बारूदों का कुहरा सा है
भयावह सा सन्नाटा पसरा है ।
जाने किस गुमान में
तनी सी रहती है
इमारतों और झोपडि़यो की
अकसर ठनी सी रहती है
चला-चल, ओ राही, चला-चल,
डर मत, मुड़ मत, आगे बढ़, तू चला-कर।
हांथो में गूंथकर,
ममता में मिलकर,
तवे पर सेककर,
रोटी बनती है।
तटस्थ है तुमसे मिलना, माना।
आओगी अवश्य तुम, यह भी जाना।