बूढ़ा बरगद का पेड़।
हम सब की ज़िन्दगी मैं एक पेड़ होता हैं जिसकी छाँव मैं हम पलते-बड़े हैं। मेरे पिता को समर्पित।
बूढ़ा बरगद का पेड़।
जंगल में आन बान शान थी उसकी,
कुछ अलग ही बात थी उसकी,
हर पल, अपनी छाँव से,
अपने नीचे पनप रहें छोटें-छोटें पौधों को,
अपने डाल पर रहने वाले पंछियों को,
थके राहगीरों को,
प्रेम से,
अपनी बाहों में समेटे रखा,
वह एक बरगद का पेड़।
आज कुछ तकलीफ में हैं,
जड़े हील गयीं हैं,
डालें कमज़ोर हो गयीं हैं,
थकावट हैं,
नम हैं बूढ़ी आँखें,
कुछ दीमक सा लग गया हैं,
लड़ाई कुछ लम्बी हो गई,
पर जोश अब भी हैं बरक़रार,
पत्तियाँ में अब भी खनखनाहट हैं,
चेहरे पर मुस्कान हैं, आवाज बुलंद हैं,
जीवन चक्र हैं,
कोशिश पूरी जारी हैं।
रचयिता राखी सुनील कुमार
Umda …!!