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प्रेम ही परमात्मा हैं ।

प्रेम शब्द न ही स्त्रीलिंग है, न ही पुलि्ंलग है। आत्मा में भी विभेद नहीं किया जा सकता है। जहाँ भेद दृष्टि है_ वहाँ प्रेम नहीं है-वासना है

जो आत्म बोध करा दे – वही है ‘समय का सद्गुरु’

आप हर बार भोग भोगने के चक्कर में चूक जाते हैं | इस बार मन की न सुनकर गुरु की सुन लें | जीवन का रहस्य खुल जायेगा |