दादाजी रॉक्स !
“दादाजी ये… दादाजी वो…” की पुकार से डिब्बा गूंज उठा। सोनल की आश्चर्य और उम्मीदभरी नज़रें पुस्तकें टटोलते स्मित पर टिक गईं।
“दादाजी ये… दादाजी वो…” की पुकार से डिब्बा गूंज उठा। सोनल की आश्चर्य और उम्मीदभरी नज़रें पुस्तकें टटोलते स्मित पर टिक गईं।
गुरुजी ने उन गेंदों को संदीप के हाथों में दिया और कहा, “तुम इन गेंदों को लगातार एक के बाद एक हवा में उछालते रहो और किसी भी समय कम से कम 1 गेंद हवा में जरूर होनी चाहिए।”
मेरे भगवान ! तेरा बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।
सज्जन ने मुझे बताया कि उन्होंने ये नियम बना रखा है कि अपना हर काम वो खुद करेंगे। घर में बच्चे हैं, भरा पूरा परिवार है। सब साथ ही रहते हैं। पर अपनी रोज़ की ज़रूरत के लिए वे सिर्फ पत्नी की मदद ही लेते हैं,
एक बार एक बूढ़े आदमी ने अफवाह फैलाई कि उसके पड़ोस में रहने वाला नौजवान चोर है।
बिरजू अचानक से बोल पड़ा – “काका , आप तो सबकी चिट्ठियाँ लाते हो न ? आप मेरे माता – पिता की कोई भी चिठ्ठी क्यों नहीं लाते हो कभी? क्या कभी मेरे माता – पिता की चिट्ठी नहीं आएगी?”
Hindi / Romance / Short Story
by Sagar Gupta
by Sagar Gupta · Published October 1, 2022 · Last modified February 6, 2023
तुमने मुझे समझ क्या रखा है, मिस्टर। मानती हूँ कि तुम्हारे जैसे मेरे भी जीवन में बहुत लोग आयें है और तुम्हारे जाने के बाद भी आयेंगे। लेकिन सच्चा प्यार तो तुमसे ही था और सबने तो मुझे कभी प्यार से निहारा तक नहीं। दुबारा ऐसा बोले तो मुँह तोड़ दूँगी।