सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ (Part 1)

सफ़र, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ
कुछ कहानियों में अनेकों कहानियां छिपी होती। शायद मेरी कहानी भी इन्हीं में से एक है।
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सारांश
प्यार कब, किससे हो जाए.. कहना मुश्किल है… प्यार में न जात देखी जाती और न बिरादरी.. प्यार तो दो दिलों का संगम है, जो दैहिक सुख से परे है.. यूं तो प्यार करने वालो का विरोध हर युग में होता आया है..पर प्यार करने वाले न कभी रुके है और न कभी रुकेंगे…
प्रस्तुत कहानी प्यार की एक अनोखी दास्ताँ को बयां करती है। प्यार हमेशा पूर्ण हो, ये जरूरी तो नहीं.. कभी-कभी प्यार अपूर्ण होने के बावजूद कई मायने में सम्पूर्ण हो जाती.. इसी अपूर्णता में संपूर्णता की कहानी है, ‘सफऱ, प्यार और एक अधूरी दास्ताँ’
अध्याय 1- पहली मुलाकात
हर बार की तरह मेरी लेट-लतीफी मेरा पीछा छोड़ने को राजी नहीं थी, मानो मेरी पूर्व जन्म की प्रेमिका हो और उसे सारी पुरानी बातें याद आ गई हो। ऊपर से ये जाम। आज तो लगता है कि मेरी ट्रैन छूट ही जाएगी। भगवान से मैं प्रार्थना करने लगा कि भगवान ट्रैन लेट करवा दो, आधे-पौन घंटे के लिए।
यहाँ मजे की बात ये है कि भगवान की स्थिति कोई नहीं समझता। कुछ लोगों की परीक्षाएं होती, वो भगवान से मनाते कि भगवान जल्दी ट्रैन उनके गंतव्य स्थान पहुँचा दे और मेरे जैसे लेट-लतीफ़ लोग ट्रेन पकड़ने के चक्कर में भगवान को ट्रैन लेट करवाने की गुहार लगाने लगते। अब समस्या भगवान साथ ये हो जाती कि वो अपने किस भक्त की बात सुने।
खैर! मैं अंततः स्टेशन पहुँच चूका था। भगवान ने मेरी सुन कर, और सारे लोगों की बात अनसुना कर दिया। ट्रैन 15 मिनट लेट थी और बस अब खुलने वाली थी।
मैंने अपने पॉकेट से बनारसी पान निकाल कर उसे अपने मुहं में दबाते हुए भगवान को धन्यवाद दिया और अपने प्लेटफॉर्म की तरफ पैर ऊपर और सर नीचे रख कर दौड़ने लगा। मुझसे थोडा-सा आगे एक लड़की भी दौड़ रही थी। उस लड़की को देख कर मुझे इस बात की ख़ुशी हुई कि एक मैं ही पूरी दुनिया का लेट-लतीफ़ इंसान नहीं हूँ और भी कई लोग है। अंततः वो ट्रैन में चढ़ गई।
मैंने उसे अपना हाथ देने के लिए पीछे से चिल्लाया। फिर क्या था.. DDLJ (दिलवाले दुल्हनियां ले जायेंगे) का scene खुद को रिवाइंड करने लगा। बस फर्क इतना था कि इस बार सिमरन की बारी थी, अपने राज को ट्रैन में चढ़ाने की। DDLJ का रिटेक पूरी तरह से सफल हुआ और मैं अब ट्रैन के अंदर था।
मैंने अपनी सिमरन की तरफ मुस्कुराते हुए देखा। पर कम्बखत आँखों के अलावे कुछ न दिखा। ये जो लड़कियों में स्कार्फ़ से मुँह ढकने की आदत है, मुझे बहुत खटकती हैं। ये लड़कियाँ ऐसे स्कार्फ़ लगाती है, जैसे पूरे दिल्ली की प्रदूषित हवा इन्हीं के पीछे पड़ी हो। कहीं भी चले जाओ, चाहे बस में या सड़क में, स्कार्फ़ लगाए ये लोग हर जगह मौजूद है।
“थैंक यू” मैंने अपने मुँह में दबाएं पान के रस को बाहर थूकते हुए कहा।
“वेलकम” बड़े अदब से उसने जवाब दिया।
“After you” मैंने अंग्रेजी वाक्य से उसे इम्प्रेस करने के बहाने उसे आगे अपनी सीट की ओर बढ़ने का संकेत दिया।
IRCTC की वेबसाइट से बुक किये चेयरकार के टिकट देखने के लिए मैंने अपना स्मार्टफोन अपने पॉकेट से निकाला और अपना सीट नंबर खोजने लगा।
शायद भगवान को हमारा मिलना मंजूर था। मेरी सीट उस स्कार्फ़ वाली लड़की के ठीक आगे वाली row में बीच में था।
हम दोनों की नजरें मिली और मैंने अपने बत्तीस के बत्तीस दाँतो को बाहर निकाल कर उसे मुस्कुराते हुए प्यार-भरी नजर से देखा। पर उसने मुझे अनदेखा कर अपनी विंडो वाली सीट से बाहर झांकने लगी। मैं समझ गया कि मेरी दाल यहाँ नहीं गलने वाली।
जब मैं अपनी सीट की ओर बढ़ा तो देखा कि दो खाए-पिए घर की आंटियां मेरी सीट के दोनों ओर बैठी हुई है। मैं अपने सीट में उनदोनों आंटियों के बीच में ठीक वैसे ही बैठ गया, जैसे बड़ा पाव के अंदर पकोड़ा दबा रहता।
मैंने अपने बैग से अपना ईयरफ़ोन निकाला और अपना पसंदीदा गाना “तुम तो ठहरे परदेशी, साथ क्या निभाओगे” अपने पीछे बैठी ‘स्कार्फ़ वाली’ की याद में सुनने लगा।
थोड़ी देर बाद मुझे किसी ने पीछे से कंधे में चिकोटी काटी। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो “मेरी स्कार्फ़ वाली” मुझे कुछ कह रही थी। ईयरफ़ोन में बज रहे गाने के कारण मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कह रही है। मैंने अपने ईयरफ़ोन को अपने कान से निकाल दिया।
“उतनी देर से मैं आपको आवाज़ दे रही हूँ।” उसने बड़े प्यार से कहा।
“माफ कीजियेगा, गाने के कारण आपकी आवाज नहीं सुनाई दी।”
“आपको अगर वहाँ uncomfortable लग रहा हो तो आप मेरी विंडो सीट ले लीजिए। मुझे विंडो सीट से इतना प्रेम नहीं हैं।” उसने अपने आँखों को प्यार से बड़ा-छोटा करते हुए कहा।
मैं समझ गया कि आग दोनों तरफ लगी हैं।
“नहीं, नहीं..I am fine..” मैंने औपचारिकता निभाते हुए कहा।
वो खुद खड़ी हो गई और मेरी row के पास खड़ी हो कर मुस्कुराते हुए बोली, “जाइए न। मेरी विंडो सीट में बैठ जाइए। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं।”
जब कोई लड़की आपको मुस्कुराते हुए कुछ बोलती हैं तो आप अपने विवेक का इस्तेमाल न करते हुए बिना सोचे-समझे उसकी बात मान लेते हैं। मैंने भी बस यही किया।
विंडो सीट में बैठने के लिए मैं उसके row की ओर बढ़ा। अब मुझे पूरा मामला समझ आया। उस विंडो सीट के बगल में मियां-बीवी और उनका छोटा-सा पिद्दू (बच्चा) बैठा हुआ था और उस कम्बख़त बच्चे ने अपनी माँ की सीट में उल्टी कर दी थी जिसकी बूंदे पूरे जमीन में बिखरी हुई थी।
पहली बार बिना लड़की के प्यार में पड़े अपनी कटवाने का एहसास मुझे हो रहा था। पर अब किया भी क्या जा सकता था।
मैं नाक सिकोड़ कर अपने पॉकेट से रुमाल को बाहर निकाल, अपने नाक और मुँह में दबाए, विंडो सीट में बैठा। आज मुझे पहली बार विंडो सीट में बैठने का अफसोस हो रहा था और मैंने उस लड़की को मन ही मन बहुत खरी-खोटी सुनाई।
ख़ैर.. संयोगवश मेरी वास्तविक सीट के बगल में बैठी दोनों आंटियां अपने-अपने पति की शिकायत करते हुए अगले स्टेशन में उतर गई और मुझे उस बच्चे के उल्टी की दुर्गंध से निकलने का मौका मिल गया।
“अच्छा फायदा उठाया मेरी मासूमियत का” मैंने स्कार्फ़ वाली लड़की के बगल वाली सीट में बैठते हुए कहा।
“फायदा?? जी नहीं। ‘थैंक यू’ मुझे अपनी सीट देने के लिए। मैंने आपको ट्रैन में चढ़ने में मदद की और आपने अपनी सीट देकर मेरी। हिसाब बराबर। मैं कुछ उधार नहीं रखती।” उसने आँख मारते हुए कहा।
वैसे उसने अब भी स्कार्फ़ अपने चेहरे में बांध रखा था, पर उसे पूरी तरह से मैंने अब देखा था। पीले रंग की कुर्ती में वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। कुर्ती के ऊपरी भाग में एक-दूसरे से जुड़े हुए विभिन्न रंग के चौकोर डिजाईन थे, जिसमें अलग-अलग मंडलाकार आकृतियाँ बनी हुई थी। उसने बाएं हाथ में गुलाबी रंग की डायल वाली एक घड़ी पहनी हुई थी और उसके दायें हाथ में चांदी जैसे रंगों वाली अलग-अलग चूड़ियां एक-दूसरे को आलिंगित कर रहे थे।
स्कार्फ़ के चलते उसके चेहरे का अनुमान लगाना इतना आसान न था। पर उसकी आँखें बहुत कुछ बयां कर रही थी। आंखे बड़ी-बड़ी और चंचल प्रतीत हो रही थी। आँखों के नीचे लगा ऑय-लाइनर, नव-चंद्रोदय के आकार का था, जो उसकी आँखों को और खूबसूरती प्रदान कर रहा था।
“ओए मिस्टर.. मुझे क्यों घूर रहे?” उसने मेरी चोरी पकड़ ली थी।
“नहीं..नहीं.. मैं आपको नहीं घूर रहा था। मैं बस कुछ सोच में डूबा हुआ था, ये नहीं देखा कि मेरी नजरें आपकी तरफ है.. मतलब समझ रहे न आप.. कुछ सोचते समय आदमी को पता नहीं चलता कि वो किधर देख रहा.. कुछ गहन सोचते समय मानो आँखें खूली होने के बाद भी बंद ही रहती..” मैं अपनी चोरी छुपाने का अथक प्रयास करने लगा।
इस बात पर उसने कुछ न कहा।
बातों से ही बातें बढती है। अगर बातें ही नहीं होगी, तो बात तो वहीँ ख़त्म हो जाएगी। बातों से ही एक नई शुरुवात होती है और जब किसी पुराने रिश्ते में बात होना ही बंद हो जाए, तो वे रिश्ते शनै-शनै धूमिल होने लगते और एक समय बाद उन रिश्तों का नामोनिशान भी न रहता। कभी हमारी बातें किसी से ख़त्म हो भी जाए, तो भी वो बातें सूक्ष्म तौर पर हमारे मन के किसी परत में कहीं छुप जाते और फिर कभी पुनः जीवित हो जाते। बातें पहले भी थी, आज भी है और हमेशा रहेगी।
बातों का सिलसिला बंद न हो, इसलिए मैं बात को आगे बढ़ाने का पुनः कोशिश करने लगा।
“मेरा नाम अंशुमन है और आपका”
“मैंने आपसे आपका introduction पूछा क्या?” उसने तुरंत उत्तर दिया।
मुझे उसके इस बेरुखी के कारण इतनी बेज़्ज़ती महसूस हुई कि मुझे ट्रेन के बाथरूम से चुल्लू भर पानी लाकर उसमें डूब कर मर जाने का जी होने लगा। पर आगे की सीट में बैठे एक सज्जन और उनकी बीवी की बातें सुनने से पता चला कि वो सज्जन ट्रैन की बाथरूम में मल विसर्जित करने गए थे और पानी नहीं रहने के कारण बिना हाथ धोएं वापिस चले आए। मुझे अब चुल्लू भर पानी नसीब तो होने से रहा, पर अब उल्टी करने की जरूरत महसूस होने लगी थी।
“वंशिका नाम है मेरा।” हवा को चीरते हुए उसकी आवाज मेरे कानों में गई।
शायद उसको उसके बेरुखेपन का एहसास हो चूका था।
“कहाँ जा रही आप?” मुझसे रहा न गया।
“विजयगढ़ और आप?” वंशिका ने तुरंत जवाब दिया।
“मैं भी..”
“अच्छा..” उसने बस इतना ही कहा और चुप हो गई।
“घर में आपके कौन-कौन हैं?” मैंने बात करने के बहाने पूछा।
“क्यों? मेरे लिए रिश्ता लेकर आओगे क्या अपनी?” वंशिका ने तदक्षण कहा।
“मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने लड़खड़ाते हुए कहा।
“क्या करते हो तुम?”
“मैं MNC में जॉब करता हूँ। पेशे से मेकैनिकल इंजीनियर हूँ।” मैंने इस अंदाज में कहा जैसे उस MNC का CEO में ही हूँ।
मैकेनिकल इंजीनियर की सबसे मजेदार बात ये हैं कि उनके ब्रांच में लड़कियों की कमी होती। अगर ग़लती से एक-दो लड़कियां ये ब्रांच ले भी लेती तो दूसरे ब्रांच के लड़के उनके साथ सेटिंग कर लेते। इसलिए मैकेनिकल इंजीनियर गर्लफ्रैंड वाले सुख से शुरू से वंचित रहते।
“मैकेनिकल इंजीनियर!!!!” उसने ऐसे घिर्णीत लहज़े में कहा जैसे मैंने अपने आप को कोई आतंकवादी घोषित कर दिया हो।
“क्यों मैकेनिकल इंजीनियर से तुम्हें कोई प्रॉब्लम है??” मैंने इस बार झूठा क्रोध प्रदर्शित करते हुए कहा।
“नहीं.. नहीं.. मुझे क्या प्रॉब्लम होगी।” उसने मुझे बिना देखे फेसबुक की न्यूज़फीड आगे-पीछे करते हुए जवाब दिया।
“आप क्या करती हो?” मैं बात करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहता था।
“क्यूँ जानना है?? मेरी कोई इंटरव्यू थोड़ी चल रही यहां..” उसने मोबाइल से नज़र बिना उठाएं जवाब दिया।
“हद हो यार तुम। मेरे बारे में पूछ रही तुम और जब मैं पूछ रहा तुम्हारे बारे में तो तुम बता नहीं रही कुछ। ठीक है! मत बताओ। अब मैं कुछ नहीं पूछुंगा।” मैंने अपना चेहरा दूसरी ओर करते हुए जवाब दिया।
“मज़ाक कर रही पागल। बॉयफ्रेंड की तरह सेंटी बातें मत किया करो।” उसने मेरे गाल को pinch करते हुए कहा।
उसके कोमल हाथों का स्पर्श मेरे गाल में एक सनसनाहट पैदा कर चुका था, जिसकी झनझनाहट मुझे मेरे पूरे शरीर में हो रही थी। मैंने इसके बाद कुछ न कहा और आँखे बंद कर इस सनसनाहट को महसूस करने लगा।
वंशिका भी अब हैडफ़ोन लगा कर अपना पसंदीदा गाना गुनगुनाने लगी थी।
कुछ देर बाद प्यार भरी शाम पूरे वातावरण को अपने आगोश में ले चुकी थी और चाँद की शीतलता का एहसास हमें होने लगा था। पर अब तक मैंने चाँद की शीतलता ही देखी थी। चाँद का दाग देखना अभी बाकी था।
अगले अध्याय में आप उन बारीकियों से रूबरू होंगे, जो शायद आपने अपने सफ़र के दौरान देखा जरूर होगा, पर वो अतीत के पन्नों में कहीं गुम हो गए होंगे या यूं कहें तो मोबाइल, इंटरनेट के आने से वो आपके दृष्टि में प्रत्यक्ष रूप में होने के बावजूद आपसे ओझल हो गए होंगे..
साथ ही साथ वंशिका और अंशुमन के प्यार भरी नैया भी हिलोरे लेते हुए आगे बढ़ेगी..
मिलते है आपसे अब अगले अध्याय में..
सागर गुप्ता