ये प्रकृति रोती है।
ये प्रकृति रोती है।
अपने पीने का इंतजाम करके
जब महफिल खुश होती है
अपने छाती में बहते
दरिया को सूखता देख
ये प्रकृति रोती है ।
आराम के सारे इतंजाम करके
जब दुनिया सोती है
बाहर की बेचैनी पर
ये प्रकृति रोती है ।
तोड़ कर चट्टानों कों जब
तुझे ऊचाँइयाँ हासिल होती हैं
अपनी पकड़ को टूटते देख
ये प्रकृति रोती है।
उखड़ते हैं जब
इसकी कोख से इसके बच्चे
बिछड़ते हैं इसके दामन से
जब इसके प्रेमी सच्चे
ये प्रकृति रोती है।
मीनू यतिन