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‘माँ, तुम बहुत याद आती हो’ सस्वर पाठ
मेरी कविता “ माँ तुम बहुत याद आती हो” उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होने उम्र के किसी ना किसी पड़ाव मे अपनी माँ को खोया है।
आखिर ये करते हो कैसे
जिला देते हो मरते हुए रिश्ते
जो ख्वाब अधूरे रह गये थे
उन ख्वाबों को पूरा करना है
“माँ” पर क्या लिखू?… माँ ने तो हमे लिखा है…
माँ, मेरी जान हो तुम
चमकते हैं जिसमें
मेरी कविता “ माँ तुम बहुत याद आती हो” उन सभी लोगों को समर्पित है जिन्होने उम्र के किसी ना किसी पड़ाव मे अपनी माँ को खोया है।
सफर हो खुशनुमा
और कुल्हड़ की चाय
सबका अपना एक मानक है
सबकी अपनी परिभाषा है
उदास चाँद,खामोश रात और मैं
तुम्हारी याद ,तुम्हारी बात और मैं
सुबह लिखूँ या शाम लिखूँ
एक गीत तुम्हारे नाम लिखूँ।
अभी जिंदगी शुरू हुई थी
कि मौत से सामना हो गया