गुरु से लगन कठिन मेरे भाई
गुरु से लगन कठिन मेरे भाई
दिनांक 17.3.2018 चैत्र शनि अमावस्या के शुभ अवसर पर सद्गुरु धाम आश्रम नांगलोई, दिल्ली में सद्गुरु देव के दिव्य आशीर्वचन …….
प्रिय आत्मन्,
आठ अंक मेरा है, शनि का है और आज शनि से यह साल समाप्त हो रहा है | कल रविवार से नव वर्ष प्रारंभ हो रहा है- विक्रम संवत् 2075 | रवि यानि सूर्य भाग्य का देवता है | सूर्य पिता भी कहलाता है | दादा, नाना, पितामह का प्रतीक सूर्य है | इसलिए कहा गया है कि जो अपना भाग्य बदलना चाहता है वह अपने पिता, दादा-नाना को प्रसन्न करेगा तो उसका भाग्य बदल जाएगा | कल से नववर्ष, नया संवत् शुरू हो रहा है और आठ ही दिन का यह नवरात्र है | इसका मतलब इस नवरात्र में आठ दिन शक्ति की जो आराधना करेगा, वह सालभर प्रसन्न रहेगा | पद-पैसा-प्रतिष्ठा का स्वामी होगा, एकदम राजा की तरह रहेगा | अन्यथा उसके परिवार में विरोध उत्पन्न हो जाएगा, झगड़ा-केस में पड़ जाएगा | इसलिए आठ दिन सब काम छोड़कर भक्ति में लगा दो |
नवरात्रि, शिवरात्रि, पंचरात्रि, सप्तरात्रि – ये रात्रि बहुत महत्वपूर्ण है | यह काल पूर्ण चेतना के लिए बनाया गया है जिससे आप पूर्ण चैतन्य हो जाएँ | कल्मष से दूर हो जाएँ | सूर्य को मित्र भी कहा गया है | सूर्य का दूसरा नाम ‘मित्र’ है | समाज में हमलोग कहते हैं कि हमारी मित्रता हो गई फलाने से | मित्र का अर्थ समझ लो | जो आपको शुद्ध करके आपके अन्दर की कालिमा को, आपके पाप को समाप्त कर दे और आप सूर्य की तरह प्रकाशित हो जाओ, वह मित्र है | लेकिन मित्र और प्रेम- यह दो शब्द हमारे यहाँ बड़े अपमानित हो रहे हैं | तो कहोगे कि अब मित्र नहीं कहेंगे, ‘दोस्त’ कह लेंगे | अरे भारत के ऋषियों की खोज यह शब्द है | दोस्त का अर्थ होता है – जिसके संसर्ग में आते ही तुम्हारा दोष अस्त हो जाए | जो भी तुममें काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ, वासना का दोष है, जो आते ही उसका अंत कर दे और तुम पूर्ण शुद्ध चैतन्य हो जाओ वह दोस्त है | सूर्य मित्र है |
देखो भगवान् दो हैं | पूछोगे – कैसे ? एक भगवान् वह होता है जिसने दुनिया को बनाया है और एक भगवान् वह है जिसको दुनिया ने बनाया है | दुनिया ने जो भगवान् बनाया है, उसका मंदिर बनाकर के उसमें स्वयं बैठ गया है, स्वयं आरती लगाता है, स्वयं पूजा करता है, स्वयं प्रसाद बाँटता है, और स्वयं ताले में बंद करके पॉकेट में चाबी लेकर चल देता है | इसका मतलब दुनिया वाले ने जो मंदिर बनाया है, उसमें स्वयं रहता है, स्वयं घंटी बजाता है, स्वयं ताला बंद करके चलता है | और भगवान् ने दुनिया को बनाया है, भगवान् ने तुमको बनाया है, इसलिए भगवान् भी तुममें प्रवेश कर गया है, तुम्हीं में निवास करता है | कहाँ खोजोगे ? इसीलिए भगवान् कृष्ण भी अर्जुन से कहते हैं – ‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |’ (अध्याय 18 श्लोक 61)
हम जो मंदिर बनाए हैं, उसी में रह जाते हैं | तुमने जो बनाया है, तुम उसमें रह जाते हो | अर्जुन समझ नहीं रहे हैं | पूछते हैं कि वह मंदिर कहाँ बना है प्रभु ! कौन सा वह मंदिर है, जहाँ हम जाएँ ? कहा कि तुम स्वयं वह मंदिर हो | तुमको भी हम ही बनाए हैं | स्पष्ट कह रहे हैं भगवान् कृष्ण – ‘ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति |’
भगवान् ने जो बनाया है मंदिर, वह उसमें स्वयं निवास करता है और तुम जो बनाते हो, उसमें तुम निवास करते हो | लेकिन भगवान् ने जो बनाया है, उसके अन्दर नहीं जाते हो | गाते हो – ‘बंगला गज़ब बनो महाराज | या में नारायण बोले |’ ये अजब महल है ! इसमें नारायण बोलता है | लेकिन इस महल के अन्दर हम नहीं जाते हैं | इसी में अन्दर जाने के लिए हम स्वर साधना कराते हैं |
अरे इस महल के अन्दर तो चलो ! कहोगे कि नहीं, गुरुजी वही महल ठीक है | हमलोग अन्दर नहीं जाना चाहते हैं |
वह सूर्य हमारे अन्दर प्रकाशित है | तुम रोज़ भजन गाते हो पाठ में – सूर्य चन्द्र दोउ पेवन लागे | आपकी बायीं आँख ही चंद्रमा है और दायीं आँख सूर्य है | यह ज्ञान गुदरी में आया है | है न !
जन्मोंजन्म का है गुरु-शिष्य का सम्बन्ध
संसार में रिश्ते भी दो होते हैं | एक रिश्ता वह होता है जो कारण से बन जाता है | जैसे तुम डॉक्टर के यहाँ गए, दिखाने के लिए – रिश्ता बन गया | यदि रोग ठीक हुआ तो भी राम- राम और नहीं ठीक हुआ तो भी कह दोगे डॉक्टर से – राम राम | रिश्ते चलाते हो उनसे ! एक रिश्ता होता है – तुम स्कूल जाते हो, बन गया | ट्रेन में जा रहे हो – बन गया | कहीं क्लब में गए, कहीं मीटिंग में गए, कोई मिल गया – तुमने फ्रेंड बना लिया, रिश्ता बन गया | चलते- फिरते वह रिश्ता बन जाता है | लेकिन यह कारण का रिश्ता टिकता नहीं है | साधारण सी आंधी के एक झोंके से भरभरा कर गिर जाता है |
एक रिश्ता है जो तुम्हारे कर्मों से बनता है | पति-पत्नी का रिश्ता, तुम्हारे माँ-बाप का, तुम्हारा भाई-बहन का रिश्ता | यह अनायास नहीं बना है | आपके कर्मों से बना है | और यह नहीं चाहते हुए भी कुछ दिन ढोना पड़ता है | लेकिन ढोते ही हो, निभाते नहीं हो | माँ-बाप और बेटे में बहुत प्रेम है | लेकिन जिस दिन पत्नी आई, बाप को भूल गया | बड़ा आस लगाई है माँ कि नहीं, पतोहू हमारी सेवा करेगी | पतोहू आती है कि सास हमारी सेवा करेगी | यह दोनों तरफ चलता है- कर्मों का सम्बन्ध है | ये भी स्थायी नहीं है |
तीसरा एक सम्बन्ध है – गुरु-शिष्य का | यह तुम्हारे जन्मों जन्म के संस्कार का सम्बन्ध है | जन्मोंजन्म की तपस्या का, जन्मोंजन्म की उपासना का, जन्मोंजन्म का आपके पुण्य का सम्बन्ध है | इसलिए गुरु से यदि ठीक-ठीक सम्बन्ध हो गया तो यह उसको जन्मों जन्म तक निभाता है | एक जन्म नहीं, जन्मों जन्म तक लेकर जाता है | इसलिए गुरु-शिष्य का सम्बन्ध बड़ा कठोर होता है | इसीलिए तुमलोग गाते हो लेकिन सोचते नहीं हो – गुरु से लगन कठिन मेरे भाई | यह जन्मों का सम्बन्ध है | लेकिन निभाना बड़ा कठिन है | हर जन्म चला जाता है | लेकिन जहाँ स्वार्थ पूरा हुआ- नहीं चला | समझ लो – जो चलता बना, उसका एक जन्म गया |
यह स्वार्थों का सम्बन्ध नहीं है | तुम्हारी वासनाओं को पूरा करने का सम्बन्ध नहीं है | यह तुम्हारी डूबती हुई नाव को संसार सागर से पार करा देने का सम्बन्ध है | त्याग-वैराग्य का सम्बन्ध है |
धर्म क्या है ?
सुनते हैं, मुल्ला नसरुद्दीन नाव चलाने लगा, नाविक बन गया | उसका एक मित्र बड़ा कृपण था, लेकिन वह बहुत धनी था | मुल्ला से मिलने आता था तो चाहता था कि मुल्ला के यहाँ से चाय-पानी पीकर जाएँ | मुल्ला बेचारा दो-चार रुपया कमाकर लाता था | यह कहता कि मुल्ला तू बड़ा कमा रहा है, चाय पिला | और इसी तरह रोज़ चाय-पानी पीकर चल देता था | कहा कि यार ! बड़ा गज़ब हाल है | तू इतना पैसा कमा रहा है.. | तो कहा कि मुल्ला हम पैसा कमा रहे हैं धनी बनने के लिए न ! खर्चा क्यों करें ? पागल थोड़े ही हैं | धन इकठ्ठा कर रहे हैं, काम करेगा न |
संयोग से उस कृपण आदमी को गंगा के उस पार जाना था | शाम का छः बज गया था | कहा कि मुल्ला ! ज़रा गंगा पार करा देते तो अच्छा होता |
“अरे जानता नहीं, पाँच बजे मैं नाव रोक देता हूँ | नहीं चलाता हूँ ? स्नान-व्नान करके मैं जाता हूँ नमाज़ पढ़ने |”
“अरे मुल्ला, ज़रा आज एक-दो घंटा बाद पढ़ लेना |”
“संभव नहीं है, मित्र | मैं नियम का पक्का हूँ |”
“अरे मुल्ला नाव का तुम दो पैसा लेते हो न, मैं दो रूपया दूँगा|”
कहा, “चल हट ! कृपण आदमी से मैं बात नहीं करता हूँ | मैं चलाता ही नहीं |’
वह अब रोने लगा | कहा, “मुल्ला, मैं मित्र हूँ न तुम्हारा !”
कहा, “छोड़ो – यहाँ पर मित्रता का सवाल नहीं है, नकद-पैसे का सवाल है |”
तब कहा, हम “दस रूपया दे देंगे |”
कहा कि असंभव |
करते-करते यह तय हुआ कि चलो, दो सौ दे देंगे |
अन्दर से फातिमा सुन रही थी | बोली, “अरे रोज़ दो पैसा कमा रहे हो, यह दो सौ रूपया देगा- घर-गृहस्थी सुधर जाएगी |”
कहा, “अरे यह देने वाला नहीं है, रोज़ खा-पीकर चले जाने वाला है | हो सकता है कि पार कर जाये तो न दे |”
“तो ठहरो, मैं तय करती हूँ |” और बोली, “दो सौ रूपया लेकर आए हैं ?”
कृपण आदमी कहा कि हाँ, और फट से पॉकेट से निकाल दिए- दो सौ-सौ के नोट, दिखाए कि देखो |
“तो दीजिये, हम पार करा देते हैं | हम भी नाव चलाना जानते हैं |” फातिमा बोली |
मुल्ला सोचने लगा कि ये फिर जीत जाएगा, हम हार जायेंगे | दो सौ में ये भी चला जाएगा- तुम भी चली जाओगी | हमको क्या फायदा ?
कहा, “तुम बैठो, मैं पार करा रहा हूँ | रूपया गिन लिया, रख लिया है न !”
“हाँ” |
कहा कि ठीक |
अब मुल्ला चला पार कराने के लिए | नदी पार कराई, उस पार ले गया | वह बोला कि मुल्ला ! तुम कहते हो कि आखिर पैसे की क्या कीमत ? पैसे की कीमत है न ! दो सौ रूपया हम रखे थे- कमाए थे, तब न तुम लाए ?
मुल्ला ने कहा कि अरे तुम्हारे दो सौ रूपया कमाने से मैं नहीं लाया | तब ? कहा, “तुम्हारे दो सौ रुपये का त्याग करने से मैं लाया हूँ | जो त्याग करता है, वह पार हो जाता है मूर्ख ! तुमने आज दो सौ रूपये का त्याग किया है, इसलिए तुम पार हो गए हो |” कहा कि यह तो मुल्ला ने आज बड़ा उपदेश दिया |
तो देखो यह है त्याग | त्याग से हम पार कर जाते हैं | इस शक्ति की उपासना में हम आठ दिन- नौ दिन तक त्याग करते हैं | जो कमाए हैं, उसमें भी त्याग करना है | मुल्ला का सन्देश पकड़ो | जब त्याग करेंगे, तब हम भव सागर रूपी नदी पार कर जायेंगे | अन्यथा कोई उपाय नहीं है | गुरु केवल परिस्थितियाँ क्रिएट करता है कि इसमें आप त्याग कर सको | उपासना कर सको | और हँसी-ख़ुशी यात्रा करते हुए पार हो जाओ | हालाँकि हमारी पूरी कोशिश रहती है कि कोई खुश न रहे | डाँटते रहते हैं | अब कोई क्या खुश रहेगा- बोलो | एक छोटी सी गलती हुई नहीं कि डांट शुरू |
अब पूरा यह आठ दिन अमंगल मत सोचो | मंगल ही सोचो | मंगल ही करो | भगवान् महावीर ने कहा है कि धर्म मंगल है | फिर पूछोगे कि धर्म क्या है ? तुम्हारा त्याग ही धर्म है, तपस्या ही धर्म है | तुम्हारा चाल, चरित्र, चिंतन ही धर्म है | इसलिए भगवान् महावीर नहीं बताए कि धर्म क्या है ? क्योंकि वह धर्म में जी रहे हैं, तब क्यों बतावें ? जो धर्म में जी रहा है, कैसे बताएगा कि धर्म क्या है ? जो धर्म में नहीं जीता है, वह बताता है कि धर्म | भगवान् महावीर तो त्याग में ही जी रहे हैं | तपस्या में ही जी रहे हैं | इसलिए कह रहे हैं कि धर्म मंगल है |
इस नवमी को धर्म का ही जन्म है | भगवान् राम का जन्म है | इसलिए इसे रामनवमी कहते हैं | इसी से हमारा साल शुरू होता है | नवरात्र के एकं को कलश रखा जाता है न ! यानि तुमने त्याग, तपस्या, वैराग्य का व्रत धारण कर लिया | नौ महीने में बच्चा पैदा होता है न ! और इसमें एक दिन का त्याग-तपस्या चालीस दिन के बराबर होता है | नौ दिन का 360 दिन यानि एक साल के बराबर हो गया | इसीलिए एकं को गुरु बताता है विधि-विधान |
गर्भ – दो होता है | एक गर्भ माँ के पेट में होता है, जिसे एक सांसारिक बच्चा ग्रहण करता है | एक गर्भ और होता है हमारा जिसमें ज्ञान रूपी राम रहता है और जब नौवें महीने में कौशल्या से ज्ञान रूपी राम प्रकट हो जाएगा, तब तुम कहोगे – ‘भये प्रगट कृपाला, दीन दयाला कौशल्या हितकारी |’ अब जो गर्भ धारण करेगा उससे न लड़का पैदा होगा ? कौशल्या ने गर्भ धारण किया है, इससे प्रगट हुआ है राम | तुलसीदासजी स्पष्ट कहते हैं कि इससे कौशल्या का ही हित होगा | तुम धारण करोगे तो तुम्हारा भी होगा | अरे, तुम तो कह ही रहे हो कि कौशल्या का होगा |
ऐसी नक़ल मत करो कि अक्ल बिगड़ जाए
हमारे यहाँ भारतीय वांगमय में साल का प्रारंभ रात्रि से नहीं होता है | सूर्य से निर्णय होता है | सूर्य जब उदय होता है, तब दिन हो जाता है | और सूर्य अस्त होने के पश्चात् जब पुनः उदय होगा– तब एक दिन माना जाता है | यह नहीं कि सूर्य अस्त हो गया- दिन बदल गया | बारह बजे रात्रि में बदल गया | यहाँ से लंदन में छः घंटे का अंतर है | अब समझो, सूर्य जब यहाँ उदय हुआ, तब लंदन में बारह बजे रात्रि है न ! हमारे यहाँ से धर्म जब वहाँ पर गया तो भारत से जो लंदन गए वे लोग बारह बजे रात्रि में दिन बदल दिए कि नहीं, हमारे यहाँ तो सूर्य उदय हो गया | अब वे उस समय उठकर पूजा करने लगे, पाठ करने लगे और पूर्व की ओर मुख करके प्रणाम करने लगे कि सूर्योदय हमारे यहाँ हो गया | वह अपनी संस्कृति माने और तुम उनका अन्धानुकरण करने लगे | बारह बजे रात्रि में कहने लगे कि दिन बदल गया | अरे तुम तो गज़ब पागल हो गए !
पूरे विश्व में पहले हिन्दू धर्म था | यहाँ से लोगों ने जाकर इंग्लैंड में बदला है कि नहीं, छः बज गए | हमारे यहाँ तो सूर्योदय हो गया भारत में | तो तुम्हारे यहाँ के लोग वहाँ पर कर दिए और तुमने वहाँ की बात को मान लिया ? अरे मुल्ला का बाप हो गए ? इंग्लैंड ने पूरी पृथ्वी पर राज्य किया, तब यह बदला गया |
एक हमारा कम्युनिस्ट मित्र था | एक दिन सुबह-सुबह देखा कि यह छाता लेकर चल रहा है |
हम पूछे, “अरे काहे छाता लिया रे ? कहीं बरखा हो रही है ? कितना सुहावना बसंत का मौसम है |”
कहा, “अरे गुरुजी, अभी टीवी पर देखकर आ रहे हैं- रूस में पानी पड़ रहा है |”
“अरे रूस में पानी पड़ रहा है तो यहाँ छाता लगा लिया ?”
कहा, “हम लेनिन की मूर्ति लगाए हैं न ! वहाँ ठंडा पड़ता है तो यहाँ पर कम्बल ओढ़ लेते हैं |”
तो वो ही हम कर रहे हैं न बच्चा ! ऐसी नक़ल मत करो कि अक्ल बिगड़ जाए |
एक दिन मुल्ला की पत्नी खूब पाउडर-लिपस्टिक लगा रही थी | रोज़ देखता था मुल्ला | कहा कि इसलिए सुन्दर लगती है न ये | एक दिन मुल्ला की पत्नी कहीं गई थी बाहर | मुल्ला ने अवसर पाया | खोला ड्रावर | देखा- इसमें क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक सब रखा है | मुल्ला भी लगा अपना मुख सजाने | खूब पाउडर- क्रीम लगाया, गाल लाल-लाल रंगा | लिपस्टिक वगैरह सब लगाया | खूब बनाकर रूप, बाहर निकला | पास-पड़ौस के लोग उसको देखकर हँसने लगे |
मुल्ला ने कहा कि वाह ! आज हम कितने सुन्दर लग रहे हैं | सब हँस रहे हैं न ! लेकिन उसका लड़का फखरू देखकर जान रहा था | कहा, “अब्बा जान, जरा अन्दर चलो तो बतावें !” कहा कि हम क्यों जाएं अन्दर, हम बाहर ही रहेंगे |
अब बताओ, मुल्ला की तरह से हमलोग भी कहीं अपना रूप बनाकर हँसते तो नहीं हैं ?
हम कहेंगे लेकिन तुम मानोगे नहीं | पूरे साल कमाते हो, पूछते हैं क्या बचाते हो ? कहते हो गुरुजी, बचा नहीं | घाटा लगा है | हम कहते हैं कि ऐसे कामवा का क्या फायदा रे ? आठ दिन अपना कामवा बंद करके हमारे साथ राम-राम का भजन कर लो | एक – लगा दो, कुछ त्याग-तप कर लो | फिर जाओ | तुमने सालभर में इतना नहीं कमाया होगा, जितना इस साल कमा लोगे | यह नहीं कि तुम्हें ईश्वर पर विश्वास नहीं है, विश्वास तुमको अपने पर नहीं है | क्या करोगे ?
कल कलश स्थापन भी है | पानी, जौ डाला जाता है | उसके बाद आवाहन होता है | देवी के आवाहन का मतलब, जो देवी, जो शक्ति तुम्हारे अन्दर छिपी है उसका आवाहन करो | जिससे तुम्हारे अन्दर जो आत्मा की शक्ति – आत्म-शक्ति दबी है, वह जागृत होगी | वह अष्टभुजा है, आठ रूपों में उसका आवाहन किया जाता है | इन नौ दिनों में वह प्रकट हो जाएगी तुम्हारे अन्दर से | वही देवी का असली आवाहन होगा | कहाँ तुम बाहर-बाहर कर रहे हो ! बाहर से जो हम दिखाते हैं कि उसी को अन्दर देख लो | ‘भीतर बाहर का एकै लेखा | जस बाहर तस भीतर देखा |’ इसलिए अन्दर जाकर देखोगे तो आनंद आएगा | आज बस इतना ही… धन्यवाद |
| सदगुरु देव की जय |
सदगुरु टाइम्स से साभार
‘समय के सदगुरु’ स्वामी कृष्णानंद जी महाराज
आप सद्विप्र समाज की रचना कर विश्व जनमानस को कल्याण मूलक सन्देश दे रहे हैं| सद्विप्र समाज सेवा एक आध्यात्मिक संस्था है, जो आपके निर्देशन में जीवन के सच्चे मर्म को उजागर कर शाश्वत शांति की ओर समाज को अग्रगति प्रदान करती है| आपने दिव्य गुप्त विज्ञान का अन्वेषण किया है, जिससे साधक शीघ्र ही साधना की ऊँचाई पर पहुँच सकता है| संसार की कठिनाई का सहजता से समाधान कर सकता है|
स्वामी जी के प्रवचन यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं –