसे भी पाप तो पाप हुआ, चाहे वो भूतकाल में हो, वर्तमान में हो या भविष्य में| कुछ भी मत बोलो|’
‘चलो तुम्हें एक उदाहरण से समझाता हूँ| अगर मान लो, हमारी भविष्य में शादी…… ‘ अंशुमन ने इतना कहा ही था कि वंशिका ने उसे बीच में ही टोक दिया|
‘मान लो से तुम्हारा क्या मतलब है, मिस्टर? शादी तो मेरी तुमसे ही होगी| मेरे से पीछा छुड़ाना इतना आसान नहीं है बच्चू|’ वंशिका ने अंशुमन के पीले कमीज का कॉलर पकड़ कर आँखों को घुमाते हुए कहा|
‘अरे बाबा! वो तो तुमसे ही होगी| पर जब तक नहीं हुई, तब तक मान कर चलो|’
‘अच्छा, ठीक है| आगे बोलो क्या कह रहे थे|’ वंशिका ने अंशुमन के कॉलर से अपने हाथों की पकड़ को ढ़ीली कर उसके कमीज के क्रीच को ठीक करते हुए कहा|
‘मैं ये कह रहा था कि अगर हमारी शादी हो जाती है और किसी कारणवश मेरी मृत्यु हो जाए और अगर तुमसे लोग कहें कि तुम्हें मेरी ही चिता में जल कर मर जाना होगा, तो तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होगी? क्या तुम मेरे साथ मरना पसंद करोगी?’
‘चुप, बिल्कुल चुप| दुबारा मरने की बात किए न तो मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूँगी| बता रही हूँ, अंशुमन|’
‘अरे, तुम हर बात पर सेंटी क्यों हो जाती हो? मैं नहीं मरने वाला इतनी जल्दी| बस मैं जो पूछ रहा, उसका जवाब दो|’
‘पहली बात, ऐसी स्थिति कभी आएगी नहीं और मैं क्यों मरुँ, तुम्हारी चिता के साथ? अगर मेरा मन भी हुआ तुम्हारे साथ मरने का, तो भी मैं मर न सकूँगी क्योंकि मुझे पता है कि तुम मरने के बाद भी मुझे मरते देख नहीं सकते..
और अंशुमन, तुमने कहा कि अगर मुझसे लोग कहे कि तुम्हारी चिता में मर जाऊँ.. अरे, कोई भी ऐसा पाप करने को क्यों कहेगा?’
‘वंशिका, तो तुम्हारे अनुसार किसी के चिता में झुलस कर मर जाना पाप है और जो ऐसा करने पर जोर दे, वो पापी है?’ अंशुमन ने एक रहस्यमयी हँसी के साथ वंशिका को देखा|
‘बिल्कुल| किसी का जीवन छिनने का हक भगवान के सिवा किसी और को नहीं है और अगर कोई ऐसा करे तो वो महापापी है| मुझसे क्या, किसी से भी पूछ लो| सब यहीं कहेंगे|’
‘सही कहा तुमने| पर तुमने कभी ‘सती प्रथा’ के बारे में सुना है, जिसमें अपनी पति के मृत्यु होने पर उसकी चिता में मर जाना बहुत बड़ा पुण्य माना जाता था और जो ऐसा करने से कतराती थी, उन्हें अभागिन, पापी और न जाने क्या- क्या कहा जाता था?’
अंशुमन थोड़ा रुका और फिर कहना शुरू किया,”तो फिर पाप और पुण्य में अंतर कहा है कुछ? जो कभी पुण्य था, वो आज पाप है”
‘बात तो तुम्हारी सही है, अंशुमन| मतलब समय के साथ सही और गलत की परिभाषा भी बदलती रहती है| पर एक ही समय, एक ही युग में तो चीजों को सही या गलत में श्रेणिगत तो किया जा ही सकता है| तो फिर तुमने ये क्यों कहा कि पाप और पुण्य कुछ नहीं है| एक समय में तो किसी चीज को या तो पुण्य या फिर पाप कहा जा सकता है|’
‘ नहीं मेरी प्यारी वन्शु, एक ही काल में भी किसी चीज को पूरी तरह से सही या पूरी तरह से गलत नहीं कहा जा सकता है| याद है जब हम गोवा गए थे तो हमने ‘डेल्टिन रॉयल’ में कैसिनो खेला था और मैंने काफी पैसे हारे थे? ‘
‘हाँ, कैसे याद नहीं रहेगा? तुम्हारा रोतलू चेहरा कैसे भूल सकती, मिस्टर रोतलूमल?’ वंशिका ने अंशुमन के चेहरे को पिंच करते हुए कहा और खिल-खिला कर हँसने लगी|
‘सुनो, ज्यादा मत बोलो| मैं नहीं रोया- धोया था| समझी|’ अंशुमन ने गुस्से से कहा|
‘अच्छा ठीक है बाबा, नहीं रोये थे तुम| अब ये बताओ कि क्यों गोवा के उस कैसिनो की याद दुबारा दिला रहे थे|’
‘अब नहीं बताऊंगा| तुम हर बार बीच में टोक देती| अब मैं कुछ नहीं बताऊंगा|’ अंशुमन ने दूसरी तरफ देखते हुए गुस्सा का नाटक करते हुए कहा|
‘अच्छा, सॉरी न| बताओ न, अब नहीं टोकूँगी|’ वंशिका ने अपने दोनों हाथों से दोनो कान पकड़ते हुए बच्चों के जैसे मुँह बनाते हुए कहा|
‘ठीक है, चलो, माफ़ किया तुम्हें बच्चा| तो मैं ये कह रहा था कि गोवा में कैसिनो खेलना वैध है, लीगल है| पर अगर मुंबई या दिल्ली में अगर कैसिनो खेलते हुए पकड़े गए तो जुर्माना के साथ जेल भी हो सकती| तो अब बताओ, क्या कैसिनो खेलना सही है या गलत? एक ही समय में एक जगह यह सही है और दूसरी जगह ये गलत|’
‘बात तो सही है तुम्हारी| पर बात यहाँ पाप और पुण्य की हो रही है| लीगल, इलिगल की नहीं| तुम बस बात को घुमा कर कह रहे हो, ताकि तुम अपने बात को सही साबित कर सको| मैं नहीं फंसने वाली तुम्हारे इन बातों के सघन जालों में, मिस्टर|’
‘अच्छा, चलो… ‘
अंशुमन ने इतना कहा ही था कि वंशिका शुरू हो गयी,
‘अभी तो आये है और अभी चलने की बात| रुको न, देखो कितनी शांति है यहाँ| अब तुम अपने पॉइंट को साबित नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं| कम से कम यहाँ बैठ कर बातें तो कर ही सकते है|’ वंशिका की बातों में शरारत से भरी समालोचना थी|
‘वंशिका, पूरी बात तो सुना करो यार| हमेशा बीच में ही शुरू हो जाती| मैं नहीं भाग रहा अपनी बातों से| तुम सुनोगी, तब तो कुछ बोलूँ|’ अंशुमन की बातों में थोड़ा- सा चिड़चिड़ापन साफ नज़र आ रहा था|
‘अच्छा, सॉरी न| मैं तो बस तुम्हें तंग कर रही थी| तुम बोलो, मैं अब पक्का सुनूँगी|’ वंशिका ने अंशुमन के हाथों में अपना हाथ रख कर प्यार से कहा|
वंशिका के छुवन ने मानो अंशुमन के ज्वाला को तुरंत शांत कर दिया और वो चाँद की तरह शीतल हो चूका था|
‘वंशिका, चलो! मैं तुम्हें आसान से उदाहरण से समझाता हूँ कि चीजों को एक ही समय, एक ही काल में भी सही या गलत में पूर्णतः श्रेणिगत क्यों नहीं किया जा सकता है|… ‘
अंशुमन थोड़े देर रुका और फिर कहना शुरू किया,
“अफ्रीका में एक ऐसा कबीला है, जो अपनी माँ से भी शादी कर लेता है… “
अंशुमन ने इतना कहा था कि वंशिका ने उसे दुबारा टोक दिया,
“क्या बात कर रहे हो, अंशुमन? क्या सच में ऐसे पापी लोग भी है इस दुनिया में? कोई कैसे इतना बड़ा पाप कर सकता है? “
अंशुमन ने हँसते हुए कहा, “पता है वन्शु, तुम्हें ये पाप लग रहा है, पर उस कबीले के लोगों को अगर ये बात बताया जाएं कि कुछ ऐसे भी लोग है, जिनके पिता मर जाएं तो उनकी माँ को घर पर विधवा की जिंदगी जीना पड़ता है, तो उन्हें ऐसे पापी लोग से घृणा आएगी कि कैसे लोग है? माँ बूढ़ी हो गई, उसे अब कोई युवा मिलने वाला नहीं है, तो बेटा ही कुर्बानी दे क्योंकि बेटे को जवान लड़की मिल जाएगी| लेकिन उस कबीले के लोग अपनी माँ के लिए बलिदान दे देते और अपनी माँ से ही शादी कर लेते| उनके लिए ये बलिदान है, कुर्बानी है, पुण्य है| लेकिन अगर हमारे समाज की दृष्टि से देखा जाए तो ये महापाप है, निंदनीय है| तो फिर कहाँ किसी चीज को पाप और पुण्य के तराजू में तौला जाए| ये बस एक सामाजिक व्यवस्था है, इसका पाप और पुण्य से कोई सरोकार नहीं है|”
अंशुमन ने एक गहरी सांस ली और फिर कहना शुरू किया,
“ठीक इसी तरह अपनी दूर की बहन से शादी करना, एक समाज पाप मानता है, तो दूसरे समाज में कोई अगर ऐसा कर रहा हो तो उसके मन में कोई अपराध का भाव नहीं उठता, क्योंकि यह जान लो वन्शु, ये सब सामाजिक व्यवस्था है| न यह पाप है और न पुण्य| सारे समाज के अपने अलग- अलग नियम है, इसलिए अपने सामाजिक व्यवस्था से दूसरे सामाजिक व्यवस्था को देख उसे पाप और पुण्य में श्रेणिगत करना सही नहीं|”
वंशिका स्तब्ध थी| उसने कभी इस तरह से दुनियाँ को नहीं देखा था| अंशुमन की बातें मानो उसके पूर्वाग्रहों को विचार रूपी तीर से चीर कर नष्ट कर रही थी| वह हैरान थी| उसे नहीं पता था कि अंशुमन के अंदर इतनी गहराई भरी हुई थी, कि वह उसमें गिरी जा रही थी|
थोड़ी देर तक पूरे वातावरण में सन्नाटा पसरा हुआ था| वंशिका अब भी विचारों के गर्त से बाहर नहीं निकल पा रही थी| पर अब उसने हाथ- पैर मारना शुरू किया|
“तो तुम्हारी माने तो किसी व्यक्ति को जान से मार देना भी पाप नहीं है, बल्कि पुण्य है, अंशुमन?”
अंशुमन ने हल्की सी मुस्कुराहट से वंशिका को देखा और कहा, “अगर आपसी रंजिस से किसी को मार दिया जाए तो उसे अपराध की श्रेणि में रखा जाता और उसे सजा दी जाती| अगर वहीं किसी सैनिक द्वारा बॉर्डर पर किसी दूसरे देश के सैनिक को मार दिया जाए तो इसे पाप नहीं कहा जाता, बल्कि इसके लिए वो सम्मान और पुरुष्कार का हकदार होता है| तो फिर किसी को मारना, केवल पाप या केवल पुण्य कहाँ हुआ?”
वंशिका ने अब अपने हथियार रख दिए थे, “तो फिर पाप और पुण्य है क्या? कुछ नहीं?”
“वन्शु, पाप और पुण्य के बीच की रेखा बहुत ही संक्रिन है| अगर सामाजिक व्यवस्था की लेंस से देखा जाए तो किसी चीज को पाप या किसी चीज को पुण्य कहना भ्रामक हो सकता है| संक्रिन दृष्टि से देखा जाए तो पाप या पुण्य कुछ नहीं, महज मनग्रहंत बातें है|
पाप और पुण्य को देखने और समझने के लिए हमें अपने देखने का दायरा विस्तृत करना होगा| हमें सामाजिक व्यवस्था से परे जाकर किसी चीज को पाप और पुण्य के तराजू में तौलना होगा, तभी इसके बीच के विभेद को समझा और जाना जा सकता है|”
कुछ देर तक दोनों ने कुछ नहीं कहा|
अंशुमन ने अपनी वंशिका को देखते हुए प्यार से पूछा, “कुछ समझी, मेरी वन्शु? “
इस पर वंशिका ने अपने दाएँ हाथ से अंशुमन के बाएँ हाथ को पकड़ कर उसके कंधे में अपना सर रख कर कहा, “आज तक तुम्हारी कोई बात मुझे समझ आई है, जो आज समझ आ जाएगी?”
वातावरण जो अब तक थम कर अंशुमन और वंशिका की बातें सुन रहा था, वो पुनः गतिमान हो गया| पक्षियाँ फ़िर से कलरव करने लगी| हवाएँ सूखे पत्तों के साथ फिर से उठा- पटक का खेल खेलने लगी|
वंशिका और अंशुमन अब तक शून्य में कहीं खो चुके थे|
सागर गुप्ता
Photo by Yogendra Singh: https://www.pexels.com/photo/holiday-people-woman-water-10238542/