पुनर्जन्म

पुनर्जन्म
मेरे अपार्टमेंट का एक छोटा सा बरामदा, और उसके एक कोने में मैनें एक गमले में अपराजिता पुष्प का पौधा लगाया। यह बहुतों को ज्ञात होगा कि इस पौधे पर खिलते बैंगनी रंग के फूल भगवान महादेव को अतिप्रिय हैं । यह पौधा लता की तरह चारों ओर फैलता है, और श्रावण मास में इसके फूल बहुतायत से आते हैं। मेरी धर्मपत्नी शंकर भगवान की बड़ी भक्त है, और जब पौधा फूलों से भर जाता है तो वह अतिप्रसन्न हो उसे एक माले में पिरो महादेव को अर्पण करती है।
वो अपराजिता का छोटा सा पौधा धीरे धीरे रेंगता, लिपटता बरामदे के जंगलों में पूरी तरह फैल गया। मेरे कमरे की खिड़की से इसकी घनी लतायें इस कंक्रीट के जंगल में एक सुहानी हरियाली का ताज़ा एहसास दिला जाती। घने पौधे और उसके फैलते लताओं ने एक जंगली कबूतरी को अनायास ही आकर्षित किया। उसकी ठंडी और सुरक्षित छाँव में उसने एक छोटे से नीड़ का निर्माण प्रारम्भ किया। दिल एक सुखद अहसास से भर उठा, जब मुझे उस घोंसले में एक चमकते हुये नन्हें अंडे के दर्शन हुये।
कुछ ही दिनोंपरांत अंडे से एक छोटे से चूजे का अवतरित होना, तेज़ी से बड़ा होना और उसे रोज़ देखना मुझे प्रकृति और ईश्वर के अस्तित्व की पहचान दिलाने लगा। कुछ दिनों के बाद, अचानक मुझे यह महसूस होने लगा कि माँ कबूतरी अब घोंसले पर न के बराबर दिखाई दे रही है, और प्रतीत होने लगा कि वह अपने बच्चे को ले कहीं और उड़ चुकी है। चूँकि उसके कारण बरामदे मे गंदगी बढ़ जाती थी, तो मैनें सोचा कि अब जब कबूतरी अपने बच्चे के साथ जा चुकी है तो ख़ाली घोसलें को क्यों न वहाँ से हटा दिया जाय।
मैनें एक डंडे की मदद से उस घास-फूस की नीड़ को कुरेद कर हटाने की कोशिश की, पर तभी एक नन्हा पक्षी उस घोंसले से फड़फड़ाते हुये लता के पत्तियों को पकड़ने की नाकाम कोशिश करता हुआ अपने तीसरे माले के फ़्लैट से नीचे जा गिरा। मैं स्तब्ध जब नीचे की ओर देखा तो लगा काटो तो ख़ून नहीं, छोटा सा वह पक्षी का बच्चा निर्जीव ज़मीन पर पड़ा था ।बदहवास नीचे की ओर भागा, पर उतनी उँचाई से गिरने के कारण, जिसके अभी पंख भी पूरी तरह न आ पाये थे ,मर चुका था। जाने अनजाने ही मेरे हाथों जीव-हत्या हो चुकी थी।
यह सत्य कथन है कि जैसे जैसे आप उम्रदराज़ होते जाते हैं, संवेदनशीलता और भावुकता आपमें बढ़ती जाती है। मेरा मन एक दुखद ग्लानि से भर चुका था ,और आँखें पश्चताप के आँसू से लबालब भरे थे।दुख की परिकाष्ठा और चुभने लगी, जब उसी शाम को वह कबूतरी करूणा भरी आवाज़ से अपने बच्चे को पुकारती इधर उधर उसे ढूँढने का प्रयास करती पायी गयी। लेकिन वह तो इस दुनिया से जा चुकी थी।
उसकी यह व्याकुलता भरी कोशिश मेरे मन को और भी व्यथित किये जा रही थी ।
अगले दिन ही मैनें वो देखा जो मेरे लिये अप्रत्याशित था, वही कबूतरी अपने बच्चे के ग़म को भूला कर एक नये नीड़ के पुन:निर्माण में व्यस्त थी। एक नयी शुरूआत में मग्न उस कबूतरी का प्रयास मेरे पाप बोध को भी कम कर गया। “जो बीत गयी सो बात गयी” वाली सीख इस जीव ने हमें याद दिला दिया।
कुछ ही दिनोंपरांत उस नवनिर्मित घोसलें में एक अंडे ,तदोपरांत एक बच्चे के दर्शन हुये । उस छोटे से जीव की टिमटिमाती छोटी छोटी आँखें मेरे चेहरे पर एक नयी ख़ुशी की लहर खींच लायी। अब जब भी सुबह-सुबह खिड़की के बाहर उन घनी लताओं के बीच उस तेज़ी से बढ़ते हुये कबूतरी के बच्चे पर नज़र जाती है, तो एक सुखद अनुभूति का अहसास मेरे तन-मन को तरोताज़ा कर देता है । यूँ लगा कि उस कबूतरी के पहले बच्चे ने पुनर्जन्म ले लिया है।
“जब जब जो होना है तब तब वो होता है”, भगवान श्री कृष्ण की उपरोक्त गीता का यह कथन हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है, कि हम सब उस ईश्वरीय शक्ति के समक्ष निरीह नतमस्तक हैं।
प्रभात कुमार गुप्ता