दास्तान

दास्तान
निगाहों से जो बयां हो रहा है,
जला है कहीं कुछ, धुआं हो रहा है |
छुपाने की कोशिश बहुत हो रही है,
निगाहों से सब कुछ बयां हो रहा है |
मैं छूने चला था जिसे चाँद कह कर,
मेर लिए वो आसमां हो रहा है |
कहानी नहीं फिर बता ऐ मोहब्बत,
मेरे प्यार क्यों दास्ताँ हो रहा है |
भुलाने में जिसको जमाने लगे है,
उन्हें भूल जाना कहाँ हो रहा है |
कवि – अशोक कुमार गुप्ता
Wah..kya khoob likha. Maza aagaya padh kar👍