सपनों का शहर – मुंबई

सपनों का शहर – मुंबई
भागती दौड़ती सड़कें हैं
या भागते दौड़ते लोग।
अलग अलग सी सोच
तरह तरह के लोग ।
भरी भरी सी भीड़ है
और तन्हा तन्हा लोग।
भीड़ ही भीड़ है
जहाँ तक नजर जाए
जितने लोग उतने ही साए
किसी को किसी की खबर नहीं
डूबा है खुद में ही हर कोई।
हाँ, मगर,
जरूरत के वक्त
खड़े हो जाते हैं लोग कई
एक दूसरे का हाथ बटाँते
साथ देते, संभालते ।
अजब सा जादू है
इस माटी का, इस हवा का।
मस्त मौला शामों का
भागती हुई सुबह का।
बड़ी मेहनत ये शहर करता है
दिन रात भागता ही रहता है ।
उतनी ही शिद्दत से
रस्में निभाता है
आया हो कोई कहीं से
सबको अपनाता है ।
अपने हो या गैर
मिल जुल कर
त्योहार मनाता है ।
अकेले हँस तो सकते हो
अकेला रोने नहीं देता,
सुना है ये शहर किसी को
भूखा सोने नहीं देता।
जाने कहाँ से
किस किस जगह से
इस माया नगरी में आते हैं,
लोग आँखों में सपने भरे
सपनों के शहर में आते हैं
समंदर में उतर आता चाँद
जीते जागते सितारे
इस जमीं पे नजर आते हैं।
मीनू यतिन