पापा की परी
पापा की परी ️
उतने ही पंख पसारना
जितनी इजाजत मिले।
हम साथ मांगते है
अहसास निभाते है
पर अनुमति के दायरे में।।
पापा ने कहा था___
वो मना नहीं करेंगे तुझे
पर तू ही मान लेना
उनकी खुशी में ही
अपनी जान लेना।
खुद को जरा सा पा लेना
निभा लेना, अदा करके
फर्ज अपना
जिंदगी से वफा करना।
न कम थी तू कभी
न आंकी जायेगी,
बस बेटी तू सब कर लेगी
एक तू ही बाकी रह जायेगी।
न लेना कभी बोझ आंखो पर
मुस्कुरा कर हार जाना ,
होठों की हंसी कायम रखना
कुछ चांद से वादे कर लेना,
आसमान के तारे पिरो लेना
माथे की शिकन और
हाथो की लकीरों में ,
उम्र अपनी संजो लेना ।
खुद को जरा सा
सजा रखना
अपनी धड़कनों और
एहसासों में अपना
वजूद बचा रखना।
तुझसे आपबीती कौन सुने,
अदालतें भी मुफलिसी होती नही,
फैसले ऐसे खुदा को भी मंजूर नहीं
किरदार भी ऐसा मतलबी नहीं।
गुजर जाती है वो अपने ही पलों में
नाज अपना दामन से लपेटे हुए
पंख अपने सजाती संवारती
एक एतराज जैसे समेटे हुए।
पापा की परी,
यूं ही नहीं सब हार जाती है
अपनी थकन अपनी शिकन
जरा सी चाहत पे वार जाती है।।
रचयिता रेणु पांडे
️
Acha likhti hai
बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🏾🙏🏾
हर एक कविता जैसे स्त्री की पर्याय वाची, बहुत मार्मिक लेखनी जैसे हर तीसरी चौथी भारतीय स्त्री की कहानी बयां करती हुई कविता….. बिंदास लेखनी*😘
Bahut bahut abhar aapka🙏🏾🙏🏾