पहचान

पहचान
कुछ कविताएं
जन्म लेती नहीं
बस नजर आती हैं
जीवन के बिखराव में
कश्मकश में ।
चाहने और पाने की
तमन्ना लिए जिंदगी
कितनी अजीब सी
बेपरवाह हो जाती है
कुछ सुलगती है
कुछ दम तोड़ती
अपनी सी ही ख्वाहिशें।
फिर रोज़ नया सा कुछ
राहों में इंतज़ार करता है
कहे या ना कहे
कोई वादा तो नहीं
हां एक यकीन बाकी है
रहने भी दे ए जिंदगी
जरा सी जान बाकी है
जी लेने दे मुझे जरा
पहचान अभी बाकी है।।
रचयिता रेणु पांडे
Very nice dear keep it up💕💕