परम वचन
||श्री सद्गुरवे नमः||
परम वचन
यह शब्द अत्यन्त कीमती है। इसका अर्थ सत्य वचन नहीं होता है। चूँकि सत्य के विपरीत असत्य है। विज्ञान की कोई खोज आज सत्य है। कल असत्य हो सकती है। परम वचन-जिसके विपरीत कोई वचन नहीं है। इसके उल्टा किसी वक्तव्य की कोई संभावना नहीं है। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं-
भूय एव महाबाहो श्रणु मे परमं वचः|
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया||
अर्थात्-हे महाबाहो! फिर भी मेरे परम वचन श्रवण कर, जो कि मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिए हित की इच्छा से कहूँगा।
पत्नी बहुत प्रिय है, पुत्र प्रिय है। उनसे सत्य वचन कहा जाता है। परन्तु परम वचन तो अत्यन्त प्रेमी गुरु और शिष्य के मध्य ही कहा जा सकता है। भगवान शिव भी उमा से तभी कहे जब वह शिष्यत्व ग्रहण कर ली। अर्जुन से भी भगवान उसी स्थिति में कह रहे हैं। भगवान अपने पुत्र, पत्नी, भाई, परिवार के अन्य सदस्यों से नहीं कहे। परम वचन निकलता है गुरु के तीसरे नेत्र से| वह सीधा प्रवेश करता है शिष्य के तीसरे नेत्र में जिससे शिष्य दिव्य नेत्र को उपलब्ध हो जाता है। फिर जीवन के, विश्व के, सृष्टि के सारे रहस्य स्वतः खुल जाते हैं। वही अज्ञेय है। जिसे हम गुरु अनुकम्पा से प्राप्त करते हैं। ऐसे अज्ञेय के सम्बन्ध में जो वचन गुरु कहता है-वही है परम वचन। इसके विपरीत कोई वचन नहीं है। कोई वक्तव्य नहीं है।
परम वचन न सत्य है न असत्य है। यह सत्य और असत्य दोनों से परे है। हम जिसके सम्बन्ध में कभी भी निर्णायक न हो सकेंगे। जैसे ही साधक बदलने को राजी हो जाता है, तब प्रमाण तत्क्षण मिल जाता है। सद्गुरु कबीर साहब गाते हैं। चरखा कातते हैं। यह तो दिखाई पड़ता है लेकिन वे जिसको देखकर गाते चले जा रहे हैं या उनके भीतर जिस गीत का जन्म हुआ है, जिसके स्पर्श से, उसका हमें कोई पता नहीं चलता है। बुद्ध की गहन मौनता, उनकी शांति का रहस्य हमें पता नहीं चलता। उसके लिए ही तीसरी आँख की आवश्यकता है।
अणु का रहस्य जानने के लिए हेराक्लतु से लेकर आईंस्टीन तक दो हजार वर्षों तक शोध चला है। अणु का खण्डन-विखण्डन लगातार चलता रहा। तब जाकर हमें अणु के सत्य का पता चला है। इतनी लम्बी अवधि तक अणु के साथ हमें मेहनत करनी पड़ी है। विज्ञान वस्तु के साथ मेहनत करता है। धर्म में गुरु शिष्य के साथ मेहनत करता है। विज्ञान कहता है- वस्तु को ऐसी स्थिति में लाएँ, जहाँ सत्य का रहस्य प्रगट हो जाए। धर्म कहता है साधक को ऐसी स्थिति में ले आएँ, जहाँ वह सत्य को देखने में समर्थ हो जाए। इसी से शिष्य को श्रदधा को आधार बनाना ही पड़ता है।
शिष्य गुरु के प्रति श्रद्धा रखता है एवं उनके निर्देशन पर यात्रा पर निकल जाता है तब एकाएक एक दिन शिष्य का स्वतः रूपांतरण हो जाता है। जिसका अनुभव शिष्य को तत्क्षण हो जाता है। उसे भी आपको श्रद्धा से ही स्वीकार करना पड़ता है।
परम वचन का रूपांतरण समय और काल के प्रभाव से नहीं होता है। जबकि हमारे सारे सत्य सामयिक हैं। समय के साथ सत्य को बदलना पड़ता है। जैसे गाड़ी चलती है, चक्का चलता है। परन्तु जो उसकी कील है, धुरि है, वह नहीं चलती है। अचल है। उसी के सहारे चक्का चलता है। यदि कील घूम गई तब चक्का नहीं चल सकता। परम वचन भी उसी कील की तरह है। जो भी शिष्य समय के सद्गुरु का परम वचन सुन लेता है, अपने में उतार लेता है, उसका तीसरा नेत्र स्वतः खुल जाता है।
इससे दिव्यता का रहस्य खुल जाता है। इसी से इसे दिव्य नेत्र कहते हैं। इसी को सूक्ष्म नेत्र या सूक्ष्म चक्षु भी कहते हैं। प्रत्येक साधक के भ्रूमध्य में आज्ञा चक्र का स्थान है। एकाध इंच ऊपर-नीचे हो सकता है। जिसे सद्गुरु देख लेते हैं। इसी स्थान पर प्रसुप्त तीसरा नेत्र होता है। इसे ही शिव जी का तीसरा नेत्र भी कहते हैं। इसे ही साधक सिद्ध गुरु के सान्निध्य में जागृत करता है। इसके जागृत होते ही शरीर के अन्दर की सब क्रियाएँ, देखने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। यहाँ प्रकाश पुंज प्रसुप्त है। जैसे किसी ट्रांसपफारमर में हजारों-हजारों वाट विद्युत बंद है। जैसे ही जानकार व्यक्ति उससे विद्युत प्रवाहित कर हजारों वाट का मीटर या कोई भी विद्युत यंत्र संचालित कर कार्य कर सकता है। उसका परिणाम उसके सामने होता है। उससे भी हजारों गुणा शक्ति इस विद्युत में है। इसके खुलते ही साधक का सारा चक्र स्वतः खुल जाता है।
तीसरा नेत्रा विद्युत का मेन स्विच (main switch) है। इसको ऑन करते ही घर के सारे बल्ब जल उठते हैं। उसी तरह हमारे सारे चक्र क्रियाशील हो जाते हैं। यदि साधक में पात्रता नहीं है तब उसको शॉक भी लग सकता है। जैसे नंगे हाथ से विद्युत का नंगा तार पकड़ने पर होता है। अतएव यह विश्व ब्रह्माण्डीय ऊर्जा है। इससे खिलवाड़ न करें। अपने अहंकार को विसर्जित करें। गुरु आज्ञा का पालन करें| जैसे ही आपमें पात्रता आ जाएगी, गुरु तत्क्षण स्विच ऑन कर देंगे।
||हरि ॐ||
‘समय के सद्गुरु’ स्वामी श्री कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति ‘शिव नेत्र’ से उद्धृत….
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –