काली बदरी से इन नयनों को,
सम्भाल लो कोई दूजा गीला करे,
आरंभ से अंत में,
कभी मिलता कुछ भी नहीं,
और मिल भी जाए जो कभी,
ठहरता तो कुछ भी नहीं।
आज बड़े अरसे बाद,
वक्त को थामा था मैंने,
मिलने उन बंद पन्नों से,
प्रेम का ज्ञान तो नहीं,
पर प्रेम पढ़ा है मैंने।